कभी दहशत का दूसरा नाम बन गई थी कुसुमा नाइन

कभी दहशत का दूसरा नाम बन गई थी कुसुमा नाइन

चार दशक पहले चंबल के बीहड़ों में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में दहशत का पर्याय बनी डकैत कुसुमा नाइन इलाज के दौरान दम तोड़ गई. वह इटावा जेल में हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रही थी. 70 के दशक में कुसुमा का यूपी से लेकर एमपी तक के बीहड़ों में आतंक था. उस पर हत्या समेत दर्जनों केस दर्ज थे. 61 वर्षीय कुसुमा को कभी सबसे खूंखार 'दस्यु सुंदरी' माना जाता था.कभी जातीय उन्माद के चलते निर्दोषों का खून बहाकर बदला लेने वाली जर्जर शरीर के साथ चिर निद्रा में सदा के लिए सो गयी। 
 
दरअसल, बहमई कांड में डाकू फूलन देवी ने 22 राजपूतों की सामूहिक हत्या की थी. जिसके चलते 1984 में कुसुमा ने बाद में 14 मल्लाहों को मौत नींद की सुला दिया था. उनके घरों को भी आग के हवाले कर दिया था. कुसुमा के निधन के बाद नरसंहार वाले औरैया के गांव अस्ता में जश्न का माहौल है. जिस पति केदार नाई का साथ छोड़ कर डकैत माधव मल्लाह के साथ कुसुमा भाग कर बीहड़ में कूदी थी आखिर अंतिम समय में उसी पति केदार नाई ने उसे मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार कर संसार से विदा किया। मूल रूप से जनपद के महेवा ब्लाक के टिकरी मुस्तकिल की रहने वाली कुसम का शव उसकी ससुराल कुठौंद ब्लाक के कुरौली रविवार 2 मार्च की शाम को लाया गया था। रात अधिक होने से सोमवार सुबह शव यात्रा निकली और गांव के बाहर उसका अंतिम संस्कार किया गया।
 
बता दें कि कुसुमा नाइन पर दो दर्जन से अधिक  मुकदमा दर्ज थे। इसमें कई मुकदमों एमें गवाहों और साक्ष्य न मिलने से वह उनमें बरी हो गई। बाद में कानपुर के सेवानिवृत्त एडीजी की अपहरण कर हत्या के मामले में वह ऐसा फंसी की उसे आजीवन कारावास की सजा हुई, इसी सजा के चलते इटावा जेल में कैद थी। 
 कुसुमा नाइन का जन्म साल 1964 में उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के टिकरी गांव में हुआ था। पचनद के जंगलों की कुख्यात डकैत कुसुमा नाइन पर हत्या समेत 24 से अधिक मामले दर्ज थे। देश में जितनी महिला डकैत थीं, उनमें कुसमा सबसे खूंखार मानी जाती थी। सिरसाकलार थाना क्षेत्र के टिकरी गांव निवासी डरू नाई की पुत्री कुसुमा नाइन का जन्म 1964 में हुआ था। 
 
पिता गांव के प्रधान थे। चाचा गांव में सरकारी राशन के कोटे की दुकान चलाते थे। इकलौती संतान होने के चलते लाड़ प्यार से पल रही थी। 13 साल की उम्र में उसे पड़ोसी माधव मल्लाह से प्रेम हो गया। वह उसके साथ चली गई। करीब दो साल तक उसका कोई पता नहीं चला।इसके बाद उसने पिता को चिट्ठी लिखी कि वह दिल्ली के मंगोलपुरी में माधव के साथ है। तब पिता दिल्ली पुलिस के साथ पहुंचे और उसे घर ले आए। पिता ने उसकी शादी कुरौली गांव निवासी केदार नाई के साथ कर दी। माधव कुसुमा से प्रेम करता था। 
 
इस के बाद माधव मल्लाह पर डकैती का केस लगा और कुसुमा के पिता ने उसकी शादी केदार नाई से कर दी। बता दें कि माधव मल्लाह चंबल के कुख्यात डकैत का साथी था। शादी की खबर पाने के कुछ माह बाद माधव गैंग के साथ कुसुमा के ससुराल पहुंचा और उसे अगवा कर लिया। माधव, उसी विक्रम मल्लाह का साथी था; जिसके साथ फूलन देवी का नाम जुड़ता थाविक्रम मल्लाह की गैंग में रहने के दौरान ही उसे फूलन के जानी दुश्मन लालाराम को मारने का काम दिया गया। लेकिन फूलन से अनबन के कारण बाद में कुसुमा नाइन, लालाराम के साथ ही जुड़ जाती है। फिर विक्रम मल्लाह को ही मरवा देती है। इसी कुसुमा नाइन और लालाराम ने बाद में सीमा परिहार का अपहरण किया था, जो कि कुख्यात डकैत के रूप में उभरकर सामने आई थी। साल 1981 में फूलन देवी बेहमई कांड को अंजाम दिया था।
 
चुर्खी थाना क्षेत्र के एक गांव में 1982 में लालाराम और कुसुमा का गैंग रूका था। पिथऊपुर के पीछे इस गांव में डकैत अक्सर रहा करते थे। इसकी जानकारी तत्कालीन चुर्खी थानाध्यक्ष केलीराम को हुई, तो वह दबिश देने गांव पहुंच गए। उस समय कुसुमा शीशा लेकर मांग में सिंदूर भर रहीं थी। जैसे ही उसे शीशे में पुलिस दिखी तो उसने पुलिस टीम पर फायरिंग कर दी थी। इस घटना में थानाध्यक्ष केलीराम और सिपाही भूरेलाल की मौत हो गई थी। विभिन्न थानों की फोर्स के साथ एसपी जब तक पहुंचे लालाराम, कुसुमा बीहड़ों की ओर भाग गए थे। कुसुमा पुलिस की दो थ्री नाट थ्री राइफल लूट ले गई थी।
 
अपनी जातीय प्रतिशोध की आग में जलने के कारण ही उसने संतोष और राजबहादुर नामक दो मल्लाहों की आंखें निकाल कर बेरहमी की नई इबारत लिख दी थी. पिछले 20 साल से इटावा जेल में उम्रकैद की सजा काट रही कुसमा टीबी रोग से ग्रसित थी.  उसके क्रूरता के किस्से आज भी लोगों के जेहन में हैं.  कुसुमा नाइन ने 2004 में मध्य प्रदेश के भिंड में आत्मसमर्पण किया था. तभी से वह जेल में बंद थी. इस बीच उसे कई बीमारियों ने जकड़ लिया. उम्र का भी असर रहने लगा. इन सबके बीच बीते दिनों लखनऊ के एक अस्पताल में इलाज के दौरान कुसुमा का निधन हो गया। 
 
बेहमई कांड के बाद फूलन ने सरेंडर कर दिया था। इसके बाद बीहड़ में कुसुमा नाइन का दबदबा तो बढ़ा ही बल्कि लूट, डकैती और हत्या की दर्जनों घटनाओं को अंजाम भी दिया। वह अपनी क्रूरता के लिए भी कुख्यात थी। जिसमें वह किसी को जिंदा जला देती थी तो किसी की आंखें निकाल लेती थी। साल 1984 में कुसुमा का नाम सुर्खियों में तब आया, जब उसने बेहमई कांड की तर्ज पर 15 मल्लाहों को एक साथ गोली मार दी थी।इसी घटना के बाद उसकी लालाराम से भी अनबन हो गई और वह रामाश्रय तिवारी उर्फ फक्कड़ बाबा से जुड़ गई। उस पर एक रिटायर्ड एडीजी समेत कई पुलिसवालों की हत्या का भी आरोप था। कई सालों बाद उसका बीहड़ों से मन उचट गया। साल 2004 में कुसुमा और फक्कड़ ने अपनी पूरी गैंग के साथ पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। तब से कुसुमा जेल में थी और उम्रकैद की सजा काट रही थी ।
 
कुसुमा की कहानी आधी सदी पहले के उस भारत की सामाजिक व्यवस्था डकैतों के समानांतर प्रभुत्व और उसमे अवयस्क लडकियों के योन शोषण और गिरोह के सरगनाओं की रखैल बना कर गिरोह की कमान संभालने जातीय उन्माद के चलते सामूहिक नरसंहार करने के दौर का हवाला देती है। जिस कालखंड में शोले रील नही रीयल स्टोरी हुआ करती थी।

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