राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने मां मसूरिया धाम में नवाया शीश।, धाम के पारंपरिक मेले में आस्था का प्रवाह निर्बाध।

राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने मां मसूरिया धाम में नवाया शीश।, धाम के पारंपरिक मेले में आस्था का प्रवाह निर्बाध।

स्वतंत्र प्रभात ।
ब्यूरो प्रयागराज ।

जनपद प्रयागराज यमुनापार बारा तहसील के थाना लालापुर क्षेत्र अंतर्गत ग्राम सभा अमिलिया तरहार स्थित मां मसूरिया धाम में शुक्रवार का दिन भक्ति और परंपरा के अद्भुत संगम का साक्षी बना। धाम परिसर में राजा महेन्द्र प्रताप सिंह, छोटे युवराज भंवर त्रयंम्बकेश्वर प्रताप सिंह तथा धाम के प्रबंधक अमरेन्द्र प्रताप सिंह उर्फ मुन्नू एवं राजा कमलाकर इंटर कॉलेज के प्रबंधक राकेश प्रताप सिंह ने पहुंचकर माता के समक्ष श्रद्धा से सिर नवाया।
 
दर्शन के दौरान देवी की कृपा और आध्यात्मिक शांति की अनुभूति उनके चेहरे पर स्पष्ट झलक रही थी। इस पावन अवसर पर पूर्व मेला प्रभारी त्रिलोकी नाथ तिवारी तथा वर्तमान मेला प्रभारी एवं पत्रकार अनिल तिवारी उर्फ दीपु भी उपस्थित रहे, जिन्होंने धाम की व्यवस्थाओं और परंपराओं को सहज रूप से आगे बढ़ाने में अपनी निरंतर भूमिका निभाई— माता के दर पर कदम स्वयं रुक जाते हैं, भक्ति की पंक्ति में कोई विराम नहीं— एक माह से संचालित हो रहा पारंपरिक मेला अब अंतिम पड़ाव पर है, किन्तु माता के दरबार में भक्तों की आस्था अपने पूरे चरम पर बनी हुई है।
 
ऐसा प्रतीत होता है कि "मां मसूरिया के दर पर पहुंचकर कदम स्वयं थम जाते हैं, और मन केवल उनकी आराधना में रम जाता है।" हर आगंतुक श्रद्धा की उसी अनुभूति के साथ प्रांगण में प्रवेश करता है और माता के चरणों में अपनी मनोकामनाएं सौंपकर लौटता है।—सतर्कता, शांति और अनुशासन—मेला प्रशासन का संतुलित संयोजन— मेला परिसर में पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था का संयोजन इस बार विशेष रूप से संतुलित और अनुशासित देखा गया।
 
अधिकारी लगातार उपस्थित रहकर यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि किसी भक्त को कोई असुविधा न हो। मार्गदर्शन, सुरक्षा और स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया गया है, जिसके कारण पूरा आयोजन शांतिपूर्ण ढंग से संचालित हो रहा है।— पूर्वजों से चली आ रही परंपरा—मां मसूरिया का मेला आस्था का अमिट अध्याय—मां मसूरिया धाम का यह परंपरागत मेला सदियों से स्थानीय संस्कृति और परिवारों की आस्था में गहराई से रचा-बसा है। पूर्वजों की मान्यता के अनुरूप यह आयोजन आज भी उसी पवित्रता, श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाया जा रहा है। मेले के अंतिम दिनों में भी भक्तों की वही निष्ठा दिखाई देती है, जो पीढ़ियों से इस धाम की विशेष पहचान रही है। 

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