गरीबी-मुक्त भारत का सपना, केरल ने दिखाया रास्ता
[गरीबी के पार: नव केरल का उज्ज्वल घोष]
केरल की पावन धरती, जहां नारियल के हरे-भरे बागान समुद्र की लहरों से आलिंगन करते हैं और पश्चिमी घाट की पर्वत श्रृंखलाएं मानसून की बूंदों से सराबोर हो जाती हैं, एक ऐसी क्रांति की साक्षी बनी है, जो न केवल राज्य की सीमाओं को लांघ रही है, बल्कि समूचे भारत को प्रेरणा दे रही है। 1 नवंबर को, केरल पिरवी दिवस के पवित्र अवसर पर, मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने विधानसभा के विशेष सत्र में एक ऐतिहासिक घोषणा की—केरल अब अत्यधिक गरीबी से पूर्णतः मुक्त हो चुका है। यह भारत का पहला राज्य है, जिसने इस असाधारण उपलब्धि को हासिल किया है। यह केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि लाखों परिवारों की आशाओं का उदय और समावेशी समाज के निर्माण की विजय है। कल्पना करें, उन घरों को, जहां कभी भूख और अभाव की छाया मंडराती थी, वहां आज आत्मसम्मान और समृद्धि की किरणें झिलमिला रही हैं। यह उपलब्धि केरल की सामाजिक न्याय की गौरवशाली परंपरा का शिखर है, जो 1957 के ऐतिहासिक भूमि सुधारों से शुरू होकर आज की डिजिटल क्रांति तक निरंतर चली आ रही है। यह यात्रा कठिनाइयों से भरी थी, फिर भी दृढ़ संकल्प, सामूहिक प्रयास और अटूट इरादों ने इसे संभव बनाया। यह कहानी हमें सिखाती है कि यदि नीयत साफ और इच्छाशक्ति अटल हो, तो गरीबी को जड़ से उखाड़ना असंभव नहीं।
इस ऐतिहासिक उपलब्धि की नींव 2021 में रखी गई, जब वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में ही एक्सट्रीम पॉवर्टी एरेडिकेशन प्रोग्राम (ईपीईपी) को हरी झंडी दिखाई। नीति आयोग की 2023 की रिपोर्ट ने केरल को देश में सबसे कम 0.55 प्रतिशत बहुआयामी गरीबी दर के साथ शीर्ष पर रखा, लेकिन यह आंकड़ा सरकार के लिए रुकने का बहाना नहीं बना। इसके बजाय, एक अभूतपूर्व सर्वेक्षण अभियान शुरू किया गया, जिसमें 1,032 स्थानीय निकायों के सहयोग से 64,006 परिवारों—कुल 1,03,099 व्यक्तियों—की पहचान की गई, जो अत्यधिक गरीबी की जकड़ में थे अत्यधिक गरीबी, यानी वह दयनीय स्थिति जहां व्यक्ति प्रतिदिन 180 रुपये से कम पर जीने को मजबूर हो, जहां भोजन, स्वास्थ्य, आवास और शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरतें एक दूर का सपना हों। इस चुनौती से निपटने के लिए सरकार ने एकसमान नीति थोपने के बजाय हर परिवार के लिए व्यक्तिगत माइक्रो-प्लान तैयार किए। स्थानीय स्वशासन संस्थाओं, कुडुंबश्री जैसे सशक्त महिला समूहों और सामाजिक संगठनों को इस मिशन में सहयोगी बनाया गया। नतीजा? 59,277 परिवारों को गरीबी के दलदल से निकालकर स्वाभिमान और समृद्धि की राह पर लाया गया।
शेष मामलों में, जैसे 261 खानाबदोश परिवारों का पता न लगना या 47 परिवारों की दोहरी सूची, को भी पारदर्शिता और संवेदनशीलता के साथ संबोधित किया जा रहा है। यह पूरी प्रक्रिया न केवल पारदर्शी और जनभागीदारी से परिपूर्ण थी, बल्कि मानवीय गरिमा को सर्वोपरि रखकर संचालित हुई। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने इसे "नव केरल का उदय" करार दिया—एक ऐसा केरल जो न केवल आर्थिक प्रगति का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक समानता और मानवता की जीवंत मिसाल है।
