ट्रंप की नई ब्लॉकबस्टर: “टैरिफ रिटर्न्स”
[‘अमेरिका फर्स्ट’ से ‘कला लास्ट’ तक: टैरिफ का तमाशा]
प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)
ट्रंप साहब ने फिर पटाखा नहीं, सीधे तोप दाग दी—और इस बार निशाना है सिनेमा की वो दुनिया, जो सपनों को रील पर बुनती है। आदेश साफ़, विदेश में बनी हर फिल्म पर सौ फीसदी टैरिफ। मतलब, जो फिल्म अमेरिका की सरहद के बाहर शूट हुई, उसकी टिकट अब दुगुनी कीमत पर। सोशल मीडिया पर छाती ठोकते हुए फरमाया—ये विदेशी चोर हमारे हॉलीवुड को ऐसे लूट रहे हैं, जैसे भूखा बच्चा मेले में लड्डू झपट ले। फिर सुरक्षा का नगाड़ा बजाया और वाणिज्य विभाग को सीधी लाइन दी। लेकिन यह हॉलीवुड को बचाने की कोशिश कम, गला घोंटने वाला इलाज ज़्यादा लगता है।
टैरिफ का यह तमाशा कोई नया अध्याय नहीं।
टैरिफ का यह तमाशा कोई नया अध्याय नहीं। ट्रंप की किताब में हर दर्द की दवा सिर्फ़ टैक्स है—दवा पर सौ फीसदी, ट्रक पर पच्चीस, कुर्सी-मेज पर तीस। अब बारी फिल्मों की। लेकिन भई, फिल्म कोई आलू-प्याज नहीं कि आयात करो और टैक्स ठोंक दो। यह तो कला है, कहानी है, सपनों का जादू है। दुनिया कहती है—कला पर टैक्स नहीं लगता। पर ट्रंप? वे तो गर्जते हैं, “यह तो देश की इज्जत का सवाल है!” अरे भई, ‘गॉडजिला’ टोक्यो में बना तो क्या व्हाइट हाउस ध्वस्त हो जाएगा? या ‘ड्यून’ दुबई में शूट हुआ तो क्या अमेरिकी फौज रेगिस्तान में रास्ता भटक जाएगी? यह तो वैसा ही हुआ जैसे कोई बोले—“हमारी बिरयानी हैदराबाद से बाहर बनी तो राष्ट्र संकट में पड़ जाएगा!” हंसी भी आती है, और अफसोस भी, लेकिन ट्रंप की दुकान में यही माल बिकता है।
Read More Bhojpuri Song: पवन सिंह और क्वीन शालिनी की केमिस्ट्री ने फैंस को किया दीवाना, गाना हुआ वायरलहॉलीवुड के सेठ लोग माथा पकड़कर बैठे हैं। डिज़्नी, वार्नर, नेटफ्लिक्स—सबके दफ्तरों में भगदड़ मची है। विदेश में शूटिंग सस्ती पड़ती थी—न्यूजीलैंड के पहाड़, आयरलैंड की घाटियाँ, थाईलैंड के समंदर—ये सब हॉलीवुड की रीढ़ थे। अब ट्रंप ने फतवा दे दिया—या तो अमेरिका में बनाओ, या टैरिफ भरकर रोओ। अमेरिका में बनाओ तो बजट फूटेगा, और उसका बोझ गिरेगा टिकट पर। बेचारे दर्शक? जो पॉपकॉर्न का ठेला लादे सिनेमा हॉल पहुँचते हैं, उनकी जेब पहले ही हल्की है। कोविड ने थिएटरों को कब्रिस्तान बना दिया; बारह अरब का धंधा अब सात अरब पर हांफ रहा है। अब इस पर टैरिफ का तड़का! सोचिए, ‘स्पाइडरमैन’ अगर मेक्सिको में शूट हुई,
तो टिकट अस्सी का। चार लोग गए, तो वॉलेट में झाड़ू। फिर जनता का ठिकाना? टॉरेंट की अंधेरी गली। ट्रंप शायद सोचते हैं कि लोग उनकी “मेक अमेरिका ग्रेट” टोपी पहनकर ‘रॉकी’ की रीमेक देखने टूट पड़ेंगे। लेकिन भाई, जनता को ‘आयरन मैन’ चाहिए—जो आसमान में उड़ता है, न कि ग्रीन स्क्रीन पर रस्सी से लटका। मगर अगर कोई हॉलीवुड वाला मुंबई में ‘पठान’ की रीमेक सोचे, तो ट्रंप का टैरिफ डंडा टूटेगा। शाहरुख की फिल्म अमेरिका में रिलीज़ हुई, तो दर्शक दुगुना चुकाएँ। यह तो वैसा ही है जैसे कोई कहे—“जलेबी सस्ती चाहिए तो चीनी पर टैक्स ठोंको!”
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ट्रंप ने तो बाकायदा अपनी "फ़िल्मी फ़ौज" तैनात कर दी
ट्रंप ने तो बाकायदा अपनी "फ़िल्मी फ़ौज" तैनात कर दी—मेल गिब्सन, स्टैलोन, जॉन वॉयट। अब यही हॉलीवुड की रखवाली करेंगे। पर हंसी तब आती है जब याद पड़ता है—गिब्सन की ब्रेवहार्ट स्कॉटलैंड की देन थी। अगर उस वक़्त टैरिफ होता, तो फिल्म पोस्टर तक न बनती। स्टैलोन का रैंबो भी विदेशी जंगलों की गवाही है। तो अब क्या, ये सब स्टूडियो की चारदीवारी में खड़े होकर “फ़्रीडम!” चिल्लाएँगे? या ट्रंप खुद कैमरा पकड़कर टैरिफ मैन बनाएँगे, जिसमें हीरो हर विदेशी चीज़ पर टैक्स ठोके और खलनायक कोई जापानी डायरेक्टर हो, जो ऑस्कर उड़ा ले जाए।
जब यह टैरिफ बम फटेगा, तो धमाका दूर-दूर तक जाएगा। थिएटर खाली होंगे, पाइरेसी महफ़िल जमाएगी, स्ट्रीमिंग कंपनियाँ ताली बजाएँगी। दर्शक पॉपकॉर्न घर पर ही सेंकेंगे, और ट्रंप चिल्लाएँगे—“फेक न्यूज़!” यही उनका फॉर्मूला है—हर बीमारी की गोली टैक्स, और हर टैक्स का नतीजा तमाशा। अब इंतज़ार बस इस बात का है कि अगला बम कहाँ गिरेगा—गानों पर या किताबों पर। क्योंकि ट्रंप का अमेरिका फर्स्ट असल में है टैक्स इज़ बेस्ट।

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