ज्ञान के पन्ने
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अक्सर लोग अपने आप से तरह-तरह के सवाल करते हैं कि उनका यह जीवन ऐसा या वैसा है तो आखिर किसलिए है। कुछ लोग सोचते हैं कि आखिर वे कौन हैं, उनका इस जगत में क्या स्थान है। व्यवहार मनोवैज्ञानिक सप्रमाण यह कहते हैं कि इस दुनिया के बहत्तर फीसद लोग लगभग इसी तरह का चिंतन करते हैं। इन सवालों का जवाब हमको मिलता है किताबों में । किताब एक ऐसी तिजोरी है, जिसमे बेहिसाब दौलत भरी पड़ी है। इसे पढ़कर जो भी इस संपदा को पा लेता है, वह सबसे बढ़कर धनवान बनता है । जिज्ञासा शांत होने पर अनमोल धन यानी संतोष धन मिलता है।
कहा भी गया है कि 'जब आवै संतोष धन सब धन धूरि समान ।' किताब एक चमत्कार तो करती ही है, वह पढ़ने वाले में हौले-से एक जादुई खुशी तरंगित कर देती है कि वह उदासी और अवसाद से बाहर निकलकर एक संपूर्ण मनुष्यता के भाव में बहने लगता है। इसलिए एक पुस्तक पढ़ना बिल्कुल वैसा ही है जैसे किसी अंतरंग मित्र से गपशप करना । अच्छी और उपयोगी पुस्तक का ज्ञान व्यक्ति को नई सीमाओं तक पहुंचने का जरिया बनाता है। जब व्यक्ति पुस्तक को पढ़ने के साथ गुन भी लेता है, तब वह एक अद्भुत ऊर्जा को महसूस करता है और अपनी सीमाओं से संघर्ष करता है। वह अपनी दैहिक और मानसिक सीमाओं को पार करने का कौशल विकसित करता है। इसके बाद, व्यक्ति नए स्तरों को प्राप्त करने के लिए एक नया आत्मविश्वास और क्षमताएं प्राप्त करता है।
इस लिहाज से किताब खुशी और संतोष के अलावा संघर्ष के लिए साहस को ताकत देती है। महात्मा गांधी ने जान रस्किन की 'अनटु द लास्ट' पढ़कर अपने भीतर एक अनोखा परिवर्तन महसूस किया था, जिसे उन्होंने 'सर्वोदय' के रूप में रूपांतरित किया और एक शिक्षण उपकरण के रूप में उपयोग करना चुना । इसी तरह लियो टाल्स्टाय की पुस्तक 'द किंगडम आफ गाड इज विदइन यू' से गांधीजी काफी प्रभावित हुए थे और उन्होंने मानवता की रक्षा के लिए अहिंसा को विरोध का शस्त्र बनाया। दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष के केंद्र के रूप में स्थापित आश्रम का नाम भी उन्होंने टाल्सटाय आश्रम रखा।
आजकल कुछ विद्यालय भी पढ़ने को एक जरूरी गतिविधि बना रहे हैं और अकबर-बीरबल और तेनालीराम की पुस्तकों को विद्यार्थियों के ग्रीष्मकालीन अवकाश के अध्ययन के लिए शामिल कर रहे हैं । कारण यह कि इन किताबों में सहज ही जीवन की छोटी-बड़ी समस्या का सरल समाधान मिल जाता है। साथ ही तत्कालीन भारत के माहौल और आचार-व्यवहार की झलक भी मिलती है। पुस्तकें मनुष्य के नैतिक मूल्यों को पोषित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं । संतों और प्रसिद्ध लोगों द्वारा लिखी गई किताबें हमें एक अच्छा इंसान बनने के सही नैतिक मूल्यों के बारे में सिखाती हैं। अगर 'पंचतंत्र' और 'हितोपदेश' जैसी पौराणिक कृतियां जीवन का नैतिक संस्कार सिखाती हैं तो 'सिंहासन बत्तीसी' और 'चंद्रकांता संतति' जैसी किताबें हमें जीवन के अनेक अनदेखे पहलू भी दिखा देती है। उसी तरह 'हैरी पाटर' और 'सिंड्रेला' जैसी किताबें हमें जीवन की कड़वी सच्चाइयों से दूर खूबसूरत दुनिया के बारे में सपने दिखाती हैं।
किताबें हर बच्चे के लिए बचपन का असली खजाना हैं । ये अच्छाई और बुराई के बीच फर्क करना भी सिखाती हैं। एक इंसान के शौक कई तरह के हो सकते हैं। उनमें से कुछ किताबों के शौक रखने वाले लोग होते हैं जो कभी अकेलापन महसूस नहीं करते और अपने जीवन में एक बेहतर दोस्त होने का अनुभव करते हैं । किताब का लेखक अपने जीवन भर के सफर और अपने ज्ञान को शब्दों में पिरो कर उसे एक किताब का रूप देता है। ऐसे अनेक लेखकों के अनेक तरह के विचार हमारे सामने एक किताब के रूप में होता हैं, जिसे पढ़कर मनुष्य के मस्तिष्क में सकारात्मक और शांत विचारों की धारा प्रवाहित होने लगती है । चीजों को गहराई से अनुभव करने में किताबों की भूमिका किसी के छिपी नहीं है।
एक तरह से किताब औषधि का भी काम करती है जो जीवन की हर छोटी-बड़ी दुविधा से बाहर आने का रास्ता क्षण भर में दिखा देती है। किताबों में लिखे शब्दों को लेखक अपने अंदाज में लिखता है, जिसे कविता, लेख, शायरी या कहानी के रूप में पढ़ा या सुना जाता है, मगर शब्दों का अर्थ वही होता है। हालांकि यह किसी लेखक के अंदाज पर निर्भर करता है कि वह किस तरह अपनी बातों को लोगों के सामने रखता है। इसलिए जरूरी है कि युवाओं को किताबों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए, जिसके माध्यम युवा या अन्य वर्ग के लोग एक दूसरे के विचारों से रूबरू हो सकें । शायद यही वजह है कि महान कथाकार और कहानी सम्राट प्रेमचंद की लिखी हुई कहानियां आज भी दुनिया-भर में बहुत अधिक पढ़ी जाती हैं। हर इंसान अपनी मनोभावना का प्रतिबिंब कहीं देखना चाहता है। ओ हेनरी की हर कहानी में सामाजिक माहौल पढ़कर पाठक को वह कहानी अपनी-सी लगती है।
इसीलिए किताबें हमारे जीवन की एकमात्र ऐसी अनमोल वस्तु है जो हमें खुद से रूबरू कराती है । किताब बिना बोले हमारे मन में एक आवाज भर देती है । इसके माध्यम से हम सही ज्ञान की प्राप्ति कर सकते हैं, जिसकी कोई सीमा नहीं है । शब्दों का अर्थ हमारे जीवन को एक दिशा देने का काम करता है या यों कहें कि किताबों में किसी व्यक्ति के जीवन को बदलने तक की क्षमता होती है। ऐसी तमाम पुस्तकें हैं जो जीवन की अनेक परतें खोलती हैं। मन के लिए साबुन का काम करती हैं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य शैक्षिक स्तंभकार मलोट
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