टूटे रिश्तों को दुष्कर्म बताने की आदत चिंताजनक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अपराध की गंभीरता कम होती है।
स्वतंत्र प्रभात ब्यूरो प्रयागराज
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (24 नवंबर) को एक वकील के खिलाफ रेप का केस खारिज कर दिया। उस पर शादी का झूठा झांसा देकर एक महिला के साथ बार-बार रेप करने का आरोप था। यह देखते हुए कि सेक्स सहमति से हुआ था, शादी के किसी झूठे वादे से प्रभावित नहीं था, कोर्ट ने महिला के आरोपों को झूठा पाया और यह सहमति से बने रिश्ते के बाद में खराब होने का एक क्लासिक उदाहरण है।
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जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा कि दुष्कर्म का अपराध सबसे गंभीर किस्म का है और इसे सिर्फ उन्हीं मामलों में लगाया जाना चाहिए जहां असल में, जबरदस्ती या बिना सहमति के यौन हिंसा हुई हो।
पीठ ने कहा, एक अच्छे रिश्ते के दौरान बने शारीरिक संबंधों को सिर्फ इसलिए दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता क्योंकि रिश्ता शादी में नहीं बदल पाया। हालांकि पीठ ने यह भी कहा कि कानून को उन असली मामलों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए जहां भरोसा टूटा हो और इज्जत का उल्लंघन हुआ हो। कोर्ट ने कहा, इस कोर्ट ने कई मौकों पर इस परेशान करने वाली आदत पर ध्यान दिया है, जिसमें नाकाम या टूटे हुए रिश्तों को अपराध का रंग दे दिया जाता है।
कोर्ट ने कहा कि ऐसे समाज में जहां शादी का गहरा सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व होता है, वहां यह आम बात है कि एक महिला इस विश्वास के आधार पर सेक्सुअल रिलेशनशिप के लिए सहमति दे देती है कि इससे कानूनी और सामाजिक रूप से स्वीकृत शादी होगी। ऐसे हालात में, उसकी सहमति शर्तों पर होती है और शादी के वादे पर आधारित होती है। कोर्ट ने कहा कि अगर यह साबित हो जाता है कि वादा झूठा था, गलत नीयत से किया गया था, और शादी करने का कोई असली इरादा नहीं था, बल्कि सिर्फ महिला का शोषण करने के लिए था, तो ऐसी सहमति को गलत माना जा सकता है, जिसके लिए IPC की धारा 376 के तहत सुरक्षा मिलती है। साथ ही, कोर्ट ने चेतावनी दी कि यह नियम तभी लागू किया जा सकता है जब इसके सपोर्ट में भरोसेमंद सबूत और ठोस तथ्य हों, न कि सिर्फ आरोपों या अंदाज़ों पर।
शीर्ष कोर्ट ने एक शख्स की अपील पर अपने फैसले में यह टिप्पणी की। इस शख्स ने बॉम्बे हाई कोर्ट के मार्च, 2025 के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें छत्रपति संभाजीनगर में अगस्त 2024 में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की उसकी अर्जी खारिज कर दी गई थी। शीर्ष कोर्ट ने कहा, इस मामले में दुष्कर्म का आरोप पूरी तरह शिकायतकर्ता महिला के इस दावे पर टिका है कि आदमी ने शादी का झूठा भरोसा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।
पीठ ने कहा, हमें लगता है कि यह मामला ऐसा नहीं है जिसमें अपीलकर्ता ने प्रतिवादी महिला को सिर्फ शारीरिक सुख के लिए फुसलाया और फिर गायब हो गया। यह रिश्ता तीन साल तक चला, जो लंबा समय है। पीठ ने कहा, ऐसे मामलों में, एक सही चलते रिश्ते के दौरान हुई शारीरिक निकटता को सिर्फ इसलिए दुष्कर्म का अपराध नहीं माना जा सकता क्योंकि रिश्ता शादी में नहीं बदल पाया।
पीठ ने कहा, हमें इस बात का एहसास है कि हमारे देश में शादी का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व है। ऐसे में कानून को उन असली मामलों के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए जहां भरोसा तोड़ा गया हो और इज्जत को ठेस पहुंचाई गई हो, ताकि पहले के भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (दुष्कर्म के लिए सजा) का सुरक्षा का दायरा असल में परेशान लोगों के लिए सिर्फ एक औपचारिकता बनकर न रह जाए। साथ ही, इस सिद्धांत का इस्तेमाल भरोसेमंद सबूतों और ठोस तथ्यों पर आधारित होना चाहिए, न कि बिना सबूत वाले आरोपों या नैतिक अंदाजों पर।
कोर्ट ने कहा कि रिस्पॉन्डेंट नंबर-2 का फिजिकल इंटिमेसी का फैसला सिर्फ शादी के वादे की वजह से नहीं था। कोर्ट ने महेश दामू खरे बनाम महाराष्ट्र राज्य के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि “जब तक यह नहीं दिखाया जा सकता कि फिजिकल रिश्ता सिर्फ शादी के वादे की वजह से था, जिससे फिजिकल रिश्ते से सीधा संबंध हो और उस पर किसी और बात का असर न हो, तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि गलतफहमी की वजह से सहमति खराब हुई थी।”
पीठ ने कहा, हाईकोर्ट यह समझने में नाकाम रहा कि प्राथमिकी को सीधे पढ़ने से ही पता चलता है कि पार्टियों के बीच रिश्ता असल में आपसी सहमति से बना था। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जिन कामों की शिकायत की गई है, वे उस समय अपनी मर्जी से बने रिश्ते के दायरे में हुए थे। प्राथमिकी और आरोपपत्र रद्द करते हुए पीठ ने कहा, ऐसे मामलों में अभियोजन जारी रखना कोर्ट मशीनरी का गलत इस्तेमाल करने जैसा होगा।
अभियोजन के मुताबिक, एक महिला ने अपने पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी और बाद में एलिमनी/मेंटेनेंस की मांग करते हुए उसके खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी। इसी सिलसिले में वह अपीलकर्ता शख्स से मिली जो वकील है। समय के साथ, उनके बीच करीबी रिश्ता बन गया। महिला का कहना था कि संबंधित व्यक्ति ने उससे शादी की इच्छा जताई थी, लेकिन तब शादीशुदा जीवन में परेशानियों के कारण, उसने प्रस्ताव ठुकरा दिया। बाद में महिला गर्भवर्ती हो गई। उसका गर्भपात करा दिया गया। बाद में महिला ने शादी के लिए दबाव बनाया लेकिन तब अपीलकर्ता ने इससे इंकार कर दिया।

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