रामजग बनाम श्रीपति प्रकरण : 14 साल पुरानी जमीनी लड़ाई का हुआ अंत, अदालत ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला
14 वर्ष पुरानी लड़ाई में वादी की ऐतिहासिक जीत, अदालत ने किया न्याय का परचम बुलंद
वादी के पक्ष में संपत्ति की डिक्री, क्षेत्र में जश्न का माहौल
लगभग 14 वर्षों से चले आ रहे चर्चित रामजग मिश्रा बनाम श्रीपति मिश्रा विवाद में अदालत ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए वादी राम यज्ञ (उर्फ़ रामजग) के पक्ष में संबंधित मकान और ज़मीन की डिक्री कर दी। क्षेत्र में इस निर्णय का व्यापक स्वागत किया जा रहा है और ग्रामीणों ने कहा है कि यह फैसला न्यायपालिका पर विश्वास को और मजबूत करता है।
90 वर्षीय वृद्ध से धमकी व मारपीट कर कराया गया था बैनामा
यह मामला वर्ष 2010 का है, जब लगभग 90 वर्ष के वृद्ध राम यज्ञ से उनके भतीजे श्रीपति ने कथित रूप से मारपीट व धमकी देकर ज़मीन का बैनामा करा लिया था। आरोप है कि श्रीपति ने अपने रिश्तेदार सिद्धू के साथ मिलकर वादी को दहशत में रखा और इलाज के बहाने ले जाकर दबावपूर्वक दस्तावेज़ लिखवा लिए।
वादी पक्ष के अनुसार, श्रीपति ने यह तक धमकी दी कि यदि ज़मीन नहीं लिखी गई तो वह वादी के इकलौते बेटे—जो अमेरिका में रहते हैं—को फंसाकर फांसी तक दिलवा देगा। भय और विवशता की स्थिति में वृद्ध ने बैनामा कर दिया था।
उपकारों के बावजूद हुआ विश्वासघात
स्थानीय लोगों ने बताया कि राम यज्ञ का परिवार वर्षों से श्रीपति मिश्रा के परिवार का सहारा रहा है। वादी के अमेरिका निवासी बेटे राम मिश्रा और बहू किरन मिश्रा ने श्रीपति की बेटी की शादी से लेकर उनके बेटे मोहन उर्फ़ संदीप मिश्रा की पढ़ाई व नौकरी तक में सहायता की।
साथ ही श्रीपति मिश्रा के इलाज और घर निर्माण में भी कई लाखों रुपये करके राम मिश्रा द्वारा ही करवाया गया था । लोगों का कहना है कि इसके बावजूद पीठ पीछे हुए इस विश्वासघात ने पूरे क्षेत्र को वर्षों तक दुख और आक्रोश में रखा।
अदालत ने कहा — बिना प्रतिफल धोखधड़ी से कराया गया बैनामा मान्य नहीं
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि वृद्धावस्था, दवा कराने के बहाने से धोखाधड़ी, कूटरचित और षड़यंत्र से कराया गया बैनामा वैधानिक रूप से स्वीकार्य नहीं है। साथ ही बैनामा कराने पर कोई भी प्रतिफल के रूम में नहीं दिया गया था अदालत ने वादी राम यज्ञ के पक्ष में मकान और ज़मीन की डिक्री जारी करते हुए संपत्ति का स्वामित्व वापस बहाल कर दिया।
श्रीपति मिश्रा के ही समधी सिद्धू शुक्ल समेत रिस्तेदार ही बने थे गवाही अदालत ने यह भी कहा कि रामयज्ञ मिश्रा की बेटी तहसील कादीपुर से सटे जिला अम्बेडकरनगर में रहती है वह उनको जानकारी भी दे सकते थे
लेकिन रामयज्ञ मिश्रा की तरफ से कोई भी गवाही बैनामे में नहीं थी साथ ही वादी का पूरा परिवार समृद्ध और आर्थिक रूप से मजबूत होने के कारण बैनामा करने की किसी भी तरह की किसी भी सम्भावना से इंकार किया सूत्रों की माने तो इस पूरे षड़यंत्र को अंजाम देने में कादीपुर निवासी शुक्ला बिल्डिंग मटेरियल के संचालक और श्रीपति मिश्रा के समधी सिद्धू शुक्ला का हाथ बताया जा रहा है l
ग्रामीणों ने इस फैसले को “सत्य की जीत” और “न्याय का उत्सव” बताया है। लोगों ने कहा कि अदालत ने पुनः साबित कर दिया कि “सत्य परेशान हो सकता है, पर पराजित नहीं।”
क्षेत्र में खुशी की लहर
फैसले के बाद क्षेत्र में खुशी का माहौल है। ग्रामीणों का कहना है कि वर्षों से चले आ रहे इस विवाद में आया यह फैसला न केवल पीड़ित परिवार के लिए राहत है, बल्कि समाज के लिए भी बड़ा संदेश है कि न्याय देर से सही, मिलता अवश्य है।

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