संजीव-नीl

चिरागों तुम सूरज बन जाना।

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चिरागों तुम सूरज बन जाना।

गर्दिश में संग न छोड़ देना,
या खुदा मेरी राहें मोड़ देना।

ढेरों तुम फेखो,मुझे आता है,
पत्थरों को भी निचोड़ देना।

ऐ चिरागों कभी सूरज बन कर,
आंधियों को भी झिंझोड़ देना,

जुल्म की इन्तहां है,ये भी तो,
कलियो के खिलते ही,उन्हें तोड़ देंना।

आह भी नहीं,कत्ल संगीन भी हुआ,
हादसे को तुम, हसीन सा मोड़ देना।

जब कहानी मेरी,सुनाना उन्हें,
कत्ल का मेरे,जिक्र छोड़ देना।

एतबार के टुकड़े गिरे,इधर उधर,
संजीव तुम,इन्हें एहसासों से जोड़ देना,

संजीव ठाकुर 

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