संसार में इंसानियत और रूहानियत के संगम की नितान्त आवश्यकता है। 

निरंकारी सद्गुरू माता सुदीक्षा जी  ने दिया मानवता के नाम संदेश।

संसार में इंसानियत और रूहानियत के संगम की नितान्त आवश्यकता है। 

संसार में इंसानियत और रूहानियत के संगम की नितान्त आवश्यकता है जब आत्मा, परमात्मा को जानकर अर्थात् रूहान से जुड़कर रूहानी हो जाती है

स्वतंत्र प्रभात
ब्यूरो प्रयागराज
 
1 तो इंसानियत भी स्वाभाविक रूप से जीवन में आ जाती है। उक्त उद्गार सद्गुरू माता सुदीक्षा जी महाराज ने परेड ग्राउण्ड, प्रयागराज में आयोजित 44वें प्रादेशिक निरंकारी संत समागम के प्रथम दिन लाखों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालु-भक्तों के मध्य मानवता के नाम संदेश देते हुये व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि युगों-युगों से भक्तों ने यही संदेश दिया है कि इंसानी तन में ही यह आत्मा अपने मूल स्वरूप को जान सकती है जिससे कि यह जन्मों-जन्मों से बिछड़ी हुई है।
 
 
उन्होंने फरमाया कि संतों ने हमेशा आध्यात्मिकता को ही प्राथमिकता दी है। हमें अपनी भौतिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुये ही अपने सारे कर्तव्यों को निभाना है क्योंकि भक्ति गृहस्थ जीवन में ही की जा सकती है। अपने सांसारिक दायित्यों को पूरा करते हुये हर पल की भक्ति करनी है। भक्तों ने हमेशा यही सिखाया है कि हमें अपने आचरण में प्रेम, नम्रता, विशालता आदि दिव्य गुणों को समाहित करना है और अहंकार को स्वयं से दूर रखना है। जीवन जीने का सार भक्ति है और भक्ति से जीवन जीना बहुत ही सहज हो जाता है।
 
 
निरंकारी मिशन का यही संदेश है कि जब परमात्मा से एकत्व हो जाता है तो सारे संसार में भिन्नता होने पर भी सभी से एकत्व हो जाता है। परमात्मा एक ही है ऐसा जान लिया तो इसकी बनाई रचना से स्वतः ही प्रेम हो जाता है और सभी के अंदर परमात्मा के दर्शन होेने लगते है। इस प्रकार का जीवन जो व्यक्ति जीता है उसका जीवन श्रेष्ठ जीवन होता है और दूसरों के लिये भी प्रेरणा का स्रोत बन जाता है ।
 
 
निंरकारी संत समागम के द्वितीय दिन का शुभारम्भ समागम स्थल पर सद्गुरू माता सुदीक्षा जी महाराज एवं निरंकारी राजपिता जी के स्वागत द्वारा हुआ। उनके आगमन पर समागम समिति के सदस्यों द्वारा फूलों का गुलदस्ता भेंट किया गया। फूलों से सजी हुई पालकी में विराजमान दिव्य जोड़ी की मुख्य मंच तक अगुवाई की गई। पालकी के दोनों ओर श्रद्धालु भक्तों ने भावविभोर होकर जयघोष करके अपने सद्गुरू का अभिनंदन किया।
 
 
सेवादल रैली में सम्मिलित हुये स्वयं सेवकों को पावन आशीर्वाद देते हुये सद्गुरू माता जी ने फरमाया कि निःस्वार्थ भाव से की गई सेवा ही वास्तविक सेवा कहलाती है। सेवा का कोई दायरा नहीं होता है। सेवादार जहां अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाते हैं वहीं मानव सेवा के प्रत्येक अवसर पर सदैव तत्पर रहे।

About The Author

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel