ओबरा में मौत को दावत दे रहीं हैं रासपहाड़ी की जानलेवा खदानें, सरेयाम नियमों की उड़ाई जा रही धज्जियां
क्षेत्र में धुएं का गुब्बार , मंडराया वन्य जीवों पर खतरा, पर्यायवरणविदों ने जताई चिंता
जिम्मेदारों ने साधी चुप्पी स्थानीय लोगों में आक्रोश
अजित सिंह ( ब्यूरो रिपोर्ट)
ओबरा/सोनभद्र-
ओबरा क्षेत्र के रासपहाड़ी इलाके में मे.साई बाबा स्टोन वर्कस द्वारा संचालित पत्थर खदान लगातार गंभीर आरोपों और विवादों के केंद्र में बनी हुई है। 31 मार्च 2016 से चल रही यह खदान, जिसकी लीज 30 मार्च 2026 तक है, अब स्थानीय लोगों के लिए "मौत का कुआं" बन गई है। अंजू राय, जिनके पति धीरज राय हैं, के स्वामित्व वाली यह खदान आराजी संख्या 5414 में 3.43 एकड़ क्षेत्र में फैली है, लेकिन यहां खनन नियमों का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है, जिससे काम करने वाले मजदूरों और आसपास रहने वाले निर्दोष नागरिकों की जान खतरे में है।
खदान तक पहुंचने और निकलने का एकमात्र रास्ता लगभग 12 फीट की सीधी और अत्यंत खतरनाक चढ़ाई वाला है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस दुर्गम रास्ते पर भारी वाहनों के इंजन बंद हो जाने या ब्रेक फेल हो जाने जैसी तकनीकी खराबी आने की प्रबल आशंका बनी रहती है। उनका यह दृढ़ विश्वास है कि इस खड़ी चढ़ाई पर कभी भी कोई बड़ा और जानलेवा हादसा हो सकता है। यह सवाल पूरी तरह से जायज है कि जब जिम्मेदार अधिकारी इस तरह के जानलेवा खनन कार्य को संचालित करने की अनुमति दे रहे हैं, तो क्षेत्र में लगातार हो रहे दुर्घटनाओं का सिलसिला कब थमेगा।
खनन माफिया द्वारा किए जा रहे बेलगाम और अंधाधुंध खनन के कारण क्षेत्र में पहले ही जलस्तर काफी नीचे चला गया है, जिससे इलाके में पानी की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है। अब इस जानलेवा और खतरनाक चढ़ाई ने मजदूरों की मुश्किलें और भी कई गुना बढ़ा दी हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में इस खड़ी चढ़ाई की भयावहता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है, जिसे ऊपर से देखने मात्र से ही आम लोगों को चक्कर आने लगते हैं। खदान संचालक ऐसे जोखिम भरे माहौल में काम करने वाले गरीब मजदूरों और ड्राइवरों का जमकर शोषण कर रहे हैं, जो चंद रुपयों की खातिर अपनी जान जोखिम में डालकर भारी-भरकम वाहन चलाने के लिए मजबूर हैं।
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इस गंभीर स्थिति पर तमाम जिम्मेदार अधिकारी रहस्यमय चुप्पी साधे हुए हैं, जिससे कई संदेह पैदा होते हैं। अंदर की खबरों के अनुसार, खदान में बिना किसी सुरक्षा मानक के आने-जाने का एक ही रास्ता है और बेंच बनाए बिना अंधाधुंध खनन कार्य जारी है, जिससे यह खड़ी चढ़ाई और भी खतरनाक हो गई है। इसके अतिरिक्त, स्थानीय लोगों ने खदान में ब्लास्टिंग के नियमों के घोर उल्लंघन का भी गंभीर आरोप लगाया है। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, खनन क्षेत्र में ब्लास्टिंग का निर्धारित समय दोपहर 1:00 बजे से दोपहर 2:00 बजे के बीच है, लेकिन खदान संचालक नियमों को ताक पर रखकर दोपहर 2:00 बजे के बाद भी ब्लास्टिंग करते हैं।
इस अनियमित और गैरकानूनी ब्लास्टिंग के कारण आसमान में कई किलोमीटर तक जहरीले धुएं का गुबार फैल जाता है, जिससे आसपास के निवासियों को सांस लेने में तकलीफ और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो रही हैं। ब्लास्टिंग के कारण उड़ने वाली धूल की मोटी परत उनके घरों की छतों और आसपास हर जगह जमी हुई देखी जा सकती है, जिससे उनका सामान्य जीवन जीना भी मुश्किल हो गया है। उनके घरों में गहरी दरारें आ रही हैं, जिससे उन्हें भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है।
उन्होंने प्रशासन से इस जानलेवा खनन और ब्लास्टिंग पर तत्काल रोक लगाने और खनन नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने की मांग की है, ताकि मजदूरों और क्षेत्र के निवासियों की जान और स्वास्थ्य की रक्षा की जा सके।यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि जिला प्रशासन और संबंधित विभाग इस गंभीर मामले पर कब ध्यान देते हैं और कब तक इस "मौत के कुएं" और नियमों के खुलेआम उल्लंघन पर प्रभावी लगाम लगाते हैं।
स्थानीय लोगों का यह भी आरोप है कि खदान में अंधाधुंध ब्लास्टिंग करके सीमा से कहीं ज्यादा बोल्डर निकाले जा चुके हैं, और प्रभावशाली लोगों के संरक्षण के कारण खतरनाक क्षेत्रों में भी जबरन लोडिंग का काम किया जा रहा है। जब तक प्रशासन इस अवैध और खतरनाक खनन पर लगाम नहीं लगाता, तब तक इस तरह की जानलेवा घटनाएं होती रहेगी।
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