ऊँचाइयों पर कभी परवाने नहीं होते”

ऊँचाइयों पर कभी परवाने नहीं होते”

ऊँचाइयों पर कभी परवाने नहीं होते”

ऊँचाइयों पर कभी परवाने नहीं होते,
आसमान पर ठौर-ठिकाने नहीं होते।

कदम सम्भल कर उठाना मेरे दोस्त,
कम खंजर चलाने वाले नहीं होते।

ख़ुद की शोहरत, ख़ुद को ही भाती है,
यहाँ नफ़रत के ठेकेदार कम नहीं होते।

शोहरत चिलचलती धूप बन जाती है
तपिस तेज करने वाले काम नहीं होते।

तपती धूप है कल शीतल छाँव होगी,
हर उठे हूए हाथ विरोध के नहीं होते।

साज़िश, सियासत होंगी तेरे खिलाफ़,
इमानदारों के विरोधी कम नहीं होते।

ऊँचाइयों पर ही पेश आती मुश्किलें,
आकाश में छेद आसानीं से नहीं होते ।

कौन कहता, मिट जाती हस्तियाँ मुश्किलों में,
रोशन चिराग़ हवाओं से नहीं होते।

ऊँचाइयों पर कभी परवाने नहीं होते”

About The Author

स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel