कविता-कुछ भवरों ने कलियों को छेड़ा

कविता-कुछ भवरों ने कलियों को छेड़ा

संजीव-नी।
 
बसंत गीत।
कुछ भवरों ने कलियों को छेड़ा।
छूटे कुछ पल,
बीते कुछ पल, 
कुछ पलों ने दिल को छुआ, 
कुछ पलों ने मन को दी पीड़ा,
कुछ पल थे सादे सादे, 
कुछ पलों में थी रोशनाई, 
कुछ पलों ने बगिया अपनाई, 
कुछ भवरों ने कलियों को छेड़ा,
कुछ कलियां भी बहुत शरमाई,  
कुछ पुष्प साथ छोड़ गए, 
कुछ फूलों ने गगन को चूमा, 
कुछ फूल धरा पर लेट गए, 
कुछ भृमर कानों में मधु रस घोल गए,
कुछ पल वियोग का रस छोड़ गए, 
चलो भूले कल की तरुणाई को,
आया तेजस्वी युवा सवेरा है, 
सूरज की रोशनी में, 
ऊर्जा शक्ति का बसेरा है, 
स्वीकारे, 
नव पल की स्फूर्त किरणों को, 
नव संकल्प, नव उद्देश,नव आशाओं का, 
स्वागत करें ईश्वर के आशीर्वचनो का,
नवीन मीठे आस्था से ओत प्रोत पलो के संग संग,
समस्त मंगल कामनाएओं के साथ ,
सादर, 
 
संजीव ठाकुर,

About The Author

स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel