swatantra prabhat kavita sangrah
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Read More... संजीव-नी|
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By Swatantra Prabhat Desk
हिंदुस्तान की सच्ची तस्वीर। नल पर अकाल की व्यतिरेक ग्रस्त जनानाओं कीआत्मभू मर्दाना वाच्याएं।एक-दूसरे के वयस की अंतरंग बातों,पहलुओं कोसरेआम निर्वस्त्र करती,वात्या सदृश्य क्षणिकाएं,चीरहरण, संवादों सेआत्म प्रवंचना, स्व-स्तुति,स्त्रियों के अधोवस्त्रों में झांकती...
Read More... कविता
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By Swatantra Prabhat UP
प्रभु पता बता सका न कोई। बीत जाती है सदियां बदल जाते हैं युग पर नहीं विस्मृत हो रहा प्रभु रूप अनोखा तुम्हारा। झर जाती पंखुरियाँ उड़ उड़ जाती सुगंध रूप ,सौंदर्य जिसका हमें घमंड मिट जाते हैं सदैव काल...
Read More... कुवलय
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By Swatantra Prabhat UP
कला का पुरस्कार अब मिलता नहीं है चित्र विचित्र होकर भी कोई बिकता नहीं। घर की वापसी अब कोई करता नहीं प्रजातंत्र के लिए कोई लड़ता नहीं। सभ्यता व संस्कृति से अब कोई डरता नहीं श्रमिक के लिए किसी से...
Read More... संजीव-नी|
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By Swatantra Prabhat UP
कैलेंडर चुप क्यों है, चिथडी दीवारों पर, रूआंसे उधडे पलस्तर, और केलेंडर आमने सामने, एक दूसरे को फूटी आंखों भी नहीं सुहाते, साथ रहना, रोना, खासना, मजबूरी थे सब, वैसे भी...
Read More... संजीव-नी।
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By Swatantra Prabhat UP
ईश्वर सब तेरी मेहरबानीl वह दूसरों की खुशहाली से परेशान है, दुनिया की चमक धमक से हैरान हैl खुद ने कभी ईमान का पसीना बहाया नहीं, बिना श्रम के कोई नहीं बना धन वान हैl धन की लिप्सा चाहत किसे...
Read More... संजीव-नी।
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By Swatantra Prabhat UP
प्रभु साथ दो मेराl प्रभु साथ दो मेराl जहां भी हो अंधेरा राह में सत्य की सदैव साथ हो तेराl जहां लोभ का डेरा पथ में न्याय के चलूं मैं अकेला प्रभु साथ दो मेराl वासना के प्रबल आंधी तूफान...
Read More... कविता,
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By Swatantra Prabhat UP
मोमिता हम शर्मिंदा है। क्या हम कहीं खो गए हैं क्या हम कहीं सो गए हैं या नपुंसकता की हद तक हम सब मजबूर हो गए हैं? क्या ऐसा तो नहीं कि हम हृदयहीन हो गए हैं गुड़िया और चिड़िया...
Read More... संजीव-नी।
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By Swatantra Prabhat UP
युग निर्मात्री नारी। कम ना आंको नारियों की शक्ति को, मां दुर्गा के प्रति इनकी भक्ति को। दुश्मनों का नाश करती मां भवानी अलौकिक अद्भुत है नारी हिंदुस्तानी। घर परिवार मुख्य धुरी है देश की नारी, उसे कभी मत समझो...
Read More... संजीवनी।
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By Swatantra Prabhat UP
(रक्षाबंधन का पवित्र पर्व)यह पवित्र रेशमी बंधन।भेज रही हूं तुम्हें सीमा परयह पवित्र रेशमी बंधनऔर मांग रही हूं एकअटूट और साहसिक वचन,इसे केवल रेशमी धागाना समझना मेरे भैयायह हर बहन की, हर...
Read More... संजीव-नीl
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By Swatantra Prabhat UP
कविता, भोले चेहरे कितने मगरूर हो गए हैं। रिश्ते अब अपने रिश्तों से दूर गए है, लोग आज कितने निष्ठुर हो गए हैं l दुश्मनो से दोस्त कर रहें गुजारिश, भोले चेहरे कितने मगरूर हो गए हैं। ज़माने की कैसी...
Read More... संजीव-नी।
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By Swatantra Prabhat UP
हिंदी पर न्योछावर हर दिल और जान है।हिंदी है हमारी प्यारी भाषा,हिंदी है एक शक्तिशालीऔर विशाल ज्ञान की भाषा,आओ बनाएं इसे राष्ट्रभाषा।हिंदी भाषा हमारा मान और अभिमान है,हिंदी राष्ट्र का वैभवशाली गौरव गान है।...
Read More... संजीव नी।
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By Swatantra Prabhat UP
कविता तू खुदा नहीं पर कमतर भी नहीं । तेरे सामने मेंरा वजूद बेहतर भी नहीं , तू खुदा नहीं पर कमतर भी नहीं । यारों ने आईना दिखाया मुझे बार बार जानता हूँ वो फकत आईना तेरा भी नहीं।...
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