भारत रूस 75 वर्ष की कूटनीतिक यात्रा और अमेरिका की नई सुरक्षा रणनीति

भारत रूस 75 वर्ष की कूटनीतिक यात्रा और अमेरिका की नई सुरक्षा रणनीति

भारत और रूस पूर्व सोवियत संघ के राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ है।एक ऐसा पड़ाव जो गौरव, संघर्ष, विश्वास और ऐतिहासिक उपलब्धियों से भरा है। 1950 और 1960 के दशक में सोवियत संघ की मदद से भारत में भारी उद्योग, स्टील प्लांट, मशीन टूल्स, परमाणु ऊर्जा तथा बड़े बिजली संयंत्रों की नींव रखी गई। 1971 की भारत सोवियत मैत्री संधि ने दोनों देशों को रणनीतिक साझेदारियों के स्वर्ण युग में प्रवेश कराया। इन सात दशकों में न तो विश्वास डगमगाया और न ही नीतियों में अस्त-व्यस्तता आई।यही कारण है कि मास्को और दिल्ली की दोस्ती आज भी उतनी ही मजबूत है जितनी उस दौर में थी, जब दुनिया द्विध्रुवीय शक्ति-संतुलन से संचालित होती थी।
 
रूस ने भारत को सैन्य रूप से सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने में असाधारण भूमिका निभाई। आज भी भारतीय सेनाओं के लगभग 60% हथियार रूसी तकनीक से निर्मित हैं।मिग -21 से लेकर सुखोई30एमकेआई टी 90 टैंक, ब्रह्मोस मिसाइल और एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम तक। यह संबंध सिर्फ सौदेबाज़ी नहीं, बल्कि विश्वास पर आधारित दीर्घकालिक कूटनीति का उदाहरण है।इसी परिप्रेक्ष्य में, वैश्विक राजनीति के बदलते स्वरूप ने अमेरिका की नई रणनीतियों को भी प्रभावित किया है।
 
 रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन की भारत यात्रा के तुरंत बाद अमेरिका ने अपनी नई नेशनल सेक्युरिटी स्ट्रेटेजी जारी की, जिसने दुनिया के शक्ति-संतुलन पर गहरा संदेश दिया है। 33 पन्नों के इस दस्तावेज़ ने अमेरिकी प्राथमिकताओं, साझेदारियों और चुनौतियों का नया खाका पेश किया है। यह नई रणनीति क्या संकेत देती है और भारत रूस संबंधों की 75 वर्ष की यात्रा के संदर्भ में इसका क्या महत्व है।
 
भारत रूस संबंध 75 वर्ष
विश्वास और रणनीतिक स्थिरता की अनूठी मिसाल है।भारत और रूस के रिश्ते सिर्फ कूटनीतिक संवाद तक सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने समय की कसौटी पर खुद को बार-बार सिद्ध किया है।सोवियत संघ की तकनीकी और औद्योगिक सहायता 1950–60 के दशक में यूएसएसआर ने भारत को भारी उद्योगों का बुनियादी ढांचा दिया। भिलाई और बोकारो स्टील प्लांट, मशीन टूल्स फैक्ट्रियां, पावर प्लांट, अंतरिक्ष कार्यक्रम आदि इन सभी में रूसी सहयोग का गहरा प्रभाव रहा।यह वही समय था जब दुनिया दो ध्रुवों में बंटी हुई थी और नवस्वतंत्र भारत को एक ऐसे सहयोगी की जरूरत थी, जो विकास के हर मोर्चे पर साथ खड़ा रह सके।
 
1971 की अभूतपूर्व मैत्री संधि सार्थक सिद्द हुई।भारत-सोवियत मैत्री, सहयोग और पारस्परिक सहायता संधि ने दोनों देशों के बीच ऐसी सामरिक समझ पैदा की, जिसने 1971 के युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाई। यह संधि सिर्फ सैन्य सहयोग नहीं, बल्कि राजनीतिक विश्वास का सबसे ठोस प्रमाण थी। सैन्य शक्ति का स्तंभ भारत की रक्षा क्षमता का बड़ा हिस्सा रूस से मिला। मिग -21 ने भारत की वायु शक्ति की रीढ़ मजबूत की।
सुखोई 30 एमकेआईआज भी भारत का सबसे भरोसेमंद फाइटर रहा है।ब्रह्मोस मिसाइल ने भारत को सुपरसोनिक हथियारों की श्रेणी में अग्रणी बनाया।एस-400 सिस्टम भारत की वायु सुरक्षा का नया कवच बना।रूस की यह सैन्य सहायता किसी भी तत्कालिक सौदे की तरह नहीं थी, बल्कि दीर्घकालिक साझेदारी पर आधारित थी।
 
भारत  अमेरिका की द्विपक्षीय  सौदेबाजी में उस समय विरोधाभास देखने को मिला है,तब अमेरिका के रास्ट्रपति ट्रम्प ने भारत की आयात निर्यात प्रणाली को प्रभावित कर  उस पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाई गई थी।अमेरिका को भारत की आवश्यकता क्यों है?वैश्विक भू-राजनीति में यह स्पष्ट है कि आज अमेरिका के लिए भारत उतना ही जरूरी है जितना भारत के लिए अमेरिका।चीन अमेरिका की सबसे बड़ी चुनौती है।
 
चीन का उभार अमेरिका के लिए एक दीर्घकालिक रणनीतिक चुनौती बन चुका है। एशिया प्रशांत से हिंद प्रशांत तक चीन की आक्रामक नीतियों ने अमेरिका को ऐसे साझेदारों की तलाश में धकेला है, जिनके पास जनशक्ति, भौगोलिक स्थिति और सैन्य क्षमता तीनों हों।भारत इस संदर्भ में स्वाभाविक रूप से सबसे उपयुक्त साझेदार है।
 
