अल्ट्राटेक भलुवा माइंस की हैवी ब्लास्टिंग से ओबरा नगर में दहशत, अधिकारियों की उदासीनता से जनता में रोष
ओबरा नगरवासियों ने लगाया खनन निरीक्षक के ऊपर मनमानी का आरोप, रहवासी दहशत में जीने को मजबूर
छात्र नेता अभिषेक अग्रहरि ने किया मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत, लोगों ने किया अल्ट्राटेक प्रबंधन व खनन निरीक्षक के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन
अजित सिंह/राजेश तिवारी ( ब्यूरो रिपोर्ट)
सोनभद्र जनपद के ओबरा नगर के वार्ड 14 में स्थित अल्ट्राटेक भलुवा माइंस में हो रही अनियंत्रित और अत्यधिक हैवी ब्लास्टिंग ने स्थानीय निवासियों के जीवन में भय और संकट पैदा कर दिया है। लगातार हो रही ब्लास्टिंग से लोगों के मकानों में बड़ी-बड़ी दरारें, जल टंकियों में लीकेज और नींव कमजोर होने जैसे गंभीर मुद्दे सामने आ रहे हैं। इसके अतिरिक्त, ध्वनि कंपन और उड़ते पत्थर जनमानस के लिए एक बड़ा खतरा बन गए हैं।
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इस गंभीर समस्या को लेकर कई सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने विभागीय अधिकारियों को बार-बार अवगत कराया, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। छात्र नेता अभिषेक अग्रहरी ने इस संबंध में आईजीआरएस पोर्टल पर 03.04.2025 (शिकायत संख्या, 40020025005439) और 28.04.2025 (शिकायत संख्या: 40020025008766) को शिकायतें दर्ज कराईं।
चौंकाने वाली बात यह है कि इन शिकायतों पर स्थल निरीक्षण किए बिना ही अधिकारियों ने कार्यालय में बैठकर कागजी रिपोर्ट तैयार कर मामलों को रफा-दफा कर दिया। बार-बार रिमाइंडर भेजने के बाद, खनन निरीक्षक मनोज पाल 22 जुलाई 2025 को निरीक्षण के लिए ओबरा पहुंचे। हालांकि निरीक्षण शुरू होने से पहले वे सीधे अल्ट्राटेक के कार्यालय में चले गए, जहां से शिकायतकर्ता ने उन्हें मौके पर बुलाया।

जैसे ही स्थानीय लोगों को यह जानकारी मिली कि उनके घरों की जांच हो रही है, वे बड़ी संख्या में इकट्ठा हो गए। लोगों ने अधिकारियों के सामने अपनी पीड़ा व्यक्त की। ब्लास्टिंग के दौरान पत्थर उनके घरों पर गिरते हैं, भूकंप जैसे झटके महसूस होते हैं, और बच्चे, महिलाएं व बुजुर्ग मानसिक रूप से प्रभावित हो रहे हैं। विशेष रूप से दोपहर 1 से 2 बजे के बीच लोगों का जीना दूभर हो जाता है।
ब्लास्टिंग के साथ-साथ, ओवरलोड गाड़ियों का दिन-रात आवागमन सड़कों को बर्बाद कर चुका है, और इन गाड़ियों के कारण अब तक कई दुर्घटनाएं भी हुई हैं। यह सब प्रशासन की आंखों के सामने हो रहा है, फिर भी खनन निरीक्षक मौन बने रहे। निरीक्षण के दौरान जब आम जनता ने उनसे सवाल पूछने शुरू किए तो वे आधे निरीक्षण के बाद बिना कोई जवाब दिए मौके से निकल गए। पत्रकारों द्वारा बाइट मांगे जाने पर भी उन्होंने चुप्पी साधे रखी।
यह स्थिति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि जब जनहित से जुड़ा कोई गंभीर मामला सामने आता है तो जिम्मेदार पदों पर बैठे लोक सेवक न केवल अपनी जिम्मेदारी से पीछे हटते हैं, बल्कि जनता को न्याय से भी वंचित करते हैं। ऐसी लापरवाही और गैर-जवाबदेही लोकतंत्र के लिए अत्यंत घातक संकेत हैं। प्रशासनिक ढांचे की यह निष्क्रियता अब जनता के धैर्य की परीक्षा ले रही है।

यदि शीघ्र उच्चस्तरीय जांच कर प्रभावित परिवारों को न्याय नहीं मिला, तो यह आंदोलन अब शांत नहीं रहने वाला। यह घटना उन कई उदाहरणों में से एक है जहां स्थानीय समुदायों को औद्योगिक गतिविधियों के नकारात्मक प्रभावों का सामना करना पड़ता है और उन्हें अक्सर उचित निवारण नहीं मिल पाता।
ऐसे मामलों में जन प्रतिनिधियों की भूमिका निश्चित रूप से अधिक प्रभावी होनी चाहिए, ताकि वे जनता की आवाज़ बनकर प्रशासन को जवाबदेह ठहरा सकें और प्रभावित समुदायों को न्याय दिला सकें।इस समस्या का समाधान कैसे किया जा सकता है ताकि स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा हो सके और खनन कार्य भी सुचारु रूप से चल सके।

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