नोटबंदी कहें या नट्बंदी

नोटबंदी कहें या नट्बंदी

 


आखिर वही हुआ जो होना था। होनी और अनहोनी को कोई ताल नहीं सकता। केंद्र सरकार ने झक मारकर दो हजार रूपये का नौट छापना ब्नद कर दिया और जो नौट बाजार में चलन में हैं उन्हें भी अगले पांच महीने में बैंकों में जमा कराने का हुक्म सुनाया है। सचमुच ये हुक्म ही है । आप अपनी सुविधा के लिए इसे फरमान भी कह सकते हैं। भारत जैसे महान लोकतांत्रिक देश में ही ये सब मुमकिन है। मै इसे नोटबंदी नहीं बल्कि नट -बंदी  कहता हूँ ,क्योंकि ऐसा  काम नट ही कर सकते हैं,जिन्हें पुलिस  की भाषा  में नटवरलाल  कहा जाता हैl

आपको याद होगा की हमेशा चौंकाने वाले फैसले करने वाली केंद्र की भाजपा सरकार ने पहली बार  सात साल पहले  2016 में नोटबंदी का ऐलान किया था और उसी के बाद  के बाद रिजर्व बैंक ने 2000 रुपये के नोट को जारी किया था. पिछले कुछ महीने से मार्केट में 2000 रुपये के नोट कम नजर आ रहे थे। नजर आ रहे थे. लोगों का कहना था कि एटीएम से भी 2000 रुपये नोट नहीं निकल रहे हैं. इस संबंध में सरकार ने संसद में भी जानकारी दी थी. सरकार ने दो हजार का नया नौट चलाने और पांच सौ तथा दुसरे नए नौट  छापने के बाद पूरे देश के एटीएम के खांचे बदले थे। करोड़ों रुपया इस बदलाव पर खर्च किया गया था ,मकसद था कालाधन बाहर निकालना। 

बीते सात साल में तमामकालाधन दो हजार के नौट में तब्दील हो गया लेकिन बाहर नहीं निकला। उसे निकलना भी नहीं था,सरकार को निकालना भी नहीं था शायद। नोटबंदी एक खेल था जो सरकार ने खेला । किसके इशारे पर खेला ये बताने की जरूरत नहीं है। अब जब ये खेल गले की हड्डी बन गया तो सरकार ने दो हजार के इस नौट को बंद करने का 'तुगलकी  फरमान'  सुना दिया। तुगलक को हमने देखा नहीं सिर्फ सुना है। उसके फरमान सनक से भरा होता था ,सम्भवत: इसीलिए उसके फरमान कहावत बन गए। आप इन्हें गाली मत smjhiy।  ये गाली है भी नहीं। गाली देना हम लेखकों का संस्कार भी नहीं है। 
बहरहाल मुहम्मद बिन तुगलक सात सौ साल बाद भी सत्ता प्रतिष्ठानों में ज़िंदा है ,ये प्रमाणित करने के लिए किसी प्रमाण की जरूरत नही। आप केवल बीते 9  साल के सरकार के फैसले देख लें। आप मुतमईन हो जाएंगे की नाचीज जो कह रहा है वो सोलह आने सही है।हम सनातनी लोग आत्मा ,परमात्मा में यकीन रखते है। इसी यकीन की बिना पर मै कहता हूँ कि मुहम्मद बिन तुगलक की आत्मा आज भी जीवित है । अजर है,अमर है और सरकार ले फैसलों को प्रभावित कर रही है । मौजूदा दशक में भारत दुनिया का अकेला देश है जहां नोटबंदी बार-बार की जा रही है। भारत की मौद्रिक प्रणाली को मजाक बना दिया गया है। सरकार जब चाहे तब नौट बंद कर सकती है,जब चाहे तब नए नौट चला सकती है। उसे फ़िक्र नहीं की देश ने जिस मौद्रिक प्र्ब्नाली को अंगीकार किया है उसमें एक पैसे का सिक्का भी है और एक रूपये ,दो रूपये पांच रूपये का नौट भी। 

बीते सालों में सिक्कों की तो कहे कौन कहावतों कि काम आने वाली चवन्नी का प्रचलन तक रोक दिया गया। और ये एक तरह से अच्छा ही हुआ क्योंकि जिन सिक्कों की कोई इज्जत ही न हो उन्हें चलाने की जरूरत ही क्या है ? चार आने कि सिक्के और दो हजार कि नौट को चलन से बाहर करने कि पीछे मुमकिन है की सरकार का नजरिया ये ही रहा ह।  आज दो हजार कि नौट की इज्जत ही क्या है ? सुरसा की तरह बढ़ रही मंहगाई कि इस दौर में दो हजार कि नौट में रसोई  गैस  कि दो सिलेंडर  भी तो नहीं आते । ऐसे में एक कम इज्जत वाले नौट को चलाने की क्या जरूरत है। मेरा  सुझाव तो ये है की मौजूदा अर्थव्यवस्था को एक हजार,दो हजार कि नहीं बल्कि सीधे पांच और दस हजार कि नोटों की जरूरत है। देश की जनता को यदि कम्बोडिया,वियतनाम देशों कि बड़े नोटों की तरह भारत में भी ऐसे नौट देखना हो तो मौजूदा सरकार को बनाये रखना होगा। 

अचानक दो हजार कि नौट को बंद करने कि तुगलकी आदेश की जब मै बात करता हूँ तब मुझे लगता  है कि  आज के अपने  पाठकों को तुगलक कि बारे  में भी मुझे कुछ  बुनियादी  जानकारी दे देना चाहिए।  मुझे जो गलत-सलत इतिहास  पढ़ाया गया है उसके मुताबिक़ मुहम्मद बिन तुग़लक़ दिल्ली सल्तनत में तुग़लक़ वंश का शासक था। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ की मृत्यु के बाद उसका पुत्र 'जूना ख़ाँ', मुहम्मद बिन तुग़लक़ के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा।ये समय (1325-1351 ई.) का रहा होगा।  इसका मूल नाम 'उलूग ख़ाँ' था। कहा जाता है कि मध्यकालीन सभी सुल्तानों में मुहम्मद तुग़लक़ सर्वाधिक शिक्षित, विद्वान एवं योग्य व्यक्ति था। अपनी सनक भरी योजनाओं, क्रूर-कृत्यों एवं दूसरे के सुख-दुख के प्रति उपेक्षा का भाव रखने के कारण इसे 'स्वप्नशील', 'पागल' एवं 'रक्त-पिपासु' कहा गया है। बरनी, सरहिन्दी, निज़ामुद्दीन, बदायूंनी एवं फ़रिश्ता जैसे इतिहासकारों ने सुल्तान को अधर्मी घोषित किया गया है। मुहम्मद बिन तुगलक अपनी सनक भरी योजनाओं के कारण अपने द्वारा किए गए अभियानों में लगातार असफल होता गया जिस कारण ये प्रजा के बीच अलोकप्रिय हो गया।  

आज देश में सरकार का जो chritr है वो तुगलक से काफी मिलता  जुलता  है और ये महज  संयोग  हो सकता है। सिर्फ इसी वजह  से आप आज की सरकार को तुगलक की सरकार नहीं कह सकते ।  देश में सरकार तो माननीय नरेंद्र  मोदी  जी  की है और शायद  आगे  भी रहेगी। रहना   भी चाहिए क्योंकि आजाद  भारत में मोदी जी की सरकार है जो सबको साथ लेकर चलने का दावा तो करती है ,भले ही चले अकेली। अकेले चलने वाली सरकारों  को जनता नकारने  लगती  है। हाल  ही में कर्नाटक  की जनता ने नकार दिया,इससे  पहले हिमाचल ,पंजाब  और दिल्ली की जनता नकार  चुकी  है। इस सिलसिले  को रोका  जाना  चाहिए । 

सरकार द्वारा 2000  हजार कि नौट को बंद करने से देश में शोक  का माहौल  है क्योंकि ये पहला बड़ा नौट है जो मात्र सात साल की उम्र में चल बसा। भारतीय 2000 रुपये का नोट 8 नवंबर 2016 को ₹ 500 और ₹ 1000 बैंकनोटों की बंदी के बाद  यह पूरी तरह से नए डिजाइन के साथ बैंकनोट्स की महात्मा गांधी नई श्रृंखला का हिस्सा था ।  वर्ष 2016 को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नए इस 2,000,के नौट कि साथ ही   500,  200,  50, और ₹1 के नोटों की घोषणा की गई थी।

हमारा  प्यारा दो हजार का नोट  कुल 66 मिमी × 166 मिमी मैजेंटा रंगीन का है , इसमें  महात्मा गांधी, अशोक स्तंभ प्रतीक, और भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर हैं। इसमें ब्रेल प्रिंट है, मुद्रा की पहचान करने में दृष्टि से चुनौतीपूर्ण सहायता करता है। रिवर्स साइड में मंगलयान का एक आदर्श चित्र है, जो भारत के पहले इंटरप्लानेटरी स्पेस मिशन का प्रतिनिधित्व करता है, और स्वच्छ भारत अभियान के लिए लोगो या चिन्ह और टैग लाइन है।दो हजार का नोट बंद होने  से कालाधन रखने वालों के साथ सबसे ज्यादा नुक्सान  तो देश के स्वच्छ  भारत अभियान  का होने  वाला  है ।  क्योंकि इसी बड़े नोट के जरिये  देश की अर्थव्यवस्था को साफ़  किया जा  रहा था। 

आरबीआई के मुताबिक़  2,000 रुपये के करीब 89 प्रतिशत नोट मार्च, 2017 से पहले ही जारी किए गए थे और अब उनका चार-पांच साल का अनुमानित जीवनकाल खत्म होने वाला है ।  मार्च, 2018 में 6.73 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 2,000 रुपये के नोट चलन में मौजूद थे, लेकिन मार्च, 2023 में इनकी संख्या घटकर 3.62 लाख करोड़ रुपये रह गयी ।  इस तरह चलन में मौजूद कुल नोट का सिर्फ 10.8 प्रतिशत ही 2,000 रुपये के नोट रह गये हैं जो मार्च, 2018 में 37.3 प्रतिशत थे।  बहरहाल  मेरा सुझाव है की 2000  के नोट को श्रृद्धांजलि  देने के लिए संसद का विशेष अधिवेशन बुलाया जाये ।  देश भर में डबल इंजिन  की सरकारें  बूथ  स्तर  पर इस नोट के प्रति  श्रृद्धांजलि अर्पित  कर अपनी सरकार के लिए नए सिरे  से वोट  मांगे । साहित्यकारों  को ' बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर  ' के बजाय  अब लिखना  चाहिए कि-' बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे नोट दो हजार ' पंछी को छाया  नहीं ,लगना  पड़े  कतार। ' 
@  राकेश  अचल 

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