गुरु का चयन करते समय 'पानी पीजे छानकर, गुरु कीजे जानकर' मुहावरा मन्त्रवत जानना चाहिए
नकली गुरुओं से सनातन संस्कृति के स्वरुप पर आ रही आंच
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रिपोर्ट_ रामलाल साहनी
स्वतंत्र प्रभात मीरजापुर
मीरजापुर। भगवान दत्तात्रेय की जयंती पर नगर के बूढ़ेनाथ मुहल्ले में स्थित पौराणिक मन्दिर में जूनागढ़ आश्रम के महंत डॉ योगानन्द गिरि ने 'गुरु' की महत्ता पर विस्तृत व्याख्यान में 'पानी पीजे छानकर, गुरु कीजे जानकर' मुहावरे को सिर्फ मुहावरा नहीं बल्कि मन्त्र-सदृश बताया। उन्होंने विचार-विमर्श के दौरान कहा कि न ज्ञान, न आचरण और न तप-तपस्या के गुरुओं की भरमार हो गई है। कोई जेल जा रहा है, कोई भागा-भागा फिर रहा है, कोई हत्या कर रहा है तो कोई आत्महत्या। यह अत्यंत दुःखद स्थिति है। सनातन धर्म में 'गुरु' की जो महत्ता भगवान दत्तात्रेय ने दी है, वह मनुष्य को उत्तम तथा दिव्य स्वरूप प्रदान करने के लिए दी है न कि भौतिक सम्पदा में खुद भी और शिष्य को डूबे रहने की दी है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्तात्रेय जयंती पर मंगलवार की रात्रि में भगवान के पूजन के साथ वैचारिक परिचर्चा में डॉ गिरि बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि भगवान दत्तात्रेय विष्णुजी के 24 अवतारों में से एक माने जाते हैं । उनका अवतार मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि को हुआ था।
डॉ गिरि ने मार्कण्डे पुराण के 9वें और 10वें अध्याय में भगवान दत्तात्रेय के जन्म तथा प्रभाव की कथा का उल्लेख करते हुए कहा कि दत्तात्रेय के पास असंभव को संभव कर देने की क्षमता थी।
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ योगानन्द गिरि ने कहा कि भागवत के अनुसार इन्होंने चैबीस पदार्थों एवं जीवों से अनेक शिक्षाएं ग्रहण की । इन्हीं सारे पदार्थों एवं जीवों को अपना वे गुरु मानते थे, जिसमें पृथ्वी, वायु, आकाश, जल, अग्नि, चन्द्रमा, सूर्य, कबूतर, अजगर, सागर, पतंग, मधुकर (भौंरा और मधुमक्खी), हाथी, मधुहारी (मधुसंग्रह करने वाली), हिरन, मछली, पिंगला वेश्या, गिद्ध, बालक, कुमारी कन्या, बाण बनाने वाला, सांप, मकड़ी और तितली शामिल हैं।
संगोष्ठी में सलिल पांडेय, विन्ध्यवासिनी प्रसाद केसरवानी, समीर कुमार बर्मा, सन्तोष कुमार श्रीवास्तव, सन्दर्भ पांडेय, सुधानन्द गिरि आदि ने भाग लिया।
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