अमेरिका की नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और वैश्विक नेतृत्व की पुनर्स्थापना का प्रयास आज के परिपेक्ष्य में अहम भागीदारी निभा रहा है।पुतिन की भारत यात्रा के तुरंत बाद अमेरिकी प्रशासन द्वारा जारी की गई नेशनल सिक्युरिटी  स्ट्रेटेजी कई मायनों में महत्वपूर्ण है। इस दस्तावेज़ ने अमेरिकी कूटनीति और सामरिक प्राथमिकताओं को नए ढंग से परिभाषित किया है।
 
पश्चिमी गोलार्ध में अमेरिकी प्रभुत्व का पुनर्स्थापन
दस्तावेज़ का मुख्य उद्देश्य यह स्थापित करता है कि अमेरिका अपने निकटतम भौगोलिक क्षेत्र पश्चिमी गोलार्ध में अपने प्रभाव को पुनर्स्थापित करेगा। लैटिन अमेरिका और कैरेबियन में बढ़ते चीनी प्रभाव को चुनौती देना भविष्य प्रभावित करने की सम्भावना है। इस बीच नशीले पदार्थों, अवैध प्रवास और संगठित अपराध पर नियंत्रण जरूरी है।आर्थिक सहयोग को रणनीतिक सुरक्षा से जोड़ना उचित होगा।यह स्पष्ट संकेत है कि अमेरिका अब वैश्विक स्तर पर छिटपुट नीतियों के बजाय क्षेत्रीय सुदृढ़ता पर जोर देगा।एनएसएस में पहली बार यूरोप पर इतने स्पष्ट और कड़े शब्दों में टिप्पणी की गई है।
 
यूरोपीय देशों की बढ़ती निर्भरता के कई कारण हो सकते है। रक्षा खर्च में कमी,रूस और चीन के साथ स्वतंत्र समीकरण, और अमेरिका इन मुद्दों को अपने सामरिक हितों के विपरीत मानता है।33 पन्नों के दस्तावेज़ में भारत, रूस और चीन तीनों को विशेष स्थान दिया गया है, लेकिन तीनों के संदर्भ अलग-अलग हैं।अमेरिका ने भारत को प्रमुख लोकतांत्रिक शक्ति ,हिंद–प्रशांत क्षेत्र में स्वाभाविक साझेदार और तकनीकी और आर्थिक क्षमता वाला राष्ट्र के रूप में परिभाषित किया है।यह संदेश है कि अमेरिका भारत के साथ दीर्घकालिक साझेदारी को महत्वपूर्ण मानता है, चाहे भारत रूस के साथ अपने संबंध कैसे भी बनाए रखे।एनएसएस में रूस को रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी सैन्य शक्ति वाला आक्रामक राष्ट्र के रूप में वर्णित किया गया है।लेकिन साथ ही यह भी माना गया है कि रूस को पूरी तरह अलग-थलग करना लंबे समय में संभव नहीं।दस्तावेज़ में चीन को सबसे बड़ा रणनीतिक प्रतिस्पर्धी आर्थिक और सैन्य चुनौती करार दिया गया है।
 
अमेरिका की पूरी  रणनीति चीन-निरोध पर केंद्रित है। भारत की भूमिका और महत्व बढ़ा है।एनएसएस का संदेश स्पष्ट है कि अमेरिका भारत को सिर्फ साझेदार नहीं, बल्कि वैश्विक नेतृत्व के एक स्तंभ के रूप में देखता है।लोकतंत्र जनसंख्या भौगोलिक स्थिति भारत रूस संबंधों का ऐतिहासिक पक्ष इन चारों वजहों से भारत विश्व राजनीति में संतुलनकारी शक्ति बन चुका है। रूस भारत संबंध अमेरिका को स्वीकार नही है।नई रणनीति में अमेरिका यह मानकर चल रहा है कि भारत और रूस के संबंध ऐतिहासिक हैं और अमेरिका इन्हें बदल नहीं सकता।
 
इसलिए अमेरिका भारत पर दबाव डालने के बजाय उसके साथ सहयोग बढ़ाने की नीति अपना रहा है।चीन के खिलाफ भारत निर्णायक मुड़ में है।अमेरिका की रणनीति का सबसे महत्वपूर्ण तत्व यह है कि चीन को संतुलित करने में भारत अब अपरिहार्य है। भारत रूस की 75 वर्ष पुरानी दोस्ती ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत की स्थिति को मजबूत किया है। यह संबंध विश्वास, सहयोग और साझा हितों पर आधारित है।दूसरी ओर, अमेरिका की नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति यह दर्शाती है कि दुनिया एक नए शक्ति संतुलन की ओर बढ़ रही है, जहाँ भारत रूस का पुराना सहयोगी अमेरिका का नया रणनीतिक साझेदार चीन का भू-क्षेत्रीय संतुलनकर्ता तीनों भूमिकाओं में निर्णायक महत्व रखता है।आज भारत के पास वह क्षमता और सामर्थ्य है, जहाँ वह वैश्विक कूटनीति का केंद्र बन सकता है। अमेरिका, रूस और चीन तीनों शक्तियाँ इसे स्वीकार कर चुकी हैं।इस प्रकार भारत रूस संबंधों की 75वीं वर्षगांठ और अमेरिका की नई रणनीति दोनों मिलकर दुनिया को यह संदेश देते हैं कि आने वाला दशक भारत-केंद्रित कूटनीति का दशक होगा।

About The Author

स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel