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संपादकीय  स्वतंत्र विचार 

एक कवि, एक मधुशाला, और पूरी सदी पर छाया हुआ नशा

एक कवि, एक मधुशाला, और पूरी सदी पर छाया हुआ नशा हरिवंश राय बच्चन: हिंदी को सिर्फ भाषा नहीं, एक नशा बना दिया
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

अभी भी मिट्टी की खुशबू बची है।

अभी भी मिट्टी की खुशबू बची है। संजीव-नीl अभी भी मिट्टी की खुशबू बची है।लोहे और सीमेंट के अनंत फैलते जंगल मेंएक छोटा सा कोना अब भी साँस लेता जहाँ पौधों की कुछ टहनियाँधूल में हरियाली का सपना बुनती।पत्ते जो धूप नहीं देखते,...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

ख्वाबों की दुनिया सजाई थी मैंने। 

ख्वाबों की दुनिया सजाई थी मैंने।  संजीव-नी।    ख्वाबों की दुनिया सजाई थी मैंने।     दिल में ख़्वाबों की दुनिया सजाई थी मैंने,  तेरे आने की चाहत जगाई थी मैंने।     तेरे आने से महफ़िल गुलज़ार हो उठी, राह पलकों पे अपनी बिछाई थी मैंने।     तेरी पायल की छन...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

हिंदी पर न्योछावर हर दिल और जान है। 

हिंदी पर न्योछावर हर दिल और जान है।  संजीव-नी।     हिंदी पर न्योछावर हर दिल और जान है।     हिंदी है हमारी प्यारी भाषा, हिंदी है एक शक्तिशाली और विशाल ज्ञान की भाषा, आओ बनाएं इसे राष्ट्रभाषा।     हिंदी भाषा हमारा मान और अभिमान है, हिंदी राष्ट्र का वैभवशाली गौरव गान...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

कविता-हवा में खुशबू बन जाऊंगा मैं

कविता-हवा में खुशबू बन जाऊंगा मैं संजीव-नी।।     हवा में खुशबू बन जाऊंगा मैं ll     तेरी पलकों में समाँ जाऊंगा मैं।  तेरे स्वप्न में आज आ जाऊंगा मैं।     महकती बयार बन जाएगी तू,  तेरी सांसों में समा जाऊंगा मैं।। . महलों की अजीम शान है तू। तेरे...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

कविता-कुछ भवरों ने कलियों को छेड़ा

कविता-कुछ भवरों ने कलियों को छेड़ा संजीव-नी।    बसंत गीत। कुछ भवरों ने कलियों को छेड़ा। छूटे कुछ पल, बीते कुछ पल,  कुछ पलों ने दिल को छुआ,  कुछ पलों ने मन को दी पीड़ा, कुछ पल थे सादे सादे,  कुछ पलों में थी रोशनाई,  कुछ पलों...
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संपादकीय  स्वतंत्र विचार 

कड़वे और मीठे बोलों का खेल

कड़वे और मीठे बोलों का खेल शब्दों की महिमा को अपरंपार और अक्षर को नश्वर बताया गया है ।वैसे तो लेखनी की तीव्रता तलवार से ज्यादा नुकीली और भाले से ज्यादा चुभने वाली होती है। तलवार की धार से मनुष्य एक बार बच भी सकता है...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी। 

संजीव-नी।  वक्त कभी रुकता नहीं संजीव।     बेवफाई मैं किसी से करता नहीं सच्चा प्यार भी कभी मरता नहीं।     जो अपना सुरूरे मिजाज रखता है वो अपनी हद से कभी गुजरता नहीं।     जाम पीकर देखिये सियासत का कभी ता जिंदगी ये नशा...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी ।

संजीव-नी । ईश्वर का हर पल करो वंदन अभिनंदन।    जरा विचार कीजिए आपके पसंद करने न करने से  मैं आदमी न रहकर  छोटा जीव जंतु या चौपाया  हो जाऊंगा , और आपकी पसंदगी से  मैं आदमी से ईश्वर  हो जाऊंगा  या मेरी...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी।

संजीव-नी।    क्या सचमुच अकेला है वह।    अकेला है वह? उसने सोचा, वह अकेला नहीं है,  उसके सोचने के पहले सोचने के बाद और सोचने के बीच, वह अकेला नहीं है, सब हैं उसके साथ ।    कई मित्र हैं उसके,  हजारों,  वाह...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

काव्य प्रेम

काव्य प्रेम कब किताबों के पनों सेप्यार हो गयापता ही न चला। कब अल्फाज़ो कालफ्ज़ो से इकरार हो गयापता ही न चला। कब शब्दों कोमात्राओंं से नूरी इश्क़ हो गयापता ही न चला। कब प्रकृति का...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी।

संजीव-नी। अन्न की बर्बादी,दुनिया पर भारी।    ना करो अन्न की बर्बादी, भुखमरी पर है यह भारी, चारों तरफ छाई है गरीबी, भुखमरी और बेचारी, भोजन की अनावश्यक बर्बादी पूरी दुनिया पर पड़ रही है भारी।    थाली में लो भोजन उतना खा...
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