इस अभूतपूर्व कार्यक्रम ने केरल में मानवता और विकास का नया इतिहास रचा। भोजन सुरक्षा के लिए 20,648 परिवारों को दैनिक राशन और 2,210 परिवारों को पका भोजन सुनिश्चित किया गया। स्वास्थ्य क्षेत्र में 85,721 लोगों को चिकित्सा सहायता और दवाएं दी गईं। आवास के लिए 5,400 नए घर बने, 5,522 पुराने घरों का नवीकरण हुआ, और 2,713 भूमिहीन परिवारों को जमीन दी गई। शिक्षा, रोजगार, और स्वरोजगार के लिए राशन कार्ड, आधार कार्ड जैसे दस्तावेजों के साथ अवसर प्रदान किए गए। सरकार ने 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश कर सड़कों-पुलों से परे लोगों के जीवन और सपनों को संवारा। 96.2% साक्षरता, कम शिशु मृत्यु दर, और पूर्ण विद्युतीकरण वाले केरल ने साबित किया कि विकास का असली पैमाना लोगों की मुस्कान और आशा है। तिरुवनंतपुरम के सेंट्रल स्टेडियम में ममूटी जैसे दिग्गजों की मौजूदगी में आयोजित समारोह में मुख्यमंत्री ने इसे केरल की साझा जीत बताया। चीनी राजदूत शू फेइहोंग ने इसे मानवता की वैश्विक जीत करार दिया। यह कार्यक्रम केरल की उपलब्धि और मानवता के लिए प्रेरणादायी मील का पत्थर है।
Read More Aaj Ka Rashifal: इन राशि वालों के लिए आज का दिन रहेगा शुभ, जानें मेष से लेकर मीन राशि का हाल केरल के गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम की घोषणा ने नई आशा जगाई, हालांकि कुछ विवादों ने इसे और परिपक्व बनाने का अवसर दिया। कांग्रेस-नीत यूडीएफ ने इसे "राजनीतिक स्टंट" कहकर आलोचना की, और विपक्षी नेता वी.डी. सतीशन ने सत्र बहिष्कार कर इसे गैर-वैज्ञानिक बताया। वायनाड में 90% आदिवासी परिवारों की बदहाली—बिना बिजली, पानी, शौचालय—पर कार्यकर्ता मणिक्कुट्टन जैसे लोगों ने सवाल उठाए। लेकिन सरकार ने दृढ़ता दिखाते हुए कहा कि ईपीईपी में आदिवासी समावेश को प्राथमिकता दी गई है। आलोचनाएं श्रमिक कल्याण और लक्ष्यीकरण में सुधार की राह दिखाती हैं। मुख्यमंत्री विजयन ने नियमित जांच और निगरानी का वादा किया, ताकि कोई परिवार गरीबी में न लौटे। ये चुनौतियां केरल मॉडल की ताकत को कम नहीं करतीं, बल्कि इसे और समावेशी, मजबूत और प्रेरणादायी बनाने का मार्ग प्रशस्त करती हैं। यह एक सतत यात्रा है, जो केरल की मानवीय संवेदना और विकास के प्रति प्रतिबद्धता को और उजागर करती है।
केरल की गरीबी मुक्त घोषणा संयुक्त राष्ट्र के एसडीजी 1, कोई गरीबी नहीं, के अनुरूप है। विश्व बैंक (2025) के अनुसार, केरल ने प्रतिदिन 3 डॉलर से कम की अत्यधिक गरीबी को समाप्त किया। राज्य का जीडीपी अमेरिका का 0.51% मात्र है, पर शिशु मृत्यु दर और साक्षरता में वह आगे है। यह "केरल स्टोरी" है—धन नहीं, लोगों की देखभाल। 2016 में एलडीएफ के सत्ता में आने पर जर्जर सड़कें, ढहते पुल, बकाया पेंशन जैसी समस्याएं थीं। नौ वर्षों में बुनियादी ढांचा मजबूत हुआ और कुडुंबश्री जैसी पहलों ने महिलाओं को सशक्त कर गरीबी का चक्र तोड़ा। अन्य राज्य, जैसे बिहार और उत्तर प्रदेश, केरल की माइक्रो-प्लानिंग और जनभागीदारी से सीख सकते हैं। केंद्र की योजनाएं जैसे पीएम आवास, आयुष्मान भारत को ईपीईपी जैसे एकीकरण से और प्रभावी बनाया जा सकता है। केरल का मॉडल सामाजिक न्याय और समावेशी विकास का प्रेरणादायी उदाहरण है।
केरल की यह ऐतिहासिक घोषणा सामूहिक इच्छाशक्ति और दशकों की दूरदर्शी नीतियों—भूमि सुधार, सार्वजनिक स्वास्थ्य, और सामाजिक न्याय—का जीवंत प्रमाण है। असली नायक हैं वे अडिग लोग— मजदूर, किसान, महिलाएं, और आदिवासी, जिन्होंने हार नहीं मानी। जब विश्व गरीबी से जूझ रहा है, केरल गर्व से कहता है—यह संभव है! यह केवल एक अध्याय नहीं, बल्कि एक प्रेरणादायी शुरुआत है, जहां कोई बच्चा भूखा न सोए, हर मां को दवा मिले, और प्रत्येक परिवार को छत नसीब हो। केरल ने दिखाया कि राजनीति जब सेवा बन जाए, तो चमत्कार साकार होते हैं। अब भारत के सामने चुनौती है—केरल के पथ पर चलो, उठो, संघर्ष करो, और जीतो। यह विजय केरल की ही नहीं, बल्कि समस्त मानवता की आशा की किरण है।
प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी

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