28 खीरी लोकसभा सीट पर अपनी प्रतिष्ठा बचा पाएंगे अजयमिश्रा टैनी,या पी डी ए देगा भा जा पा को मात

अंतरकलह और महंगाई, बेरोजगारी,किसान मुद्दों, तथा भितरघात से जूझ रहे माननीय

28 खीरी लोकसभा सीट पर अपनी प्रतिष्ठा बचा पाएंगे अजयमिश्रा टैनी,या पी डी ए देगा भा जा पा को मात

अपनी ही पार्टी के तीन-तीन विधायकों की नाराजगी ना पड़ जाए साहब को भारी 

निघासन विधानसभा के शशांक वर्मा ,पलिया के हरविंदर सिंह उर्फ रोमी साहनी, गोला से अमन गिरी की माननीय से नाराजगी के चलते बनाए हैं चुनाव प्रचार से व बड़ी मंचों से दूरी होना तथा किसी मीटिंग में शामिल न होना भितरघात की आशंका को बल देने को काफीहै
 
लखीमपुर खीरी लोकसभा चुनाव 2024 के महासंग्राम में चुनावी रणभेरी बज चुकी है। इस महासंग्राम में मुख्य रूप से मुकाबला एनडीए गठबंधन के प्रत्याशी और गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टैनीऔर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी पूर्व विधायक उत्कर्ष वर्मा तथा बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी अंशय कालरा के बीच ही सिमटता नजर आ रहा है। बहुजन समाज पार्टी से अंशय कालरा के मैदान में आने से और तेजी से सक्रिय होने के चलते चुनावी गणितीय समीकरण को उलट कर रख दिया है। अंशय कालरा सिख समाज से होने के चलते उनको सिख समाज और किसानों का समर्थन तो मिल ही रहा है साथ ही साथ दलित समाज का भी अच्छा खासा वोट मिलने की संभावना है।
 
दलित समाज के एक खास वर्ग का मत र्अंशय कालरा की ओर मोड़ने से सभी प्रत्याशियों की धड़कनें तेज हो गई हैं। चुनावी रणनीतिकारों और विश्लेषकों की माने तो सिख समाज से बसपा प्रत्याशी होने से भाजपा प्रत्याशी की मुश्किलें जरूर बढ़ सकती हैं जिसका कहीं ना कहीं सीधा फायदा इंडिया गठबंधन को होता नजर आ रहा है इसके साथ ही इंडिया गठबंधन प्रत्याशी उत्कर्ष वर्मा को पीडीएफ फार्मूले का पूरा-पूरा लाभ मिलने के चलते सपा प्रत्याशी अच्छी खासी वह मजबूत स्थिति में दिखाई पड़ रहा है।
 
28 खीरी लोकसभा के सीट पर कांटे की टक्कर दिखाई पड़ रही है चुनावी जानकारी के अनुसार वर्तमान में मुख्य मुकाबला सपा प्रत्याशी उत्कर्ष वर्मा और भाजपा प्रत्याशी अजय मिश्रा के बीच होता दिखाई पड़ रहा है। वही बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी अंशय कालरा  मुकाबला को त्रिकोणीय बनाने के लिए जी तोड़ मेहनत करते दिखाई पड़ रहे हैं।
 
तीन विधायक मंत्री जी से बताए जाते हैं नाराज,और बनाए हैं चुनाव प्रचार से दूरी
 
लोकसभा चुनाव का आगाज पूरे शबाब पर दिखाई पड़ रहा है ।प्रत्याशी व उसकी पार्टी के नेता समर्थक मतदाताओं को अपने प्रत्याशी के पाले में लाने को जहां जी जान एक किए हुए चुनावी विशात बिछाने में लगे हैं ।वही सत्तारूढ दल भाजपा के तीन-तीन विधायक अपने प्रत्याशी के चुनाव प्रचार से दूरी बनाए हुए दिखाई पड़ रहे हैं। यह सभी सत्ता रूढ़  दल भाजपा के वर्तमान विधायक हैं। चुनाव प्रचार व बड़ी चुनावी मंचों से दूरी बनाए विधायकों की बात करें तो गोला विधायक अमन गिरी, पलिया विधायक हरविंदर सिंह, उर्फ रोमी साहनी निघासन विधायक शशांक वर्मा के नाम चर्चा का विषय बने हैं।
 
राजनीति के जानकारो के अनुसार उक्त विधायक किसी भी बड़ी मंच पर नजर आते नहीं दिखाई पड़ रहे और ना ही प्रत्याशी के चुनाव प्रचार में ही दिखाई दे रहे हैं। इस सीट पर अपनों की नाराजगी से पार्टी जूझती दिखाई पड़ रही है। इसका कहीं न कहीं पार्टी प्रत्याशी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। चुनावी रणनीतिकारों और  विश्लेषकों के अनुसार बहुजन समाज पार्टी के  मैदान में आने से दलित वर्ग का एक बड़ा वोट बैंक भाजपा प्रत्याशी से कटता नजर आ रहा है। और किसान आंदोलन के समय घटित तिकोनिया हत्याकांड की घटना से नाराज सिख समाज के लोग और किसानों का एक बड़ा तबका भाजपा से किनारा करते हुए इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी की ओर जाता दिखाई पड़ रहा है।
 
इंडिया गठबंधन प्रत्याशी उत्कर्ष वर्मा की बात करें तो सजतीय कुर्मी बिरादरी व मुस्लिम मतदाताओं का एकमुश्त वोट मिलने के साथ-साथ अन्य पिछड़ा वर्ग के मिल रहे समर्थन के चलते इंडिया गठबंधन से सपा के प्रत्याशी उत्कर्ष वर्मा काफी मजबूत स्थिति में दिखाई पड़ रहे हैं ।देखा जाए तो भाजपा के पुराने कार्यकर्ता पदाधिकारी समेत कई विधायक मुख्य भूमिका में नजर नहीं आ रहे हैं। बहुजन समाज के प्रत्याशी सिख समाज होने के नाते सिखों में भारी समर्थन व सेंध मारी होती दिखाई पड़ रही है। रणनीतिकार की माने तो भाजपा का समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी अंदर खाने भारी नुकसान का अनुमान लगा रहे हैं। लेकिन भारतीय जनता पार्टी कड़ी मेहनत करके अपने मूल वोटो को वापस लाने का लगातार प्रयास करती नजर आ रही है, प्रयास कितना सार्थक होता है।
 
यह तो समय के गर्भ में है। समाजवादी पार्टी गांव गांव नुक्कड़ सभाओं के माध्यम से अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश में लगी है ।सभी प्रत्याशी वोटरों को लुभाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं ।कुल मिलाकर इस लोकतंत्र के महाकुंभ में आम जनता पूरी तरह से खामोश नजर आ रही है। वही दूर से ही चुनाव पर अपनी पहली नजर बनाए हुए देखना है कि ऊंट किस करवट बैठेगा। यह तो समय ही बताएगा।और 4जूनको मतगणना के बाद ही हो पायेगा क्लीयर कि  किसके सिर पर बनेगा जीत का सेहरा और किसके हिस्से में आयेगी हार।
 

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