सामुदायिक शौचालयों में करोड़ों का खेल!
कागज़ों में सफाई, ज़मीन पर ताले — हर महीने 9000 रुपये का फर्जी भुगतान जारी
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बलरामपुर। स्वच्छ भारत मिशन के नाम पर जिले में भ्रष्टाचार की ऐसी कहानी लिखी जा रही है जो सुनकर जनता हैरान है। सरकार की महत्वाकांक्षी योजना सामुदायिक शौचालय संचालन अब “सफाई नहीं, सफाई के नाम पर कमाई” का जरिया बन चुकी है। जिले में बने अधिकांश सामुदायिक शौचालय महीनों से बंद पड़े हैं, लेकिन हर महीने 9000 रुपये का भुगतान स्वयंसहायता समूह की महिलाओं के खातों में जारी है। आश्चर्य की बात यह है कि ये भुगतान तब भी हो रहे हैं जब एक भी शौचालय सुचारू रूप से संचालित नहीं है।
ज़मीन पर सच्चाई — जर्जर भवन, टूटी टंकी, उगी झाड़ियां
गांवों में जाकर हकीकत देखने पर साफ़ दिखता है कि शौचालयों के दरवाजों पर ताले लटक रहे हैं, पानी की सप्लाई महीनों से बंद है और कई जगह दीवारें टूट चुकी हैं। कहीं-कहीं तो शौचालय कूड़ा फेंकने की जगह बन चुके हैं।ग्रामीणों ने बताया कि कई शौचालयों की चाबियां किसी के पास नहीं हैं, कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। फिर भी कागज़ों में दिखाया जा रहा है कि सब कुछ “सुचारू रूप से संचालित” है।
ग्रामीण बोले — सफाईकर्मी को मिलता काम, तो बचता सरकारी धन
स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर शौचालय संचालन का जिम्मा ग्राम पंचायत के सफाईकर्मियों को दिया गया होता, तो सरकार की करोड़ों रुपये की धनराशि बच सकती थी। “हर महीने 9000 रुपये किसी समूह को देने का क्या मतलब, जब शौचालय कभी खुले ही नहीं?” — एक ग्रामीण ने कहा।
भ्रष्टाचार की गंध — हर ब्लॉक में एक जैसी कहानी
सूत्रों के अनुसार, यह गड़बड़ी केवल एक-दो गांवों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे जिले में फैली हुई है। हर ब्लॉक में दर्जनों शौचालय बंद हैं, लेकिन भुगतान बराबर हो रहा है।अगर जिला प्रशासन ने इस पर निष्पक्ष जांच कराई, तो करोड़ों रुपये के घोटाले का खुलासा होना तय है।
प्रशासन मौन, जनता आक्रोशित
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे “खुलेआम लूट का खेल” बताया है। उनका कहना है कि शासन की मंशा स्वच्छता लाने की थी, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही और मिलीभगत ने इस योजना की साख मिट्टी में मिला दी है।
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द जांच नहीं हुई, तो वे धरना-प्रदर्शन करने को मजबूर होंगे।
जनता का सवाल — “कब जागेगा प्रशासन?”
“स्वच्छ भारत मिशन का मतलब था सफाई, न कि सफाई के नाम पर धन की बर्बादी। शौचालय अगर जनता के काम नहीं आए तो योजना का क्या अर्थ?” — यही सवाल अब गांव-गांव में गूंज रहा है।
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