माननीयों के बिगड़ते बोलों पर कब लगेगा विराम !

माननीयों के बिगड़ते बोलों पर कब लगेगा विराम !

 

                           ----- जितेन्द्र सिंह पत्रकार


लोकसभा में भाजपा सांसद रमेश चंद्र बिधूड़ी ने जिस तरह की भाषा का प्रयोग संसद के अंदर बसपा के सांसद पर कि है वह वाकई में बहुत निंदनीय है। लेकिन यह पहली बार नहीं है इससे पहले भी पक्ष और विपक्ष सांसदों और विधायकों द्वारा बोल बिगड़ते देखे गए हैं। लेकिन चर्चा इस बात की है कि आखिर जब हमारे माननीय जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि इस तरह की भाषा का प्रयोग करेंगे तो देश के लिए वाकई ये विचारणीय है। जनप्रतिनिधि का कर्तव्य होता है सदन में जनता की बातों को रखना न कि अपशब्दों का प्रयोग कर बखेड़ा खड़ा करना। इन सब व्यवधानों से सदन का समय ख़राब होता है और जनता के महत्वपूर्ण कार्यों को सदन में से वंचित रह जाता है। इसमें सिर्फ पक्ष और विपक्ष के बीच झगड़ों के अलावा कुछ नहीं होता है।

आखिर इस पर विराम कब लगेगा। हालांकि बिधूड़ी के आपत्तिजनक बयान पर विपक्ष के साथ साथ सत्ता पक्ष ने भी विरोध किया है। लेकिन इससे क्या होगा हो सकता है कुछ दिन के लिए सदन से निलंबित हो जाएं और बात आई गई हो जाए। रमेश चंद्र बिधूड़ी के ये बोल अमरोहा से बसपा सांसद दानिश अली पर बोले गए थे। उन्होंने बसपा सांसद के खिलाफ आतंकवादी, उग्रवादी जैसे आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया गया था। आखिर जनसेवक की भाषा इतनी कटुता भरी कैसे हो जाती है कि वह यह भूल जाते हैं कि हम क्या कह रहे हैं। जब जनप्रतिनिधियों के बोल बिगड़ते हैं तो राजनैतिक पार्टियां उन शब्दों को पार्टी लाइन से अलग बताकर अपना पल्ला झाड़ लेती हैं। और अब तक शायद ही किसी पार्टी ने अपने नेता के ऊपर कोई कठोर कार्यवाही की हो। इन बिगड़ते बोलों पर राजनैतिक पार्टियां ही कठोर कार्यवाही करके लगाम लगा सकती हैं।

वंदे मातरम पर चर्चा : सवाल नीति और नीयत का Read More वंदे मातरम पर चर्चा : सवाल नीति और नीयत का

अन्यथा यह शब्दावली बराबर चलती रहेगी और नेता बेलगाम होते रहेंगे। उ.प्र. में भारतीय जनता पार्टी के नेता जो वर्तमान में राज्य सरकार में मंत्री हैं दयाशंकर सिंह ने एक बार मायावती पर अमर्यादित टिप्पणी की थी जिसके बाद हंगामा हुआ और भारतीय जनता पार्टी ने दयाशंकर सिंह को पांच साल के लिए निष्कासित कर दिया। लेकिन उस बीच हुए विधानसभा चुनाव में उनकी पत्नी स्वाती सिंह को विधायकी का टिकट दिया और जीतने पर महिला बाल विकास मंत्री पद पर सुशोभित किया। आखिरकार पांच साल बाद जब दयाशंकर सिंह के निष्कासन का समय पूरा हुआ तो उनको फिर से बहाल करते हुए विधानसभा चुनाव लड़वाया और जब वह जीते तो उनको मंत्रिमंडल में शामिल कर प्रदेश का परिवहन मंत्री बना दिया। यह केवल एक पार्टी का हाल नहीं है।सभी दलों में ऐसा ही होता रहता है।आसानी से कोई पार्टी अपने नेता को अलग नहीं करना चाहती।

मानव अधिकार दिवस : सभ्यता के नैतिक विवेक का दर्पण Read More मानव अधिकार दिवस : सभ्यता के नैतिक विवेक का दर्पण


                  इसी तरह अभी हाल ही में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन के बेटे और राज्य सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को लेकर विवादित बयान दिया था। यहां याद रखना होगा कि तमिलनाडु में डीएमके और कांग्रेस पार्टी में गठबंधन है। उदयनिधि स्टालिन के इस आपत्तिजनक बयान की आंच उत्तर भारत तक पहुंच गई थी जिसका कड़ा विरोध भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और हिन्दू वादी संगठनों द्वारा किया गया था। उदयनिधि स्टालिन ने चेन्नई में एक कार्यक्रम में कहा था कि आपने, सनातन धर्म विरोधी सम्मेलन के बजाय सनातन उन्मूलन का आयोजन किया है। मेरी ओर से आपको बधाई, हमें कुछ चीजों का विरोध नहीं उनको खत्म करना है। अब सनातन धर्म को मानने वाली भारतीय जनता पार्टी के नेता और हिन्दू संगठनों के नेता स्टालिन के इस बयान पर कहां चुप बैठने वाले थे।

