कविता/कहानी
कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नीl

संजीव-नीl मतदाता एक दिन का राजाl     एक मतदान के पावन दिन लगाकर कपड़ों में चमकदार रिन एक पार्टी के उम्मीदवार लगते थे मानो है सूबेदार, बिना लंबा भाषण गाये मुस्कुरा कर मेरे पास आए, बोले- कृपया अपने मताधिकार का लोकतंत्र के...
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संजीव-नी। 

संजीव-नी।  विश्व युद्ध की कालिमा।     विश्व युद्ध की आशंका। सिर्फ युद्ध का उन्माद, डरा देता है अंदर तक, दिल और दिमाग  कांप जाते हैं, आने वाले कल की भयानक तस्वीर, विभीषिका मानव को कम्पित कर रख देती है। क्या हम भूल...
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संजीवनी।

संजीवनी। बंधन का इरादा है वफा का गांव चाहिए।     बला की धूप है सर पर घनेरी छांव चाहिए, थके मुसाफिर को सुकून का गांव चाहिए।     दुआएं निकली है दिल से तो पूरी होंगी, बंधन का इरादा है वफा का गांव चाहिए।...
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संजीव-नी।। 

संजीव-नी।।  मुझ पर फेके गए पत्थर अपार मिलेl     मुझ पर फेके गए पत्थर अपार मिले, फक्तियाँ,ताने सैकड़ों बन गले का हार मिले।     शौक रखता हूं भीड़ में चलने का मित्रो, कही ठोकरे,तो कही जीत के पुष्प हार मिले।     जीवन बिता यूँ...
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संजीव-नी।

संजीव-नी। सामने आओ तो,पलकें झुका देना तुम।    एहसास दिल में न दबा देना तुम, होठों से तिरछा मुस्कुरा देना तुमl    ये दिल की लगी है, घबरा न जाना, सिर्फ आंखों में ही मुस्कुरा देना तुम।    नया नया रूप है तुम्हारे यौवन...
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संजीवनी।

संजीवनी। क्रूरता की परिणति युद्ध।     युद्ध के बाद बड़ा पश्चाताप ही परिणति होती है, अक्सर होता है ऐसा देश या इंसान दुख और पश्चाताप में डूब जाता है हमेशा के लिए। युद्ध, हिंसा,  किसी समस्या का हल नहीं। फिर क्यों लोग...
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संजीव-नीl

संजीव-नीl मानवीय संवेदनाओं को जिंदा रखिए, l    मानवीय संवेदनाओं को जिंदा रखिए, l रिश्तो की भावनाओं को जिंदा रखिए।    संबंधों की नर्म ऊष्मा जिंदा रखिए, अहसासों के दर्द को जिंदा रखिए,    चुप्पी दफ़्न करती कोमल रिश्तों को, लफ्जों की आकांक्षाओं को...
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संजीव-नी। 

संजीव-नी।  जाते ही माँ के सारे दिल भी बट गए।     पर्दे रिश्तों के भी सारे परे हट गए जाते ही माँ के दिल भी सारे बट गए।     मुद्दतों बाद मिलनें से संभला नही जुनूँ देखा मुझे तो दौड़ गले से लिपट...
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संजीव-नी।

संजीव-नी। व्यंग।     हिंदी दिवस l     नेशनल हिन्ढी डे ? एक अंग्रेज नुमा नेता जी हिंदी दिवस पर  आये,करने भाषण बाजी । बोले, लेट अस सेलिब्रेट एन एन्जॉय हिंदी डे, मुझे हिंदी अच्छी नही आती मेरे पूरे परिवार को नही भाती, मेरा...
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संजीव-नी|

संजीव-नी| हिंदुस्तान की सच्ची तस्वीर। नल पर अकाल की व्यतिरेक ग्रस्त जनानाओं कीआत्मभू मर्दाना वाच्याएं।एक-दूसरे के वयस की अंतरंग बातों,पहलुओं कोसरेआम निर्वस्त्र करती,वात्या सदृश्य क्षणिकाएं,चीरहरण, संवादों सेआत्म प्रवंचना, स्व-स्तुति,स्त्रियों के अधोवस्त्रों में झांकती...
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संजीव-नीl

संजीव-नीl उनके अंदाज ही अलहदा निराले हैंlउनके अंदाज ही अलहदा निराले हैंइश्क के जख्म हमने दिल में पालें हैं।मौज करते हैं भीख मांग-मांग करजो मजबूत साबुत हाथ पैर वाले हैं।जिंदगानी की उमंग में उड़ते पंछीकुछ...
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कविता

कविता प्रभु पता बता सका न कोई।    बीत जाती है सदियां बदल जाते हैं युग पर नहीं विस्मृत हो रहा प्रभु रूप अनोखा तुम्हारा।    झर जाती पंखुरियाँ उड़ उड़ जाती सुगंध रूप ,सौंदर्य जिसका हमें घमंड मिट जाते हैं सदैव काल...
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