जांच में अनिश्चित देरी स्वीकार नहीं, चार्जशीट में बहुत ज़्यादा विलंब कार्रवाई रद्द करने का आधार: सुप्रीम कोर्ट
स्वतंत्र प्रभात ब्यूरो, प्रयागराज।
11 साल से लंबित जांच, IAS अधिकारी को मिली राहत
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने एक मामले में 11 साल से लंबित आगे की जांच को आधार बनाते हुए एक IAS अधिकारी के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी। कोर्ट ने कहा कि बिना किसी उचित कारण के इतनी लंबी देरी पूरा अभियोजन कमजोर करने के लिए पर्याप्त है।
कोर्ट ने कहा,
“आरोपी को इस अनिश्चित भय में नहीं रखा जा सकता कि जांच अनंत चलती रहेगी और यह उसके रोज़मर्रा के जीवन और अधिकारों पर असर डालेगी।”
कोर्ट के प्रमुख निर्देश
जस्टिस करोल द्वारा लिखे फैसले में आगे की जांच की प्रक्रिया को ठोस और जवाबदेह बनाने के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए गए:
(i) कोर्ट की निगरानी अनिवार्य
CrPC की धारा 173(8) के तहत सप्लीमेंट्री चार्जशीट कोर्ट की अनुमति से दायर होती है। इसलिए अनुमति देने के बाद ट्रायल कोर्ट का काम खत्म नहीं होता, बल्कि न्यायिक नियंत्रण बनाए रखना उसका दायित्व है।
(ii) बिना वजह लंबी देरी पर स्पष्टीकरण जरूरी
अगर FIR और अंतिम चार्जशीट के बीच असाधारण अंतर हो, या आरोपी इस आधार पर शिकायत करे, तो ट्रायल कोर्ट जांच एजेंसी से कारण पूछने और उसकी वैधता की जांच करने के लिए बाध्य है।
कोर्ट ने कहा कि न्याय प्रणाली में निष्पक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है।
(iii) जांच अनंत नहीं हो सकती
कोर्ट ने माना कि जांच की प्रक्रिया कई स्तरों से गुजरती है और सख्त समय सीमा तय करना हमेशा संभव नहीं, लेकिन आरोपी को उचित समय के भीतर स्पष्टता मिलना उसका अधिकार है।
अगर बिना ठोस कारण के जांच अनिश्चित काल तक चले, तो आरोपी या शिकायतकर्ता हाईकोर्ट में BNSS की धारा 528 या CrPC की धारा 482 के तहत राहत मांग सकता है—
जैसे जांच में अपडेट, या कार्यवाही रद्द करने की मांग।
(iv) प्रशासनिक निर्णय भी कारणों के आधार पर
कोर्ट ने कहा कि केवल न्यायिक नहीं, बल्कि प्रशासनिक स्तर पर—जैसे अनुमति या मंजूरी देने वाले अधिकारियों को भी अपने फैसले के कारण स्पष्ट करने होंगे, क्योंकि ऐसे निर्णय आगे कानूनी परिणाम उत्पन्न करते हैं।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट संकेत दिया कि:
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अनिश्चित जांच अभियोजन को कमजोर करती है,
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चार्जशीट में बिना वजह लंबी देरी कार्रवाई रद्द करने का आधार बन सकती है,
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और ट्रायल कोर्ट को पुलिस जांच पर सक्रिय निगरानी रखनी चाहिए।
अदालत ने इस निर्देश के साथ उक्त IAS अधिकारी की याचिका स्वीकार कर ली।

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