नक्सलवाद अंतिम चरण में, आत्मसमर्पण की तेज रफ्तार से सीमावर्ती इलाकों में बड़ी सफलता
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केंद्र और राज्य सरकारों के संयुक्त अभियानों, सटीक खुफिया इनपुट, स्थानीय विकास योजनाओं और सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई के कारण नक्सलियों का नेटवर्क लगभग बिखर चुका है।सैकड़ों नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है और वे मुख्यधारा में लौटने का संकल्प लिए है। बीते एक-दो वर्षों में छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, महाराष्ट्र और आंध्र-ओडिशा सीमा पर नक्सलियों का बड़े पैमाने पर आत्मसमर्पण हुआ है।
कई दर्जन कैडर अपने हथियारों के साथ पुलिस के सामने पेश हुए।इन आत्मसमर्पण करने वालों ने मुख्यधारा में लौटकर समाज और परिजनों के साथ नई शुरुआत का संकल्प लिया। सरकार की पुनर्वास नीति और सुरक्षा-सुधार कार्यक्रमों ने इस प्रक्रिया को तेज किया है। छत्तीसगढ़,मध्यप्रदेश सीमा पर बड़ी सफलता पुलिस को मिली है।सीमा क्षेत्र में लगातार सर्च-ऑपरेशन और जंगल क्षेत्रों में बनाए गए नए सुरक्षा कैंपों की वजह से उग्रवादी गतिविधियों में तेज कमी आई है।
हाल ही में सात शीर्ष माओवादी मुठभेड़ में ढेर किए गए।कई ठिकाने नष्ट हुए,और हथियार-गोलाबारूद के बड़े भंडार बरामद किए गए। स्थानीय प्रशासन का कहना है कि इस क्षेत्र में अब सक्रिय नक्सलियों की संख्या बहुत कम रह गई है।झारखंड का बोकारो और छत्तीसगढ़ का बस्तर नेटवर्क का तेजी से पतन हुआ है।यह राज्य और देश के लिए सुखद कह जाने वाली और रोमांचित करने वाली खबर है।बोकारो, सरायकेला-खरसावां, चाईबासा और सिंहभूम के घने इलाकों में नक्सलियों का दबदबा वर्षों तक रहा।
लेकिन अबसुरक्षा बलों की चौकसी,सड़क निर्माण और ग्रामीण कनेक्टिविटीबढ़नेके कारण नक्सली संगठनों की पकड़ लगातार कमजोर हुई है। बस्तर जैसे क्षेत्रों में भीडीआरजी, सीआरपीएफ डिओबीआरए और बीएसएफके संयुक्त ऑपरेशन ने माओवादियों का नेटवर्क कई हिस्सों में लगभग ध्वस्त कर दिया है।
अमित शाह का बयान ने कहा था कि 2026 तक नक्सलवाद का पूर्ण खात्मा हो जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल में स्पष्ट रूप से कहा है कि 2026 तक नक्सलवाद का पूरी तरह सफाया कर दिया जाएगा। अब उग्रवाद की अंतिम सांसें चल रही हैं।सरकार तीन मोर्चों पर काम कर रही है।सुरक्षा मोर्चा, तेज़ ऑपरेशन, नए कैंप, आधुनिक हथियारआदि में पुलिस सक्रियता दिखा रही है।
विकास मोर्चा में सड़क, बिजली, बैंकिंग, इंटरनेट, स्कूलआदि में अमूलचूल परिवर्तन हुआ है।
जन-संपर्क मोर्चा के जरिए स्थानीय युवाओं को रोजगार, कौशल और मुख्यधारा से जोड़ने जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है।इससे नक्सलवाद कमजोर हुआ है। शीर्ष नेतृत्व की लगातार मौत गिरफ्तारी और नये युवाओं की भर्ती लगभग बन्द होने के कारण नक्सलियों की कमर टूट गईं है।इसके बाद जनता का सहयोग कम होना,गांवों में सरकारी योजनाओं की पहुँच और
लगातार खुफिया और तकनीकी निगरानी से नक्सली निराश हुए है।
भारत लंबे समय से चले आ रहे नक्सलवाद की समस्या को निर्णायक मोड़ पर पहुँचा चुका है। आत्मसमर्पण की तेज़ लहर, सक्रिय कैडरों में भारी गिरावट और सुरक्षा बलों की तगड़ी कार्रवाई ने यह स्पष्ट कर दिया है कि माओवादी आंदोलन अब अपने अंतिम चरण में है। 2026 तकपूरी तरह सफाया हो जाएगा। यह लक्ष्य अब पहले की तुलना में अधिक वास्तविक और सम्भव लगने लगा है।
महिलाओं की बड़ी भूमिका है।
आत्मसमर्पण की लहर और मजबूत शासन की निर्णायक सफलता है ।भारत का नक्सलवाद, जो कभी देश की आंतरिक सुरक्षा का सबसे बड़ा खतरा माना जाता था, अब अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँच चुका है। पिछले एक दशक में सुरक्षा बलों की निरंतर कार्रवाई, केंद्र सरकार की सुदृढ़ नीति और विकास कार्यों के उल्लेखनीय विस्तार ने इस उग्रवाद की जड़ों को हिलाकर रख दिया है।
हाल के महीनों में जिन अभियानों को अंजाम दिया गया, उनमें कई कुख्यात नक्सलियों के साथ-साथ कई महिला उग्रवादी भी मुठभेड़ में ढेर हुई हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि नक्सलवाद में महिलाओं की भागीदारी बड़ी संख्या में रही है, जो इस आंदोलन का एक कम-चर्चित लेकिन महत्वपूर्ण पहलू रहा है।महिला नक्सलियों की बड़ी संख्या है। आंदोलन की जड़ों को समझने कीआवश्यकता है।नक्सली संगठनों में लंबे समय से महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रही है।
अनुमान है कि कुछ इलाकों में माओवादी दस्ता 30–40 प्रतिशत तक महिलाओं से बना रहा। महिलाओं के नक्सली आंदोलन में जुड़ने के प्रमुख कारण थे। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की भारी कमी सामाजिक शोषण और गरीबी पिछले दशकों में सरकारों की उपेक्षा और विकास से कटे हुए आदिवासी क्षेत्रों में राजनीतिक बेरुखी से यह परिस्थितियाँ ऐसी थीं जिनमें कई महिलाओं को लगा कि हथियार उठाना ही रास्ता है। यही वे परिस्थितियाँ थीं जिनका फायदा नक्सली नेतृत्व ने उठाया और दूर-दराज के गांवों में महिलाओं की भर्ती को बढ़ावा किया।
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