ओबरा ऊर्जा राजधानी में अंधेरा, भीषण गर्मी में बिजली कटौती से जनता त्रस्त, अधिकारियों से पूछ रही सवाल

ऊर्जा नगरी में जनता त्रस्त, बिजली के लिए लोग तरसे

ओबरा ऊर्जा राजधानी में अंधेरा, भीषण गर्मी में बिजली कटौती से जनता त्रस्त, अधिकारियों से पूछ रही सवाल

लोगों ने लगाया विभाग के ऊपर मनमानी का आरोप

अजित सिंह (ब्यूरो रिपोर्ट) 

सोनभद्र/ उत्तर प्रदेश-

ओबरा जो अपनी विशाल बिजली उत्पादन क्षमता के कारण कभी 'ऊर्जा की राजधानी' के रूप में प्रतिष्ठित था, आज स्वयं अंधकार में डूबा हुआ है। इस क्षेत्र का प्रमुख बिजली संयंत्र, जिसमें एशिया के कभी नंबर वन माने जाने वाले पुराने प्लांट की 5 कार्यरत इकाइयां (यूनिट नंबर 9, 10, 11, 12, और 13) कुल 694 मेगावाट बिजली का उत्पादन कर रही हैं (यूनिट 9: 135 मेगावाट, यूनिट 10: 153 मेगावाट, यूनिट 11: 114 मेगावाट, यूनिट 12: 138 मेगावाट, यूनिट 13: 154 मेगावाट), और 2025 में शुरू हुई नई सी परियोजना 1320 मेगावाट का अतिरिक्त उत्पादन कर रही है। इस प्रकार, ओबरा में कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता 2,014 मेगावाट है।

विचित्र विडंबना यह है कि इतनी भारी मात्रा में बिजली उत्पादन होने के बावजूद, ओबरा नगर के निवासियों को पर्याप्त और स्थिर बिजली आपूर्ति नहीं मिल पा रही है। यह एक गहरा विरोधाभास है कि जिस धरती पर बिजली पैदा हो रही है, वहीं के लोग बिजली के लिए तरस रहे हैं। मामूली तकनीकी खराबी भी पूरे क्षेत्र की बिजली आपूर्ति को पल भर में बाधित कर देती है। भीषण गर्मी के इस मौसम में, जब पारा आसमान छू रहा है, ओबरा के स्थानीय निवासियों को दिन में कई बार अघोषित और लंबी बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है।

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खासकर तपती दोपहर में, जब गर्मी अपने चरम पर होती है, बिजली गुल हो जाती है, जिससे छोटे बच्चे, असहाय बुजुर्ग और पहले से ही बीमारियों से जूझ रहे लोग असहनीय पीड़ा का अनुभव कर रहे हैं। यह स्थिति तब और भी निराशाजनक लगती है जब उत्तर प्रदेश शासन द्वारा नागरिकों को 24 घंटे निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के स्पष्ट और कठोर निर्देश जारी किए गए हैं। स्थानीय निवासियों का स्पष्ट आरोप है कि बिजली विभाग के जिम्मेदार अधिकारी इन शासकीय निर्देशों का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं। जिस क्षेत्र में इतनी विशाल मात्रा में बिजली का उत्पादन होता है, वहां के नागरिकों को ही बिजली के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, और उनकी बार-बार की शिकायतों पर कोई ठोस और प्रभावी कार्रवाई नहीं हो रही है।