मेक्सिको का शॉक: भारत के निर्यात पर टैरिफ़ की आग Read More मेक्सिको का शॉक: भारत के निर्यात पर टैरिफ़ की आग

स्टालिन का उत्तर भारत में जम कर विरोध किया गया। और कांग्रेस पर दबाव बनाया गया कि हिंदुत्व के अपमान पर उसे तमिलनाडु सरकार से समर्थन वापस लेना चाहिए। लेकिन क्या हुआ कुछ दिन के विरोध के बाद मामला ठंडा पड़ गया। इन नेताओं के बिगड़ते बोलों को लेकर ऐसा प्रतीत होता है कि चर्चा में रहने के लिए ये नेता इस तरह के बयानों और भाषा का प्रयोग जानबूझ कर करते हैं।

किसी धर्म, सम्प्रदाय, और जाति के विरोध में बोलने की हमें बिल्कुल छूट नहीं है। लेकिन फिर भी ये नेता इस तरह के आपत्तिजनक बयान देते रहते हैं। कभी धर्म ग्रंथों की प्रतियां जला दी जाती हैं लेकिन हमारे राजनेता शांत रहते हैं। यह कैसी नफ़रत भरी राजनीति है जिसके सहारे ही हम सत्ता तक पहुंचने कोशिश करते हैं। नफरती शब्दों और भाषा का राजनेता भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं। जब कि इस तरह की बातों का हमारे देश के कानून में कोई स्थान नहीं है। हमारे राजनेता कानून से ऊपर उठकर आपत्तिजनक भाषण देने में जरा भी परहेज़ नहीं करते। 


                       इसी तरह उत्तर प्रदेश में भी एक नेता जो बसपा, भाजपा में रहने के बाद पिछले विधानसभा चुनाव में सपा में आए स्वामी प्रसाद मौर्या ने भी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन इसके बावजूद समाजवादी पार्टी ने उन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। स्वामी प्रसाद मौर्या ने पहले तो हिन्दू धर्म के ऊपर हमला बोला कि यह कोई धर्म नहीं केवल एक धोखा है। मौर्या इतने पर ही नहीं रुके उनके द्वारा रामचरितमानस की प्रतियां जलाने का आरोप भी लगा। मौर्या रामचरितमानस के ऊपर पहले भी भेद भाव का आरोप लगा चुके हैं। हालांकि बाद में स्वामी प्रसाद मौर्या पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और उन्माद फैलाने के आरोप में केस भी दर्ज किया गया। लेकिन अभी वह अदालत में लंबित है।

इस तरह के नेताओं को कानून और अदालती कार्यवाही का भी डर नहीं रहता और यह हर तरह की अमर्यादित टिप्पणी से बाज नहीं आते। दामन में दाग किसी एक दल के नहीं है। कहीं न कहीं कभी न कभी हर दल का एक नेता ऐसी टिप्पणी करने से बाज नहीं आता। लेकिन इसका ठोस इलाज आज तक नहीं मिल पाया है। उसका मुख्य कारण यही है कि जिस दल का नेता अमर्यादित टिप्पणी करता है। उसी की पार्टी उस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं करती। नेताओं को मालूम है कि कानून का फैसला इतनी जल्दी नहीं आता और उनके वकील उसको लंबा खींचने में लगे रहते हैं।


                 आखिरकार इस तरह की अमर्यादित टिप्पणी पर रोक लगेगी कैसे यह एक बहुत बड़ा सवाल है। आज कल राजनीति के चरित्र का दामन गंदा करने में इस तरह के नेताओं का बहुत बड़ा हाथ है। लेकिन इसके लिए राजनैतिक दल भी कम जिम्मेदार नहीं हैं यदि वो ऐसे नेताओं का साथ देना बंद कर दें और कार्यवाही कठोर होने लगे तो इससे बचा जा सकता है। की बार तो उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने इस तरह के बयानों से बचने के लिए इन माननीय नेताओं को चेतावनी देनी पड़ी है। लेकिन इन नेताओं की दुकानें इसी तरह के बयानों से चलती हैं। चर्चा में रहने के लिए वे इसे ज़रुरी मानने लगे हैं। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और यहां किसी भी धर्म की भावना को ठेस पहुंचाने की छूट नहीं है। लेकिन इसके बावजूद भी कई नेता इस तरह चर्चा में बने रहते हैं। ज़ुबान फिसलना अलग बात है और जानबूझ कर की गई टिप्पणी अलग है।

हालांकि रमेश चंद्र बिधूड़ी के लोक सभा में दिए गए बयान के विरोध में जितना विपक्षी दलों ने कहा है। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने भी कम आलोचना नहीं की है। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह ने तो इसके लिए माफी भी मांगी है। और भाजपा द्वारा बिधूड़ी को दस दिन के भीतर जवाब देने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है उन्होंने यज्ञ भी कहा कि इस पर किसी प्रकार की राजनीति नहीं होनी चाहिए। लेकिन बात वहीं आकर ठहर जाती है कि कहे गए शब्द वापस नहीं हो सकते। हां यदि कोई ठोस कार्रवाई होती है तो यह अन्य नेताओं के लिए भविष्य में चेतावनी होगी।

About The Author

स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel