अब छोटे दलों को बनानी होगी नई रणनीति
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उत्तर प्रदेश की राजनीति हमेशा से अस्थिर रही है क्योंकि कि यहां सत्ता के दावेदार एक दो नहीं कई बन जाते हैं। इनमें छोटे दलों का तो कहना ही क्या ये तो हर दम सत्ता चाहते हैं सरकार किसी की भी बने। पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत मिला था और समाजवादी पार्टी 110 सीटों पर रह गई थी। ओमप्रकाश राजभर, दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य और केशव देव मौर्य गलत फहमी में समाजवादी पार्टी के साथ रह गये थे। इन नेताओं का आंकलन था कि इस बार समाजवादी पार्टी सत्ता में आ सकती है लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जब भारतीय जनता पार्टी पुनः सत्ता में आ गई तो ये नेता कहां सपा के साथ रहने वाले थे।
एक एक करके इन सभी ने सपा का साथ छोड़ दिया दारा सिंह चौहान ने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली। ओमप्रकाश राजभर की पार्टी एनडीए में शामिल हो गई दोनों मंत्री पद से नवाजें गये। स्वामी प्रसाद मौर्य पुराने नेता हैं उन्होंने अपनी अलग पार्टी का गठन कर लिया लेकिन एनडीए में नहीं गये और शायद स्वामी प्रसाद मौर्य की जरूरत भी भारतीय जनता पार्टी को नहीं थी। केशव देव मौर्य की अपनी अलग पार्टी है महान दल लेकिन वह भी सपा गठबंधन से दूर हो गये। जबकि अपना दल कमेराबादी की पल्लवी पटेल जो कि सिराथू से समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर जीतीं थीं उन्होंने भी समाजवादी पार्टी से दूरी बना ली।
अपना दल सोनेलाल की अनुप्रिया पटेल तो पहले से ही एनडीए का घटक दल हैं जो केन्द्रीय मंत्री भी हैं और निषाद पार्टी के संजय निषाद योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल में मंत्री हैं। अभी तक किसी को कोई परेशानी नहीं है। लेकिन इस बार जो लोकसभा चुनाव हुए उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने इन दलों को मजबूर कर दिया कि तुम्हें किसी न किसी सहारे की आवश्यकता ज़रूर होगी अकेले किसी में भी चुनाव जीतने की दम नहीं है। लोकसभा चुनाव में किसी भी दल का प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका और न जितवा सका सिवाय अनुप्रिया पटेल के अनुप्रिया पटेल भी काफी जद्दोजहद के बाद चुनाव जीत सकी हैं। जब कि भारतीय जनता पार्टी जैसी पार्टी का उन्हें समर्थन प्राप्त था। कई राउंड में अनुप्रिया पटेल पीछे रहीं अंत में मामूली बढ़त बना ली और जीत हासिल की।
इस चुनाव में यदि भारतीय जनता पार्टी को झटका लगा है तो साथ में उत्तर प्रदेश में उनके साथी घटक दलों को भी जनता ने अस्वीकार कर दिया है। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है उसे 37 सीटों पर विजय मिली है जब कि भारतीय जनता पार्टी दूसरे नंबर की पार्टी बन कर रह गई भारतीय जनता पार्टी को 33 सीटें मिलीं। यानि कि उत्तर प्रदेश की जनता भारतीय जनता पार्टी से नाराज़ दिखी। और यदि इसे विधानसभा वार देखा जाए तो 2027 में भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश में तमाम मुश्किलें खड़ी हैं। और ये छोटे दल विधानसभा चुनाव से पहले यही आंकलन करेंगे कि सरकार किसकी बनती दिख रही है और उन्हें किस गठबंधन में रहना चाहिए।
अपना दल सोनेलाल की अनुमति पटेल ने तो अभी से ओबीसी, एससी-एसटी रिज़र्वेशन का मुद्दा उठा दिया है। कि उत्तर प्रदेश सरकार ओबीसी एससी एसटी की सीटों को जनरल बना कर भर्ती कर रही है। हालांकि योगी आदित्यनाथ सरकार ने अनुप्रिया के इस सवाल का जबाब तुरंत दे दिया लेकिन यह बात बहुत दूर तक चलेगी। अनुप्रिया पटेल केंद्र में भी एनडीए का हिस्सा हैं। और केंद्र में इस बार भारतीय जनता पार्टी को अपने बल पर बहुमत नहीं मिला है। बहुमत एनडीए को मिला है और जब गठबंधन की सरकार बनती है तो उसकी कोई गारंटी नहीं होती कि वह कितना समय पूरा करेगी। इसलिए उत्तर प्रदेश के ये छोटे-छोटे दल अब भारतीय जनता पार्टी पर आक्रामक होते दिख रहे हैं। और इसका असर 2027 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में बहुत अधिक देखने को मिलेगा। यदि हालात यही रहे तो तमाम छोटे दल सपा की तरफ गठबंधन में शिफ्ट हो सकते हैं।
स्वामी प्रसाद मौर्य को न तो सपा पचा पा रही है और न ही वह सपा में फिट बैठ पा रहे हैं। अभी बीच में कुछ ऐसी चर्चाएं भी चलीं थीं कि स्वामी प्रसाद मौर्य फिर से बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो सकते हैं। लेकिन बहुजन समाज पार्टी का ग्राफ काफी तेजी से नीचे आया है और वह अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश में ही लगी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जीत का मार्जिन घटना, अयोध्या की सीट पर भारतीय जनता पार्टी का हार जाना। रायबरेली सीट से राहुल गांधी की बंपर जीत और अमेठी से एक छोटे से कांग्रेस के कार्यकर्ता द्वारा स्मृति ईरानी को हरा देना यह जाहिर करता है कि इस बार लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का न तो हिंदुत्व का मुद्दा चला और न ही राममंदिर का मुद्दा चला। हां इस बात को माना जा सकता है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातियों का बोलबाला हमेशा रहता है और समाजवादी पार्टी ने इसको अच्छी तरह से भुनाया है।
लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जनहित में कई रियायतें जनता को दी हैं और अभी बहुत सी रियायतें और भी दी जा सकती हैं। उत्तर प्रदेश में पेपर लीक का मामला भी काफी प्रभावी रहा। उत्तर प्रदेश में जातिगत संयोजन को जितनी अच्छी तरह से समाजवादी पार्टी समझती है शायद ही कोई दूसरी पार्टी समझती हो। इस बार के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने पूर्वांचल और पश्चिम की उन जातिवादी छोटी छोटी पार्टियों को भी मात दे दी। अब बात आती है कि ये छोटे राजनैतिक दल जिनकी राजनीति केवल एक जाति पर टिकी रहती है क्या 2027 में भारतीय जनता पार्टी के साथ रह सकते हैं।
इस पर भारतीय जनता पार्टी को मंथन करना होगा क्योंकि ये वो दल हैं जो मौका तलाशते हैं सत्ता के साथ रहने का। और इस बार समाजवादी पार्टी ने इन छोटे दलों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिरकार वह आगे की राजनीति किसके साथ करें। विकल्प दो ही हैं भाजपा या सपा। हालांकि अभी 2027 के आने में काफी समय है और इन दलों के मंत्री पद आराम से चल रहे हैं। लेकिन यह निश्चित है कि अगले विधानसभा चुनाव से पहले काफी राजनैतिक उथल-पुथल देखने को मिल सकती है।
पल्लवी पटेल फिर से सपा के साथ आ सकती है। ओमप्रकाश राजभर बड़ी बारीकी से समय को देखते हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य भी अपने निर्णय को गलत ठहरा रहे होंगे। उधर संजय निषाद भी भविष्य की राजनीति के लिए क़दम उठा सकते हैं। लेकिन अनुप्रिया पटेल की स्थिति कठिन होगी क्योंकि उसको केन्द्र और राज्य दोनों सरकारों में प्रतिनिधित्व मिला हुआ है। यह दौर निश्चित ही गठबंधन का दौर है। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन उत्तर प्रदेश में प्रभावी रहा है। आगे क्या यह इसी तरह से प्रदर्शन कर सकता है यह देखने वाली बात होगी।
जितेन्द्र सिंह पत्रकार
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