बिहार में चुनाव का बिगुल बजते ही जोड़तोड़ में लग गई राजनैतिक पार्टियां
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बिहार में विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही राज्य और देश मे चुनाव को लेकर अटकलें भी थम गई।बिहार में इस बार दो चरण में मतदान होने जा रहा है।यह पिछले कई वर्षों में सबसे छोटा चुनाव है।बिहार में इस बार एसआईआर सबसे बड़ा फैक्टर है।मतदान सूची से 68.5 लाख नाम हट चुके है।बिहार में राजद और कांग्रेस का मुस्लिमो के समर्थन पर ही दोनो दलों का भविष्य टिका है।कांग्रेस मुस्लिम मतदाताओ की सबसे बड़ी हितचिंतक है।राजद के सुप्रीमो तेजस्वी भी मुस्लिमो के हितचिंतक होने का दावा करते है।बिहार में इनको भी लगने लगा है कि राजद और कांग्रेस सिर्फ दिखावटी बाते करती है।
इंडिया गठबंधन के दोनो घटक दल राजद और कांग्रेस में बड़ा याराना है।दोनो दल अभी तक अपने हिस्से की सीटें निकालने पर चिंतन कर रहे है,फिर भी संशय है।मुस्लिमो का बड़ा तबका यह समझता है कि तेजस्वी और कांग्रेस के राज में राजनीतिक रसूख ज्यादा रहता है।लेकिन सत्ता में आने पर ही वोट देने का सही फायदा है।मुस्लिमो को पुलिस आदि का सरंक्षण चाहिए होता है,वह राजद और कांग्रेस से मिल जाता है।इसलिए मुस्लिम समाज का झुकाव राजद की तरफ दिखाई देता है।बिहार में कांग्रेस का जनाधार नही के बराबर है।
मुसलमानों की पहली पसंद कांग्रेस दिखती है और दूसरी राजद।लेकिन कांग्रेस कई वर्षों से सत्ता से बाहर है।बिहार में समीकरण बदल गए है।नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व और नीतीश की विकास की नीतियों से दूसरे दलों में मतदाताओ ने किनारा करना शुरू कर दिया।हर चुनाव में अनुमान ध्वस्त होते दिखाई दिए है। पिछली विधानसभा के चुनाव में भाजपा को बड़ी जीत हासिल हुई थी। भाजपा को 74 सीटे मिली थी।19.46 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे। जदयू को 43 सीटे और 15.39 प्रतिशत वोट मिले थे। राजद को 75 सीटे मिली थी।और वोट 23.11 प्रतिशत प्राप्त हुए। उधर ,कांग्रेस की झोली में 19 सीटे प्राप्त हुई। कांग्रेस के मुस्लिम वोट में राजद की सेंधमारी से बड़ाफायदा मिला था।वामदल और अन्य के हिस्सों में 16-16 सीटे गई थी।
बिहार की गणित दलित,ओबिसी और मुस्लिम वोटों पर टिकी हुई है।दावे,वादे और बदलते समीकरण से मतदाताओ को भांपना मुश्किल होता जा रहा है।जदयू और भाजपा गठबंधन की एनडीए को बिहार से दोनो पार्टी की 12-12 सीटें मिली थी।बिहार में मुस्लिमो की 17.70 प्रतिशत आबादी का वोट शेयर दोनों पार्टियों के हिस्से में जाता है।मुस्लिमपरस्त राजनीति ने भाजपा की सम्भावनाओ को बढ़ा दिया है ।बीस सालों से बिहार की राजनीति में अंगद की तरह पैर जमा चुके सुशासन बाबू नीतीशकुमार की बिहार में उज्ज्वल छवि है।लोग नीतीश कुमार की नीतियों के कायल है।उनके शब्दो पर भरोसा करते है।
लालू के जंगलराज के बाद तेजस्वी ने अव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित कर नई रणनीति बनाकर पार्टी को 2020 में 75 सीटे दिलाई।बिहार के मतदाताओ पर घोर किया जाए तो ईबीसी की 36 प्रतिशत आबादी के हितों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।बिहार में कुल 63 प्रतिशत ओबिसी-ईबीसी की आबादी ही निर्णायक होगी।एससी -एसटी के 21 प्रतिशत वोट पर राजनैतिक दलों की नजर है।जाति के इस गणित को समझना टेडी खीर है। लेकिन विकास के वादे और रोजगार पर सत्तारूढ़ दल ने महिलाओ को मदद की है।उससे भी एनडीए को सीधा लाभ मिलेगा।जदयू के पिछले 2020 के विधानसभा चुनाव में वोट शेयर ने घटा था।उसके कई कारण हो सकते है।