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ऐसा प्रतीत होता है कि बिजली विभाग के अधिकारी गहरी निद्रा में लीन हैं, जिससे आम जनता की जायज तकलीफें अनसुनी रह जा रही हैं।क्षेत्र के निवासियों का कहना है कि ओबरा और इसके आसपास का इलाका पहले से ही कई गंभीर पर्यावरणीय और औद्योगिक समस्याओं से जूझ रहा है। यहां व्यापक स्तर पर जारी अवैध खनन गतिविधियां, क्रेशर इकाइयों से निकलने वाला जानलेवा धूल और असहनीय शोर प्रदूषण, और लगातार होने वाली ब्लास्टिंग के कारण न केवल वायुमंडल प्रदूषित हो रहा है, बल्कि हमारी धरती मां को भी रोजाना भारी क्षति पहुंच रही है। ब्लास्टिंग की तेज आवाज और कंपन से कमजोर घरों की खिड़कियां और दरवाजे तक हिल जाते हैं, जिससे स्थानीय लोगों में डर और असुरक्षा का स्थायी भाव व्याप्त हो गया है।

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इन तमाम असहनीय मुश्किलों के बीच, बिजली की अनियमित और बार-बार होने वाली कटौती ने ओबरा के आम नागरिकों के जीवन को और भी नारकीय बना दिया है। असहनीय गर्मी के कारण घरों में रहना दूभर हो गया है, और बिजली न होने से पंखे, कूलर और एयर कंडीशनर जैसे जीवन रक्षक उपकरण मात्र शोभा की वस्तु बनकर रह गए हैं। बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह से बाधित हो रही है, बुजुर्गों और बीमारों का हाल बेहाल है, और लोगों के दैनिक कामकाज भी पूरी तरह से ठप हो रहे हैं। अब स्थानीय निवासियों को यह कटु सत्य महसूस होने लगा है कि ओबरा में रहने का कोई औचित्य नहीं रह गया है, यह गौरवशाली 'ऊर्जा राजधानी' अब केवल कागजों पर ही जीवित है।

स्थानीय निवासियों ने बिजली विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों से बार-बार विनम्रतापूर्वक गुहार लगाई है, लेकिन उनकी गंभीर और जायज समस्याओं का कोई ठोस और स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। अब ओबरा की त्रस्त और आक्रोशित जनता बिजली विभाग के उच्चाधिकारियों से सीधे और तीखे सवाल पूछ रही है कि आखिर क्यों, इतना अधिक बिजली उत्पादन करने वाला क्षेत्र होने के बावजूद, ओबरा के लोग बिजली की इस विकट और असहनीय समस्या से जूझ रहे हैं? क्यों उत्तर प्रदेश शासन के स्पष्ट और बाध्यकारी निर्देशों का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है।क्षेत्र के आक्रोशित नागरिकों ने जिला प्रशासन और ऊर्जा विभाग के शीर्ष अधिकारियों से तत्काल और निर्णायक हस्तक्षेप की पुरजोर मांग की है।

उनका स्पष्ट और दृढ़ कहना है कि इस जानलेवा भीषण गर्मी में ओबरा के नागरिकों को निर्बाध और गुणवत्तापूर्ण बिजली आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए और बिजली विभाग के लापरवाह, उदासीन और कर्तव्यहीन अधिकारियों के खिलाफ सख्त और अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। यदि जल्द ही इस गंभीर और मानवीय संकट का कोई ठोस और स्थायी समाधान नहीं निकाला गया, तो ओबरा के धैर्यवान निवासियों का आक्रोश ज्वालामुखी बनकर फट सकता है, जिसके गंभीर और अप्रिय परिणाम हो सकते हैं।

यह दुखद और निराशाजनक स्थिति न केवल ओबरा के आम और मेहनती लोगों के लिए असहनीय कष्ट का कारण बन रही है, बल्कि यह 'ऊर्जा की राजधानी' के रूप में इस क्षेत्र की ऐतिहासिक और गौरवशाली पहचान पर भी एक गहरा और शर्मनाक प्रश्नचिह्न लगाती है। अब परम आवश्यकता है कि संबंधित विभाग गहरी नींद से जागें और ओबरा के पीड़ित निवासियों को इस असहनीय गर्मी में बिजली की नियमित, निर्बाध और गुणवत्तापूर्ण आपूर्ति सुनिश्चित करके तत्काल राहत प्रदान करने के लिए ठोस, प्रभावी और दीर्घकालिक कदम उठाएं।

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