जंगलराज और बाहुबलियों के भय से मुक्त होता - बिहार 

जंगलराज और बाहुबलियों के भय से मुक्त होता - बिहार 

बिहार में चार दशक पूर्व जब भी चुनावों का जिक्र होता था तो बरबस आँखो के सामने जंगलराज  की तस्वीर ही उभर जाया करती हे जिसमें चुनाव का मतलब या तो जीत होता था और चुनाव की हार का मतलब सिर्फ मौत ही होता था! देश के राजनीतिक दलों के नेताओं की बिहार में  सत्ता स्वार्थ की लालसा ने धनबल ,बाहुबल और आपराधिक प्रवृति के दाग दार लोगों को राजनीति में जब से शरण दी हे तब से सता का अर्थ ही बदल गया हे ! 
 
बिहार में कभी सत्ता का मतलब भय भूख और बंदूक बन गया था जहां राज्य का विकास सता के इदगिर्द रह रहे नेताओं तक ही सिमट कर रह जाता था ! बाहुबलियों के आसरे राज्य सरकार के चलने का नतीजा बिहार में यह हुआ कि क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों ने जातिवाद के नाम पर राज्य के जनमानस में अपना दबदबा अन्दर तक बना लिया था जिसके चलते वर्षों तक क्षेत्रीय दल राज्य की सत्ता में दशकों तक हावी रहे जिसकी वजह से बिहार विकास की राह से निरंतर पिछड़ता चला गया ! बिहार में इस बार के विधानसभा चुनाव में बिहारियों का जनमानस एकदम  बदला बदला सा नजर आ रहा हे !
 
इक्कीसवीं सदी के बिहार के नौजवान युवा मतदाता जात पात से ऊपर उठकर अपना और बिहार का विकास चाहते हे इसलिए वह जंगलराज के नेताओं और बाहुबलियों के भय से जरा भी खौफ जदा नहीं हे ! दशको बाद पहली बार बिहार में बिना बंदूक के भय से इस बार विधानसभा के चुनावो का होना न केवल बिहार की पूरी एक पीढ़ी के लिए बल्कि समूचे देश की जनता के लिए यह अच्छा शुभ सन्देश भी हे कि बिहार का जनमानस और  बिहार का मतदाता अब राजनेताओ की बपोती नही रहा हे जो बाहुबलियों की बंदूक के भय से अपना मत बदल दे !
 
बिहार का युवा मतदाता अब भयमुक्त विकासशील सरकार राज्य में लाना चाहते हे जो राज्य के बिहारी युवाओं के सपनों को साकार कर सकें ! बिहार को अपने स्वर्ण युग की और वापस लौटना हे तो हर बिहारवासी को जंगलराज और बाहुबलियों के भय से मुक्त होना ही होगा ! 
 

अरविंद रावल

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