बिहार की लोकगायिका मैथेली की बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ने की सम्भावना जताई जा रही है।उसके बाद नरेंद्र मोदी के प्रति भरोसा और विकास के लिए जरूरत बिहार में ज्यादा दिखती है ।भाजपा ने ओबोसी,ईबीसी,एसी-एसटी पर भर भरोसा जताया है।राजद,कांग्रेस में मुस्लिमो को अपनी तरफ खींचने की कवायद से हिन्दुओ में ध्रुवीकरण हुआ तो उसका फायदा सीधा भाजपा को हो सकता है।जहां तक कांग्रेस की बात है तो तेजस्वी ने उसे अपने पीछे दौड़ने के लिए मजबूर कर दिया है।राहुल गांधी की लाख कोशिशों और तेजस्वी की सारी रणनीतियों के बावजूद बिहार में लोगो का ध्यान आकृष्ट तो कर सकते है लेकिन सत्य को पराजित नही जा सकता है।
कांग्रेस ने राजद की अंगुली पकड कर बिहार की राजनीति में भूचाल लाने की रणनीति के पीछे प्रियंका की चाटूकारिता रही है।दोनो भाई बहन की बिहार में प्रतिष्ठा का सवाल खड़ा हो गया है।बिहार में कांग्रेस पहले से ही कमजोर है।उधर,11 नामो के साथ बिहार में आम आदमी पार्टी ने सूची जारी की है।बिहार में बीजेपी की मैराथन बैठक में बिहार के सिटिंग विधायको को लेकर चिंतन किया जा रहा है। दावेदारी किसको देनी है इसका मसाला केंद्रीय नेतृत्व को भेजा जाएगा।सुझाव समिति की सभी सदस्यों ने अपना सुझाव दिया है और मजबूत उम्मीदवार को तवज्जों दी जा रही है।
बीजेपी बिहार में एनडीए के सहयोग से पूरी ताकत झोंकेगी।शाहबाद और मगध एनडीए के लिए प्राथमिकता रहेंगे।क्योकि 2020 के विधानसभा चुनाव में इन क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन नही कर सकी।बिहार में कांग्रेस पहले से ही कमजोर स्थिति में है।ऊपर से सीटो के त्याग संशय से चिंतन है।कांग्रेस के पास बिहार में मजबूत नेता की जरूरत है। तभी समीकरण सधता नजर आ सकता है।
वैसे तो सूबे में तिकोना संघर्ष है।लेकिन चतुष्कोणीय मुकाबला करा सकती है।राजद और कांग्रेस की सौदेबाजी पर सबकी नजर है।कांग्रेस को अब नाक बचाने की चिंता है।गांधी परिवार की विरासत का भूत लोगो के दिमाग से तीस वर्ष पहले ही उतर चुका था।क्योकि कांग्रेस धरातल पर आ गई। कांग्रेस के धुरंधर कहे जाने वाले नेता भी पिछले चुनाव में हार गए।अब असली परीक्षा तो इन दलों की चुनाव में है। सभी के साथ मिलकर प्रत्याशी उतार रहे है। हालांकि चुनाव के बीच अभी 38 दिन बाकी है।लेकिन राजनैतिक दल अभी से चुनाव की तैयारी में जुट गए है। राजद औऱ कांग्रेस दोनो विरोधी गठबंधन है।कांग्रेस के हित राजद से मेल नही खाते।
राजद कांग्रेस खोई हुई राजनीतिक जमीन पर काबिज है।क्योंकि चुनौती भाजपा की है।तीस साल से बिहार में वापसी का सपना देखने वाले राहुल को हकीकत समझ मे आ ही गई।तीसरे पायदान पर खड़ी भाजपा से अपना मुकाबला मान रहे है ।चुनाव की बयार अभी उलट बहने से कांग्रेस डरी हुई है।क्योंकि कांग्रेस के पास भाजपा से मुकाबला करने के लिए ठोस मुद्दे नही है।अब तो चुनाव के बाद ही तस्वीर साफ होगी।
कांतिलाल मांडोत
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