सियासत की जंग और हलकान अधिकारी आखिर जिम्मेदार कौन
On
गोंडा। सत्ता की गलियों में जारी सियासी खींचतान अब केवल नेताओं के भाषणों तक सीमित नहीं रह गई है। इसका असर सीधा प्रशासनिक तंत्र पर पड़ रहा है। जो अधिकारी जनता की समस्याओं को हल करने और विकास योजनाओं को ज़मीन पर उतारने के लिए जिम्मेदार हैं, वे अब राजनीतिक खींचतान की चक्की में पिसते नज़र आ रहे हैं।
नेताओं की वर्चस्व लड़ाई में कभी तबादलों की गोटियाँ बिछती हैं, तो कभी आदेशों का बोझ अधिकारियों पर लाद दिया जाता है। नीतियों के अमल की जगह आदेशों की तात्कालिकता हावी रहती है। नतीजतन अधिकारी न तो जनता के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह कर पा रहे हैं और न ही प्रशासनिक विवेक को सही दिशा दे पा रहे हैं।
जनता की अपेक्षा है कि योजनाएँ समय पर लागू हों, शिकायतों का समाधान हो और विकास की रफ़्तार तेज़ हो। मगर जब पूरी ऊर्जा राजनीतिक जंग को साधने में खर्च होने लगे, तो जनहित स्वाभाविक रूप से पीछे छूट जाता है। सियासत के इस शोरगुल में अधिकारी हलकान हैं और जनता हाशिए पर खड़ी होकर तमाशा देखने को विवश है।
कटरा बाज़ार परिसर रणभूमि और प्रशासन की चुप्पी
कटरा बाज़ार के ब्लॉक परिसर में हाल ही दिनों में दोनों बाहुबलियों के बीच जमकर ईट पत्थर चलें कई लोग दोनों तरफ से घायल हुए। लेकिन यह घटना ने लोकतांत्रिक संस्थाओं की साख पर गहरी चोट की है। ईंट-पत्थरों की बरसात, घायल लोग और खून से सनी ज़मीन यह सब बताता है कि वर्चस्व की भूख किस हद तक कानून और व्यवस्था पर हावी हो चुकी है।ब्लॉक परिसर, जो योजनाओं का केंद्र और जनसमस्याओं के समाधान माना जाता है, वह क्षण भर में अखाड़ा बन गया।
यह स्थिति केवल हिंसा नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मर्यादा का अपमान भी है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जिम्मेदार अधिकारी आज भी चुप्पी साधे हुए हैं। न कोई ठोस कार्रवाई, न दोषियों पर शिकंजा ,मानो प्रशासन भी राजनीतिक दबाव का बंदी बन गया हो।जनता पूछ रही है कि जब ब्लॉक परिसर ही सुरक्षित नहीं, तो गाँव-गाँव में सुरक्षा और न्याय की उम्मीद किससे की जाए? यदि अधिकारी केवल सत्ता की छाया में चलेंगे और जनहित की अनदेखी करेंगे, तो लोकतंत्र की नींव खोखली होती जाएगी।
जनता का सवाल, क्यों कार्रवाई से हट रहे अधिकारी
कटरा बाज़ार की घटना के बाद सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि आखिर पुलिस अब तक कार्रवाई क्यों नहीं कर रही। कई लोग घायल हुए, संपत्ति को नुकसान पहुँचा, परंतु जिम्मेदार अमला मौन है। जनता का आरोप है कि साधारण नागरिक की मामूली गलती पर तो पुलिस तुरंत डंडा चला देती है, मगर जब बात रसूखदारों और बाहुबलियों की आती है, तो पूरा तंत्र ठिठक जाता है। क्या यह दोहरी नीति नहीं? क्या पुलिस सत्ता के दबाव में है, या फिर जानबूझकर मामले को ठंडे बस्ते में डाला जा रहा है?
लोकतंत्र में कानून सबके लिए बराबर होना चाहिए, लेकिन कटरा की घटना इस बराबरी पर प्रश्नचिह्न लगा रही है। जनता का तंज़ भी तीखा है“अगर हम सुरक्षित नहीं, तो फिर पुलिस की मौजूदगी का मतलब क्या? अपराध पर नियंत्रण नहीं कर सकती तो क्या मतलब,कटरा की घटनाएँ और प्रशासन की निष्क्रियता लोकतंत्र की सबसे बड़ी कमजोरी को उजागर करती हैं। यदि अधिकारी और पुलिस सत्ता के दबाव में चुप्पी साध लेंगे, तो यह चुप्पी आने वाले बड़े संकट की प्रस्तावना होगी।
जनता की मांग “हमें कानून चाहिए, न कि सत्ता की चौकीदारी।”यह समय है कि प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभाए, कानून का राज स्थापित करे और यह भरोसा दिलाए कि लोकतंत्र किसी के वर्चस्व का दास नहीं, बल्कि सबके अधिकारों की रक्षा करने वाला तंत्र है।
About The Author
स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।
Related Posts
Post Comment
आपका शहर
07 Nov 2025 19:41:20
Kal Ka Mausam: देश से मानसून की विदाई पूरी तरह से हो चुकी है, लेकिन दक्षिण भारत के कुछ राज्यों...
अंतर्राष्ट्रीय
04 Nov 2025 19:30:03
International Desk काबुल/इस्लामाबाद | 4 नवंबर 2025 — दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में बड़ा मोड़ आया है। भारत और अफगानिस्तान...

Comment List