सोनम की सुनो दिल्ली वालो

सोनम की सुनो दिल्ली वालो

स्वतंत्र प्रभात 
सोनम वांग्चुक एक पखवाड़े से खून जमा  देने वाली सर्दी में अनशन पर हैं ,लेकिन दुर्भाग्य की दिल्ली को न सोनम दिखाई दे रहे हैं और न सुनाई दे रहे है। सवाल ये है कि क्या दिल्ली सचमुच दृष्टि बाधित ' और बहरी हो गयी है या फिर दिल्ली ने जानबूझकर देखना-सुनना बंद कर दिया है ? सोनम वांग्चुक को दिल्ली की सल्तनत नहीं चाहिए ।  सोनम केवल अपनी जन्मभूमि लद्दाख  को पूर्ण राज्य बनाने और संविधान की छठी अनुसूची लागू करने की मांग को लेकर अनशन पर हैं।


दिल्ली और पूरा देश चुनाव के खुमार में है। देश को न दिल्ली के बाहर अनशन करते किसान दिखाई दे रहे हैं और न ही दिल्ली से 1020 किमी दूर लद्दाख में अनशनरत सोनम वांग्चुक। देश की सत्तारूढ़ पार्टी को तो छोड़िये  दीगर विपक्षी राजनीतिक पार्टियों को भी सोनम वांगचुक नहीं दिखाई दे रहे है।  सोनम अकेले आपने लोगों की लड़ाई लड़ रहे हैं। आपको बता दें कि  सोनम की मातृभूमि लद्दाख पहले जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा होती थी लेकिन हमारी मौजूदा सरकार ने जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा छीन कर उसके तीन हिस्से कर दिए थे।

सोनम का लद्दाख अब किसी राज्य का हिस्सा नहीं है।  लद्दाख केंद्र के आधीन है। सोनम चाहते हैं कि  लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाये और वहां संविधान की छथि सूची लागो की जाये। सबको साथ लेकर सबका विकास करने वाली हमारी दिल्ली की सरकार से इस दिशा में बातचीत विफल रहने के बाद वांगचुक ने अपना अनशन छह मार्च को शुरू कर दिया था।  इसके लिए उन्होंने लेह के नवांग दोरजे मेमोरियल पार्क को चुना । हाड़ कंपा देने वाली ठंड और शून्य से नीचे तापमान के बावजूद उनके प्रदर्शन में हिस्सा लेने वालों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। आपको बता दूँ कि  तीन फरवरी को भी लेह में छठी अनुसूची को लागू करने की मांग को लेकर कड़ाके की ठण्ड में एक बड़ा प्रदर्शन हुआ था, जिसमें हज़ारों लोगों ने भाग लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की थी।


सोनम वांगचुक  नवाचारी और शिक्षा सुधारक हैं।उनकी अपनी एक छोटी सी राजनीतिक पार्टी न्यू लद्दाख मूमेंट भी है। सोनम  छात्रों के एक समूह द्वारा 1988 में स्थापित स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (एसईसीओएमएल) के संस्थापक-निदेशक भी हैं। सोनम ने लद्दाख के युवाओं पर थोपी गयी  शिक्षा प्रणाली को ठुकराते हुए  एसईसीएमओएल परिसर को डिजाइन किया जो पूरी तरह से सौर-ऊर्जा पर चलता है, और खाना पकाने, प्रकाश या तापन (हीटिंग) के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग नहीं करता।

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सोनम वांगचुक  से मेरी मुलाकात पिछले महीने ही ग्वालियर में हुई थी ।  उन्हें ग्वालियर के आईटीएम विश्विद्यालय ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि देने के लिए ग्वालियर आमंत्रित किया था। जो लोग सोनम के बारे में नहीं जानते उन्हें बता दूँ कि सोनम को सरकारी स्कूल व्यवस्था में सुधार लाने के लिए सरकार, ग्रामीण समुदायों और नागरिक समाज के सहयोग से 1994 में "ऑपरेशन न्यू होप" शुरु करने का श्रेय भी प्राप्त है। सोनम ने बर्फ-स्तूप तकनीक का आविष्कार किया है जो कृत्रिम हिमनदों (ग्लेशियरों) का निर्माण करता है, शंकु आकार के इन बर्फ के ढेरों को सर्दियों के पानी को संचय करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। फिल्म थ्री इडियट्स में आमिर खान का किरदार फुंगसुक वांगडू  सोनम  की जिंदगी से प्रेरित था।

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सोनम से दिल्ली नहीं डरती क्योंकि सोनम के पास कोई बड़ी सियासी ताकत नहीं है ,लेकिन सोनम के पास मौलिक विचारों की कमी नहीं है ।  उन्होंने पिछले सालों में जब चीन को सबक सीखने के लिए 'बुलेट नहीं वॉलेट ' का मन्त्र दिया तह तब चीन की सरकार तक सनाके में आ गयी थी । उन्होंने चीनी सामान के बहिष्कार की अपील की था ।  लद्दाख के लोग सोनम को उसी तरह प्यार करते हैं जैसे भाजपा के लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को।

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 सोनम वांगचुक के  अनशन के 13  वें दिन उनके समर्थन में सैकड़ों लोग भी भूखे रहे और रात को भूखे सोए. उन्होंने स्पष्ट किया कि आखिर उनकी मांग क्या है और इसका मकसद लोगों को लद्दाख में प्रवेश से रोकना नहीं है। उन्होंने बताया कि छठी अनुसूची का मकसद सिर्फ बाहरी लोगों को ही रोकना नहीं है, बल्कि पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील इलाके या संस्कृतियां-जनजातियां को  सभी स्थानीय लोगों से भी बचाने की जरूरत है।


सवाल ये है कि क्या सोनम की मांगे अनुचित हैं ? राष्ट्रविरोधी हैं ? क्या उन्हें पूरा नहीं किया जाना चाहिए ? आज सोनम की मांगें और आमरण अनशन नक्कारखाने में टूटी की आवाज बनकर रह गया है लेकिन कल मुमकिन है कि सत्तामद में डूबी दिल्ली सोनम की बात को सुने ,समझे और मान भी ले। सोनम न कांग्रेसी हैं और न भाजपाई।  वे हेमंत सोरेन या अरविंद केजरीवाल भी नहीं हैं ,जिन्हें कि किसी घोटाले में शामिल बताकर जेल भेजा जा सके।

सोनम भूमिपुत्र है।  इंजीनियर हैं और अपनी पढ़ाई-लिखाई तथा तजुर्बों से अपने लोगों को लाभान्वित करना चाहते हैं। क्या सोनम की साधना में भी व्यवधान आएगा ? क्या सोनम हार जायेंगे ? क्या ये देश सोनम के साथ खड़ा होगा ? ये ऐसे तमाम सवाल हैं जो केवल दिल्ली की केंद्रीय सत्ता से ही नहीं बल्कि सभी राजनितिक दलों और आम जनता से किये जा रहे है।  क्या आप सोनम के साथ हैं ?
@ राकेश अचल

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