aaj ka sahitya
कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी।

संजीव-नी। महिला शक्ति को प्रणाम।    कम ना समझो  महिलाओं की शक्ति को, मां दुर्गा के प्रति  इनकी भक्ति को।  नारी के जीवन के कई आयाम करते उनको नमन और प्रणाम।    दुश्मनों का नाश  करती मां भवानी अलौकिक अद्भुत है  नारी हिंदुस्तानी।...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी|

संजीव-नी| उजालों में जो दूर से लुभाते हैं|    उजालों में जो दूर से लुभाते हैं, रात को वो ही ख़्वाबों में आते हैं |    कोई कतई मज़बूरी नहीं आदत है, हम तो सदैव ग़मों में भी मुस्कुरातें हैं|    तेरा तसव्वुर पानें...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नीl

संजीव-नीl चिरागों तुम सूरज बन जाना।गर्दिश में संग न छोड़ देना,या खुदा मेरी राहें मोड़ देना।ढेरों तुम फेखो,मुझे आता है,पत्थरों को भी निचोड़ देना।ऐ चिरागों कभी सूरज बन कर,आंधियों को भी झिंझोड़ देना,जुल्म की...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

गर्माहाट 

गर्माहाट  गर्माहाट     बहुत अच्छा लगता है न  तुमको जीवों को  पका कर स्वाद से खाना।    प्रकृति भी तो  पका रही हैं  अब तुमको  सूर्य की तप्त किरणों में।    उसको भी तो  थोड़ा स्वाद आना चाहिए  तुम क़ो रुलाने में।    बहुत अच्छा...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी।

संजीव-नी। खुशियों के छोटे पल ।छोटे छोटे पल खुशिया दे जाते है,चाहत,कामना,मायुषी दे जाते है।लालच हमेशा बुरी बला ही रही,परोपकार के पल सुख दे जाते है।ख्याति,धन बहुत कुछ हो सकते है,शांति के दो पल जिंन्दगी...
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संपादकीय  स्वतंत्र विचार 

साहित्य अध्ययन और मनन जीवन की श्रेष्ठता का उचित माध्यम।

साहित्य अध्ययन और मनन जीवन की श्रेष्ठता का उचित माध्यम। साहित्य अध्ययन, उन्नयन मनुष्य के जीवन में उत्कृष्टता का आधार होता है।साहित्य सदैव मनुष्य के जीवन में संवेदना, संवेदनशीलता एवं मानवता लाने का सकारात्मक कार्य करता है। हमारा साहित्य, भाषा, हमें आत्मिक गौरव का सदैव अभिभाष कराती है। इसीलिए जीवन...
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संपादकीय  स्वतंत्र विचार 

'एक देश एक चुनाव' का विरोध क्यों ?

'एक देश एक चुनाव' का विरोध क्यों ?   स्वतंत्र प्रभात      जितेन्द्र सिंह पत्रकार      एक देश एक चुनाव के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को सौंप दी है। लाजमी है कि जब कोई नया प्रयोग होता है   यह...
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विचारधारा  स्वतंत्र विचार 

बढ़ती हुई जीडीपी – टांट पर मखमल

बढ़ती हुई जीडीपी – टांट पर मखमल    रंजन कुमार सिंह बहुत दिनों से सुनता आया हूं कि हमारी जीडीपी बढ़ रही है। यह सुनकर खुश भी होता रहा हूं कि हमारी जीडीपी बढ़ रही है। इस बात पर भी गर्व होता रहा है कि अब हम दुनिया...
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