ट्रंप की नई ब्लॉकबस्टर: “टैरिफ रिटर्न्स”

[‘अमेरिका फर्स्ट’ से ‘कला लास्ट’ तक: टैरिफ का तमाशा]

ट्रंप की नई ब्लॉकबस्टर: “टैरिफ रिटर्न्स”

प्रो. आरके जैन अरिजीत, बड़वानी (मप्र)

ट्रंप साहब ने फिर पटाखा नहींसीधे तोप दाग दी—और इस बार निशाना है सिनेमा की वो दुनियाजो सपनों को रील पर बुनती है। आदेश साफ़, विदेश में बनी हर फिल्म पर सौ फीसदी टैरिफ। मतलबजो फिल्म अमेरिका की सरहद के बाहर शूट हुईउसकी टिकट अब दुगुनी कीमत पर। सोशल मीडिया पर छाती ठोकते हुए फरमाया—ये विदेशी चोर हमारे हॉलीवुड को ऐसे लूट रहे हैंजैसे भूखा बच्चा मेले में लड्डू झपट ले। फिर सुरक्षा का नगाड़ा बजाया और वाणिज्य विभाग को सीधी लाइन दी। लेकिन यह हॉलीवुड को बचाने की कोशिश कमगला घोंटने वाला इलाज ज़्यादा लगता है।

हॉलीवुड—जहां ‘स्पाइडरमैन’ जाल बुनता है, ‘बैटमैन’ मर्दानगी झाड़ता है—अब टैरिफ की भट्टी में फूंका जा रहा है। ट्रंप का दर्शन बड़ा सादा है—कनाडाइंग्लैंडन्यूजीलैंड—ये सब डाकुओं का अड्डाजो सस्ती लागत पर हमारे डायरेक्टरों को फुसलाते हैं। तो हलहर विदेशी फिल्म पर टैक्स का पहाड़। अरेयह तो वैसा ही है जैसे कोई कहे—पड़ोस की चाय सस्ती हैतो अपने चायवाले की दुकान पर हम दोगुना वसूलेंगे। अवतार’ न्यूजीलैंड की हरियाली में शूट हुईतो टिकट की कीमत आसमान छूएगी। ‘जेम्स बॉन्ड’ ने लंदन की सड़कों पर पीछा कियातो दर्शक की जेब लुटेगी। और अगर कोई ‘पैरासाइट’ जैसी कोरियाई फिल्म सामने आईतो ट्रंप गरजेंगे—ये तो राष्ट्रविरोधी साजिश है! अरे साहबसाजिश तो आपकी ‘टॉप गन’ में भी थीजब आसमान में जेट गरजते थे और अमेरिका हीरो बनता था। पर ट्रंप को तो हर विदेशी चीज़ में शैतान नज़र आता हैमानो हर छींक में भूत-प्रेत ढूँढने वाला कोई अंधविश्वासी पंडित।

 

टैरिफ का यह तमाशा कोई नया अध्याय नहीं।

टैरिफ का यह तमाशा कोई नया अध्याय नहीं। ट्रंप की किताब में हर दर्द की दवा सिर्फ़ टैक्स है—दवा पर सौ फीसदीट्रक पर पच्चीसकुर्सी-मेज पर तीस। अब बारी फिल्मों की। लेकिन भईफिल्म कोई आलू-प्याज नहीं कि आयात करो और टैक्स ठोंक दो। यह तो कला हैकहानी हैसपनों का जादू है। दुनिया कहती है—कला पर टैक्स नहीं लगता। पर ट्रंपवे तो गर्जते हैं, “यह तो देश की इज्जत का सवाल है! अरे भई, ‘गॉडजिला’ टोक्यो में बना तो क्या व्हाइट हाउस ध्वस्त हो जाएगाया ‘ड्यून’ दुबई में शूट हुआ तो क्या अमेरिकी फौज रेगिस्तान में रास्ता भटक जाएगीयह तो वैसा ही हुआ जैसे कोई बोले—हमारी बिरयानी हैदराबाद से बाहर बनी तो राष्ट्र संकट में पड़ जाएगा! हंसी भी आती हैऔर अफसोस भीलेकिन ट्रंप की दुकान में यही माल बिकता है।

