ग्राम पंचायतों में हो रहे विकास पर भ्र्ष्टाचार का काला साया
गुणवत्ता विहीन निर्माण ,बिना कार्य के भुगतान से स्थानीय जिम्मेदार मालामाल विभाग हुआ कंगाल
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देश के प्रधानमंत्री मोदी ,सूबे के मुखिया योगी के उत्तम प्रदेश और भ्र्ष्टाचार मुक्त भारत के दावे पर हावी भ्र्ष्टाचार का जिन्न
प्रदेश के विकास के सरकारों के दावे कि ग्राम पंचायतों में लगातार विकास कार्य हो रहा और पारदर्शी तरीके से विकास कार्यों की समीक्षा के चलते भृष्टाचार मुक्त भारत का सपना साकार हो रहा लेकिन यब दावे अब सिर्फ किताबो में ही अच्छे लगते है बाकी तस्वीरों में सच देख कर यही लगता कि उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश नही भृष्टाचार का अड्डा है जंहा हर कार्य मे विभागीय कमीशन खोरी के चलते गुणवत्ता प्रभावित होना स्वभाविक है । वही ग्राम पंचायत तमाम ऐसे विकास कार्य जो हुआ ही नही फर्जी बिलों के माध्यम से राशि आहारित कर व्यापक भ्रष्टाचार किया जा रहा है।
जिसमे विभाग के संबंधित जिम्मेदार अधिकारी आंख बंद करके बैठे हुए हैं। वही पंचायत में बिना कार्य कराए ही तथाकथित विक्रेताओं( वेंडरों) के बिल लगवा कर पंचायत खातों से भुगतान कर शासकीय राशि की बंदरबांट चल रही है।एक ही वेंडर नाली सड़क निर्माण सामग्री से लेकर लेखन सामग्री किराना,मिठाई आदि सभी प्रकार के विक्रय सामग्रियों का एक ही बिल जारी कर रहा है और सरपंच/सचिव के हस्ताक्षर से आंख मूंदकर भुगतान भी किया जा रहा है।
संबंधित अधिकारियों द्वारा ना तो इन भुगतानो को संज्ञान में लेकर जांच करवाई जा रही है और नही पंचायत जांच अधिकारी द्वारा विकास के नाम पर घटिया सामग्रियों से हो रहे गुणवत्ताहीन कार्यों की समीक्षा की जा रहीऔर ना ही निर्माण कार्यों की जांच। यहां यही कहना पड़ रहा जंहा सौ में निन्यानवे बेईमान लेकिन मेरा भारत देश तब भी महान की कहावत सटीक बैठती है ।
वही ग्राम पंचायतों में सरपंच, सचिव द्वारा धड़ल्ले से गुणवत्ताहीन निर्माण कार्य कराया जा रहा है। और आधिकारिक तौर पर आंख मूंदकर निर्माण कार्यों की सी.सी. जारी की जा रही है।पंचायतों में दलाल वेंडरों द्वारा निर्माण सामग्री का दुगना बिल लगाते हुए पंचायत खाते से राशि आहरित करवाई जा रही है। आखिरकार इसका जिम्मेदार कौन?
ग्राम पंचायतों में ग्रामीणों की मानें तो जिम्मेदारों द्वारा निर्माण कार्य के नाम पर लीपापोती कर शासकीय राशि का गबन मात्र एक उद्देश्य बन चुका है फिर वह चाहे पीसीसी सड़क नाली निर्माण सुदूर सड़क पेयजल व्यवस्था य भवन निर्माण य अन्य निर्माण कार्य हो या कार्यालय व्यय के नाम पर ही क्यों ना हो।
वही सूत्रों की माने तो ऐसे कार्य की बात कई ग्राम पंचायतों में देखी जा रही है जंहा गुणवत्ता विहीन निर्माण सामग्री के सहारे गुणवत्ता विहीन निर्माण के साथ ऐसे तमाम कार्य जो धरातल पर हुआ ही नही और उसका विभागीय पेमेंट फर्जी बिलो के सहारे हो जाता है जो कि बड़ा जांच का विषय है जिसको लेकर अगर विभागीय अधिकारियों के द्वारा हुए कार्यो का भौतिक सत्यापन निष्पक्ष रूप से किसी अन्य जांच एजेंसी से करवाया जाय तो सारा दूध पानी अलग हो जाएगा।लेकिन सवाल तो यही है कि जब चोर चोर हो मौसेरे भाई तो घण्टा आखिर बांधेगा कौन।
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