वोट चोरी और सीनाज़ोरीः राहुल गांधी पर हमला करने वाले पूर्व ब्यूरोक्रेट्स कौन हैं
स्वतंत्र प्रभात ब्यूरो प्रयागराज।
राहुल गांधी और कांग्रेस को पत्र लिखने वालों में 16 पूर्व जज, 123 पूर्व नौकरशाह (ब्यूरोक्रेट्स, जिसमें IPS, IAS आदि शामिल). 14 पूर्व राजदूत, 133 कुछ प्रमुख नाम पार्टी में हैं। इनमें पूर्व जज जस्टिस शुभ्रो कमल मुखर्जी, राजीव लोचन, विवेक शर्मा, एसएन धींगरा, अधीर कुमार गोयल, पूर्व नौकरशाहों में पूर्व RAW प्रमुख संजीव त्रिपाठी, पूर्व IPS प्रवीण दीक्षित, पूर्व IAS नवीन कुमार, पूर्व UP मुख्य सचिव दीपक सिंघल और पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत शामिल हैं।
राहुल गांधी ने कुछ राज्यों के चुनावों (बिहार, हरियाणा, कर्नाटक) में बीजेपी और चुनाव आयोग पर "वोट चोरी" का आरोप लगाया, जिसमें मतदाता सूचियों में हेरफेर (जैसे SIR प्रक्रिया के दौरान) शामिल है। उन्होंने दावा किया कि उनके पास "ओपन एंड शट प्रूफ" (स्पष्ट सबूत) है, लेकिन EC ने इसे "बेबुनियाद" बताया और हलफनामा मांगा।
आरोप लगाने वाले कुछ पूर्व नौकरशाहों का अतीत बताता है कि इन पर सत्ता की दलाली से लेकर करप्शन के गंभीर आरोप रहे हैं। कुछ ने आरोपों का सामना भी किया है।
दीपक सिंघलः ये महाशय यूपी के मुख्य सचिव रह चुके हैं और कई जिलों में डीएम भी रहे हैं। यूपी में एक समय में हर साल राज्य के 10 सबसे भ्रष्ट डीएम की सूची जारी होती थी। उस सूची में पहला नाम दीपक सिंघल का होता है। दीपक सिंघल कभी मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के काफी नज़दीक रहे हैं। उसके बाद इनका जुड़ाव बीजेपी के साथ हो गया और बड़े नेताओं से सीधे संपर्क हैं। दीपक सिंघल को 2016 में यूपी का चीफ सेक्रेटरी बनाया गया लेकिन दो महीने में ही हटा दिया गया।
1982 बैच के आईएएस दीपक सिंघल गोमती रिवर फ्रंट प्रॉजेक्ट की जांच से जुड़े रहे हैं। लखनऊ में इसे अखिलेश यादव की सरकार ने बनाया था। दीपक सिंघल को अपने रिश्तेदार की एक ब्लैकलिस्टेड कंपनी को बहाल करने का आरोप भी लगा था। वह पहले चीनी मिल घोटाले की जांच में भी फंसे थे। वह और उनका परिवार आयकर विभाग की जांच के दायरे में रहे हैं। उन पर और उनके परिवार पर कथित टैक्स चोरी और शेल कंपनियों से कनेक्शन होने का आरोप है। एक मीडिया हाउस में उनकी रिश्तेदारी भी है।
प्रवीण दीक्षितः महाराष्ट्र के पूर्व डीजीपी प्रवीण दीक्षित भी चुनाव आयोग के पक्ष में और राहुल गांधी के खिलाफ हस्ताक्षर करने वालों में हैं। डीजीपी बनने से पहले प्रवीण दीक्षित एसीबी में थे और महाराष्ट्र के तमाम मेडिकल कॉलेज घोटालों की जांच सही से न होने का आरोप विपक्ष ने लगाया था। 2020 में प्रवीण दीक्षित ने बीजेपी का समर्थन करते हुए सीएए और एनआरसी को सही बताया था। उन्होंने सुपर कॉप कहे जाने वाले जूलियस रिबेरो का विरोध किया था। रिबेरो एक ईमानदार और धर्मनिरपेक्ष पुलिस अधिकारी रहे हैं।
अनिल त्रिगुणायत: पूर्व राजदूत हैं। विवेकानंद फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं। बीजेपी से भी जुड़े हुए हैं। विवेकानंद फाउंडेशन की स्थापना आरएसएस से जुड़े लोगों ने की थी। भारत के मौजूदा एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) अजित डोभाल इसके संस्थापक डायरेक्टर में से एक हैं। सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी से जुड़े लोग और कई अधिकारी इस फाउंडेशन से जुड़े हुए हैं।
जस्टिस शुभ्रो कमल मुखर्जीः जस्टिस शुभ्रो कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस थे।। वो भी बीजेपी से जुड़े हुए हैं। कर्नाटक सरकार द्वारा महान स्वतंत्रता सेनानी टीपू सुल्तान की जयंती मनाने को उनकी अदालत में चुनौती दी गई थी। तथ्य बताते हैं कि जस्टिस शुभ्रो कमल मुखर्जी ने टीपू सुल्तान के संदर्भ में गलत टिप्पणियां की थीं। जस्टिस शुभ्रो ने कहा था कि टीपू सुल्तान स्वतंत्रता सेनानी नहीं थे। हालांकि इतिहास यही बताता है कि अंग्रेजों के खिलाफ दक्षिण में पहली लड़ाई टीपू सुल्तान ने लड़ी थी। उस समय उनके पास मिसाइल थी। जिसके अवशेष ब्रिटिश म्यूजियम में आज भी रखे हैं और वहां पर उस मिसाइल को बनाने का ब्यौरा भी उपलब्ध है।
लक्ष्मी पुरीः ये एक पूर्व आईएफएस हैं और इनका सबसे महत्वपूर्ण परिचय यह है कि वो केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी की पत्नी हैं। हरदीप पुरी और लक्ष्मी पुरी खुद को पीएम मोदी का फैन भी कहते हैं। हरदीप पुरी बीजेपी में हैं तो लक्ष्मी पुरी भी बीजेपी से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई हैं।
संजीव त्रिपाठीः पूर्व आईपीएस संजीव त्रिपाठी रिसर्स एनालिसिस विंग (रॉ) के प्रमुख रहे हैं। उनका संबंध उत्तर प्रदेश से है। नरेंद्र मोदी जब 2014 में गुजरात के मुख्यमंत्री का पद छोड़कर देश का नेतृत्व करने बीजेपी के शीर्ष नेताओं के बीच पहुंचे तो संजीव त्रिपाठी बीजेपी में शामिल होने वाले लोगों में सबसे आगे थे। बरेली के रहने वाले संजीव त्रिपाठी ने आज भी बीजेपी का झंडा थामा हुआ है। वो सरकार को सलाह देते हैं और पीएमओ में उनकी पहुंच है। लेकिन जब कोई मौका आता है तो वो पूर्व ब्यूरोक्रेट बन जाते हैं। हरदीप पुरी भी संजीव त्रिपाठी के साथ उन्हीं दिनों बीजेपी में शामिल हुए थे।
जस्टिस एसएन ढींगराः जस्टिस ढींगरा उस ढींगरा आयोग के अध्यक्ष थे, जिसका गठन हरियाणा की बीजेपी सरकार ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा की संपत्ति की जांच करने के लिए बनाया था। जस्टिस ढींगरा ने जांच करके रिपोर्ट बंद लिफाफे में हरियाणा सरकार को सौंप दी लेकिन ढींगरा आयोग की रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं हुई। जस्टिस ढींगरा अक्सर अपने बयानों में बीजेपी की नीतियों का अप्रत्यक्ष समर्थन करते नज़र आते हैं।
इन 272 नामों में और भी हैं जो बहुत ही विवादास्पद हैं और सभी के बारे में लिखने के लिए इस रिपोर्ट को लंबा करना पड़ेगा। लेकिन 272 पूर्व नौकरशाह चुनाव आयोग को अब भी विश्वसनीय मान रहे हैं, यह दिलचस्प है।

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