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हॉलीवुड के सेठ लोग माथा पकड़कर बैठे हैं। डिज़्नीवार्नरनेटफ्लिक्स—सबके दफ्तरों में भगदड़ मची है। विदेश में शूटिंग सस्ती पड़ती थी—न्यूजीलैंड के पहाड़आयरलैंड की घाटियाँथाईलैंड के समंदर—ये सब हॉलीवुड की रीढ़ थे। अब ट्रंप ने फतवा दे दिया—या तो अमेरिका में बनाओया टैरिफ भरकर रोओ। अमेरिका में बनाओ तो बजट फूटेगाऔर उसका बोझ गिरेगा टिकट पर। बेचारे दर्शकजो पॉपकॉर्न का ठेला लादे सिनेमा हॉल पहुँचते हैंउनकी जेब पहले ही हल्की है। कोविड ने थिएटरों को कब्रिस्तान बना दियाबारह अरब का धंधा अब सात अरब पर हांफ रहा है। अब इस पर टैरिफ का तड़का! सोचिए, ‘स्पाइडरमैन’ अगर मेक्सिको में शूट हुई,

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 तो टिकट अस्सी का। चार लोग गएतो वॉलेट में झाड़ू। फिर जनता का ठिकानाटॉरेंट की अंधेरी गली। ट्रंप शायद सोचते हैं कि लोग उनकी मेक अमेरिका ग्रेट टोपी पहनकर ‘रॉकी’ की रीमेक देखने टूट पड़ेंगे। लेकिन भाईजनता को ‘आयरन मैन’ चाहिए—जो आसमान में उड़ता हैन कि ग्रीन स्क्रीन पर रस्सी से लटका। मगर अगर कोई हॉलीवुड वाला मुंबई में ‘पठान’ की रीमेक सोचेतो ट्रंप का टैरिफ डंडा टूटेगा। शाहरुख की फिल्म अमेरिका में रिलीज़ हुईतो दर्शक दुगुना चुकाएँ। यह तो वैसा ही है जैसे कोई कहे—जलेबी सस्ती चाहिए तो चीनी पर टैक्स ठोंको!

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ट्रंप ने तो बाकायदा अपनी "फ़िल्मी फ़ौज" तैनात कर दी

ट्रंप ने तो बाकायदा अपनी "फ़िल्मी फ़ौज" तैनात कर दी—मेल गिब्सनस्टैलोनजॉन वॉयट। अब यही हॉलीवुड की रखवाली करेंगे। पर हंसी तब आती है जब याद पड़ता है—गिब्सन की ब्रेवहार्ट स्कॉटलैंड की देन थी। अगर उस वक़्त टैरिफ होतातो फिल्म पोस्टर तक न बनती। स्टैलोन का रैंबो भी विदेशी जंगलों की गवाही है। तो अब क्याये सब स्टूडियो की चारदीवारी में खड़े होकर फ़्रीडम! चिल्लाएँगेया ट्रंप खुद कैमरा पकड़कर टैरिफ मैन बनाएँगेजिसमें हीरो हर विदेशी चीज़ पर टैक्स ठोके और खलनायक कोई जापानी डायरेक्टर होजो ऑस्कर उड़ा ले जाए।

जब यह टैरिफ बम फटेगातो धमाका दूर-दूर तक जाएगा। थिएटर खाली होंगेपाइरेसी महफ़िल जमाएगीस्ट्रीमिंग कंपनियाँ ताली बजाएँगी। दर्शक पॉपकॉर्न घर पर ही सेंकेंगेऔर ट्रंप चिल्लाएँगे—फेक न्यूज़! यही उनका फॉर्मूला है—हर बीमारी की गोली टैक्सऔर हर टैक्स का नतीजा तमाशा। अब इंतज़ार बस इस बात का है कि अगला बम कहाँ गिरेगा—गानों पर या किताबों पर। क्योंकि ट्रंप का अमेरिका फर्स्ट असल में है टैक्स इज़ बेस्ट।

 

 

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