आज भूरागढ़ किले मे लगेगा आशिकों का मेला
मकर सक्रांति के मौके पर नटवीरन मन्दिर के दर्शन करने आते है प्रेमी युगल बुन्देलखण्ड के जनपद बांदा में स्थित केन नदी के किनारे प्राचीन भूरागढ़ दुर्ग परिसर में मकर संक्रांति को नटवीरन के मंदिर में गत वर्षो की भांति इस वर्ष भी माथा टेकने युगल प्रेमी आएंगे। यह पराम्परा यहां सैकडों वर्षों से चली
मकर सक्रांति के मौके पर नटवीरन मन्दिर के दर्शन करने आते है प्रेमी युगल
बुन्देलखण्ड के जनपद बांदा में स्थित केन नदी के किनारे प्राचीन भूरागढ़ दुर्ग परिसर में मकर संक्रांति को नटवीरन के मंदिर में गत वर्षो की भांति इस वर्ष भी माथा टेकने युगल प्रेमी आएंगे। यह पराम्परा यहां सैकडों वर्षों से चली आ रही है।
इसी दुर्ग परिसर में नटवीरन के मंदिर हैं। इन मंदिरों में मकर संक्रांति को मेला लगता है मेले के दौरान बड़ी संख्या में युगल प्रेमी श्रद्धा व उल्लास के साथ मत्था टेकते हैं
बताते है कि महोबा जनपद के सुंगिरा का रहने वाला नोने अर्जुन सिंह भूरागढ़ दुर्ग का किलेदार था। यहां से कुछ किलोमीटर दूर सरबई (मध्य प्रदेश) गांव है। वहां नट जाति के लोग रहते थे। अक्सर करतब दिखाने और कामकाज के लिए नट भूरागढ़ आते थे। किले में काम करने वाले एक युवा नट और किलेदार की पुत्री के बीच प्यार हो गया किलेदार को इसका पता चला तो पहले तो वह बेटी पर नाराज हुआ फिर उसने प्रेमी युवा नट से यह शर्त रखी कि सूत की रस्सी पर चलकर नदी पार करके किले तक आए।
अगर ऐसा करने में सफल हुए तो वह अपनी पुत्री से उसकी शादी कर देगा। प्रेमी नट ने शर्त मान ली। खास मकर संक्रांति के दिन सन 1850 ईस्वी में नट ने प्रेमिका के पिता की शर्त पूरी करने के लिए नदी के इस पार से लेकर किले तक सूत की रस्सी बांध दी। इस पर चलता हुआ वह किले की ओर बढ़ने लगा।
उसका हौसला बढ़ाने के लिए नट बिरादरी के लोग रस्सी के नीचे बाजे-गाजे बजा रहे थे। नट ने रस्सी पर चलते हुए नदी पार कर ली और दुर्ग के करीब जा पहुंचा। यह तमाशा नोने अर्जुन सिंह किले से देख रहा था। उसकी पुत्री भी अपने प्रेमी के साहस का नजारा देख रही थी।नट दुर्ग में पहुंचने ही वाला था कि तभी किलेदार नोने अर्जुन सिंह ने रांपी (धारदार हथियार) से रस्सी काट दी। नट नीचे चट्टानों पर आ गिरा और उसकी वहीं मौत हो गई। प्रेमी की मौत का सदमा किलेदार की पुत्री को बर्दाश्त न हुआ और उसने भी दुर्ग से छलांग लगाकर जान दे दी।इन दोनों प्रेमी-प्रेमिकाओं की याद में घटनास्थल पर दो मंदिर बनाए गए।
नट बिरादरी के लोग इसे विशेष तौर पर पूजते हैं और हर साल मकर संक्रांति के दिन यहां नटबली में मेला लगता है।
ब्यूरो रिपोर्ट -मुनीस मोहम्मद
बांदा
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