लता जी संगीत की शिखर साध्वी: जयंती नहीं, स्वर-उत्सव है

[एक युग, एक स्वर, एक अमर धरोहर: लता मंगेशकर]

लता जी संगीत की शिखर साध्वी: जयंती नहीं, स्वर-उत्सव है

[एक युगएक स्वरएक अमर धरोहर: लता मंगेशकर]

जिस तरह राग दरबारी की तान मन को गहन शांति और आलौकिक अनुभूति में डुबो देती हैउसी तरह लता मंगेशकर का नाम लेते ही हर भारतीय का हृदय श्रद्धाप्रेम और गर्व की लहरों से झंकृत हो उठता है। 28 सितंबर 1929 को इंदौर के एक साधारण मराठी परिवार में जन्मी लता जी केवल एक गायिका नहीं थींबल्कि भारतीय संगीत की वह धरोहर थींजिन्होंने अपने स्वर से युगों को जोड़ा। उनकी आवाज़ एक जादुई तार थीजो हर भावना—प्रेमविरहभक्तिऔर देशप्रेम को आत्मा की गहराइयों तक पहुँचाती थी। लता जी का जन्म  केवल एक तारीख थाबल्कि भारतीय संस्कृति में एक स्वर्णिम युग का प्रारंभ थाजिसने संगीत को आत्मा का दर्पण बना दिया। “स्वर कोकिला का खिताब उनके लिए केवल एक सम्मान नहींबल्कि उनकी आवाज़ की पवित्रता और गहराई का साक्षात्कार था।

उनका मूल नाम हेमा थापर उनके पिताशास्त्रीय संगीतज्ञ और रंगमंच के दिग्गज पंडित दीनानाथ मंगेशकर ने उन्हें “लता नाम दिया। घर में संगीत का ऐसा माहौल था कि मानो हर दीवार से रागिनी और हर हवा में ताल गूंजता था। पाँच वर्ष की उम्र से ही लता जी ने पिता के नाटकों में अभिनय शुरू कियाऔर संगीत उनकी साँसों का हिस्सा बन गया। लेकिन 1942 मेंजब वह मात्र 13 वर्ष की थींउनके पिता का असामयिक निधन ने परिवार को आर्थिक और भावनात्मक संकट में डाल दिया। इस नन्ही उम्र में लता जी ने अपने कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी उठाई और अपनी आवाज़ को अपनी सबसे बड़ी ताकत बनाया। यही दृढ़ता और संकल्प उनकी आवाज़ में वह करुणा और तीव्रता लायाजो हर गीत को अमर कर गया।

1942 में मराठी फिल्म किटी हसाल के लिए उनका पहला गीत (नाचू या गड़ेखेलो सारी मणि हौस भारी) रिकॉर्ड हुआलेकिन हिंदी सिनेमा में उनकी राह आसान नहीं थी। उस दौर में नूरजहाँ और शमशाद बेगम जैसी दमदार आवाज़ों का बोलबाला थाऔर लता जी की कोमलमधुर आवाज़ को कई निर्माताओं ने पतली कहकर ठुकरा दिया। लेकिन लता जी का आत्मविश्वास और अथक परिश्रम ने संगीत की दुनिया को उनकी प्रतिभा का कायल बना दिया। 1949 में फिल्म महल का गीत आएगा आनेवाला उनकी पहली बड़ी कामयाबी थीजिसने न केवल उन्हें रातोंरात सितारा बनायाबल्कि हिंदी सिनेमा में पार्श्वगायन की नींव को नए सिरे से गढ़ा। यह गीत लता जी की आवाज़ का वह जादू थाजो समय और सीमाओं को लाँघकर आज भी हर दिल में गूंजता है।

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लता मंगेशकर की आवाज़ एक ऐसी नदी थीजो हर भाव की गहराई को छूकर श्रोता के हृदय तक बहती थी। उनकी बहुमुखी प्रतिभा का जादू इस बात में था कि वह हर रागहर भाव को अपनी आवाज़ में इस तरह पिरोती थीं। चाहे प्रेम की मधुर लय होजैसे लग जा गले में छलकती कोमलताया तेरे बिना ज़िंदगी से में बसी नाजुक शिकायतविरह की करुणा होजैसे आजा रे परदेसी की पुकारभक्ति की पवित्रता होजैसे ज्योति कलश छलके या  पालनहारे का आलोकया फिर राष्ट्रप्रेम की हुंकारजैसे  मेरे वतन के लोगों की गूंज—लता जी की आवाज़ हर गीत को एक अविस्मरणीय अनुभव बना देती थी। 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद गाया गया  मेरे वतन के लोगों केवल एक गीत नहीं थाबल्कि देश की एकता और बलिदान की भावना का प्रतीक था। इस गीत ने न केवल जवाहरलाल नेहरू की आँखें नम कींबल्कि हर भारतीय के हृदय में देशभक्ति की ज्वाला प्रज्वलित कर दी।

लता जी की महानता केवल उनकी आवाज़ तक सीमित नहीं थीउनकी सादगीअनुशासन और विनम्रता ने उन्हें एक युगपुरुष बनाया। वह समय की पाबंदी की जीवंत मिसाल थीं—रिकॉर्डिंग स्टूडियो में हमेशा समय से पहले पहुँचने वाली लता जी हर गीत को तपस्या की तरह गाती थीं। नौशादमदन मोहनशंकर-जयकिशनऔर आर.डी. बर्मन जैसे संगीतकारों के साथ उनका रिश्ता केवल पेशेवर नहींबल्कि हृदय से हृदय का बंधन था। वह गीत के बोल और भाव को पहले आत्मसात करती थींफिर अपनी आवाज़ से उसे अमर कर देती थीं। यही कारण है कि उनके गीत समय की सीमाओं को लाँघकर आज भी उतने ही जीवंत और प्रासंगिक हैं।

36 से अधिक भाषाओं में  30,000 से अधिक गीत गाकर लता जी ने विश्व संगीत में एक अनुपम कीर्तिमान स्थापित किया। उनकी आवाज़ ने हिंदी सिनेमा को वैश्विक पहचान दीऔर मराठीबंगालीतमिलतेलुगु जैसी क्षेत्रीय भाषाओं में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनके गीत केवल संगीत नहींबल्कि जीवन के हर रंग के साथी हैं—प्रेम में मिठासदुख में सांत्वनाऔर देशभक्ति में जोश का संचार करने वाले। लता जी की आवाज़ वह जादुई तार थीजो हर पीढ़ी के हृदय को एक सूत्र में बाँध लेती थी। उनकी विरासत संगीत की दुनिया में एक ऐसी रोशनी हैजो कभी मद्धम नहीं होगी।

लता मंगेशकर उस युग की मशाल थींजिन्होंने न केवल संगीत की दुनिया को आलोकित कियाबल्कि महिलाओं के लिए एक नया आकाश रचा। उस दौर मेंजब समाज में महिला कलाकारों को सीमित दायरे और सम्मान में बाँधा जाता थालता जी ने अपनी आवाज़ की ताकत से हर रूढ़ि को तोड़ा। उनकी कोमलमधुर आवाज़ ने पुरुष-प्रधान मानसिकता को चुनौती दी और साबित किया कि कला की कोई लैंगिक सीमा नहीं होती। उनकी सफलता ने लाखों महिलाओं को प्रेरित किया कि प्रतिभा और दृढ़ संकल्प के बल पर वे अपने सपनों को पंख दे सकती हैं।

लता जी का व्यक्तित्व उनकी कला जितना ही प्रेरणादायी था। अपार ख्याति और वैभव के बावजूद वह सादगी की मूर्ति रहीं। अहंकार को उन्होंने कभी अपने पास नहीं फटकने दिया। वह कहती थीं, “मेरा सबसे बड़ा पुरस्कार है जनता का प्यार। भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण (1969), पद्म विभूषण (1999), दादा साहब फाल्के पुरस्कार (1989), और भारत रत्न (2001) से सम्मानित किया। फ्रांस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान लीजन ऑफ ऑनर भी उन्हें प्राप्त हुआ। फरवरी 2022 को उनके निधन ने विश्व भर में एक शून्य छोड़ दिया। यह केवल एक व्यक्ति का जाना नहींबल्कि एक युग का अवसान था। फिर भीलता जी का स्वर कभी मूक नहीं हो सकता। उनकी आवाज़ मंदिर की घंटियों-सी पवित्रमाँ की लोरी-सी शाश्वतऔर रागिनी-सी अनंत है। उनके गीत आज भी हर घर में गूँजते हैंहर दिल को छूते हैंऔर आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।

लता मंगेशकर की जयंती केवल एक तारीख नहींबल्कि संगीत की साधनाअनुशासन और समर्पण का उत्सव है। यह वह पर्व हैजो हमें याद दिलाता है कि कलाजब निष्ठा और संवेदनशीलता से सजी होतो वह जीवन को नई दिशा देती है। लता जी ने सिखाया कि सुर केवल ध्वनि नहींबल्कि आत्मा का आलिंगन हैं। उनकी जयंती पर उन्हें स्मरण करना केवल श्रद्धांजलि नहींबल्कि एक सत्य का उत्सव है कि हमने अपने समय में एक ऐसी हस्ती को जियाजिसका स्वर अनश्वर है। लता मंगेशकर अमर हैंक्योंकि उनकी आवाज़ समय की सीमाओं को लाँघकर हर हृदय में बस्ती है। उनके गीत हमारी स्मृतियों में गूँजते हैंऔर हमेशा गूँजते रहेंगे।

 

प्रो. आरके जैन अरिजीत, बड़वानी (मप्र)

 

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