डिजिटल हल, मानवीय सम्मान: न्यायपालिका का नया चेहरा

न्यायपालिका और डिजिटल युग: सम्मान की नई मिसाल

डिजिटल हल, मानवीय सम्मान: न्यायपालिका का नया चेहरा

न्यायाधीश भले रिटायर हों, सम्मान कभी रिटायर नहीं होता

जब न्यायपालिका की गरिमा तकनीक के साथ सहजता से मिलती हैतभी समाज की असली प्रगति दिखाई देती है। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट का हालिया फैसला केवल एक कागजी आदेश को रद्द करने तक सीमित नहीं हैयह उन सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के प्रति गहन सम्मान और कृतज्ञता का प्रतीक हैजिन्होंने दशकों तक न्याय के तराजू को निर्भीक और निष्पक्ष बनाए रखा। वे लोगजिन्होंने अपना जीवन न केवल कानून बल्कि समाज की विश्वासनीयता और नैतिक संतुलन के लिए समर्पित कियाअब हर नवंबर की जटिल औपचारिकताओं से मुक्त रहेंगे। यह केवल प्रशासनिक बदलाव नहींबल्कि मानवतागरिमा और न्याय की असली भावना को पुनः प्रतिष्ठित करने वाला ऐतिहासिक कदम है।

13 दिसंबर 2024 को वित्त विभाग द्वारा जारी परिपत्र ने राज्य के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिए एक नई व्यवस्था लागू की थीजिसके तहत मेडिकल भत्ता और घरेलू भत्ता जारी रखने के लिए उन्हें हर वर्ष अपने ही जिले में जाकर लाइफ सर्टिफिकेट जमा करना अनिवार्य था। यह नियम शायद सामान्य पेंशनभोगियों के लिए सहज और उपयुक्त प्रतीत हो सकता थालेकिन उन लोगों के लिए जिन्होंने जीवनभर निष्पक्ष और निर्भीक न्याय के लिए समर्पण कियायह प्रथा उनके सम्मान और गरिमा के अनुरूप नहीं थी। फार्मर जजेस वेलफेयर एसोसिएशन ने इस असंवैधानिक और अपमानजनक प्रथा को चुनौती देते हुए याचिका दायर कीस्पष्ट करते हुए कि राज्य सरकार का अधिकार कभी भी न्यायपालिका की प्रतिष्ठा और सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की गरिमा को आहत करने के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता।

हाई कोर्ट ने अपने संक्षिप्त किन्तु निर्णायक फैसले में स्पष्ट किया कि सेवानिवृत्त न्यायाधीश कोई सामान्य पेंशनर नहीं हैं। उन्होंने संविधान की शपथ के तहत न्याय की स्वतंत्रता और निष्पक्षता का पालन कियाऔर उनका जीवन न्याय की सेवा में समर्पित रहा। ऐसे व्यक्तियों को बार-बार अपनी जीवित उपस्थिति की पुष्टि करने के लिए बाध्य करना न्यायपालिका की आत्मा और गरिमा पर चोट है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जीवन की पुष्टि डिजिटल माध्यमों या बैंक रिकॉर्ड के माध्यम से सहजता से की जा सकती हैजिससे किसी पूर्व न्यायाधीश को अदालत में तलब करना न केवल अनावश्यकबल्कि सम्मान के विपरीत है। इसके परिणामस्वरूपसरकार ने परिपत्र को वापस ले लिया और रिटायर्ड जजों को स्थायी राहत प्रदान की।

यह निर्णय केवल मध्यप्रदेश तक सीमित नहीं रहेगा। यह पूरे देश में मिसाल बनेगा और अन्य राज्यों में भी रिटायर्ड न्यायाधीशों और उच्च अधिकारियों के लिए सम्मान और गरिमा की नई दिशा स्थापित करेगा। यह साबित करता है कि तकनीक और प्रशासनिक प्रक्रिया का वास्तविक उद्देश्य इंसान की सुविधा और सम्मान होना चाहिएन कि उनकी अपमानजनक जांच। डिजिटल इंडिया के युग मेंजब आधारपैनबैंक खाता और मोबाइल जैसी सुविधाएँ आपस में जुड़े हुए हैंफिर भी पुराने कागजी दस्तावेजों के लिए बुजुर्गों को समय और श्रम गंवाने के लिए बाध्य करना न केवल व्यर्थ हैबल्कि संवेदनशीलता और सम्मान की कमी का भी प्रतीक है।

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डिजिटल समाधान के माध्यम से सम्मान सुनिश्चित करना अब न केवल संभवबल्कि अत्यंत प्रभावशाली भी है। आज के डिजिटल युग में यह सहज है कि सभी जीवन प्रमाणित प्रक्रियाएँ बिना किसी कठिनाई और झंझट के ऑनलाइन पूरी की जा सकें। बायोमेट्रिक आधार अपडेटबैंक खाता सक्रियता का सत्यापनमोबाइल संदेश के माध्यम से जीवन पुष्टि या निष्क्रियता पर अलर्ट जैसे उपाय तुरंत लागू किए जा सकते हैं। इससे न केवल रिटायर्ड न्यायाधीशोंबल्कि सभी पेंशनभोगियों को सहजसम्मानजनक और सुरक्षित तरीके से अपनी जीवन पुष्टि कराने की सुविधा मिलती है। तकनीक का यह प्रयोग केवल सुविधाजनक नहीं हैयह समाज में सम्मानसंवेदनशीलता और मानवीय दृष्टिकोण को भी मजबूती से स्थापित करता है। मध्यप्रदेश का यह निर्णायक कदम स्पष्ट रूप से दिखाता है कि जब डिजिटल समाधान मानव सेवा और गरिमा के लिए काम करता हैतब न्याय और समाज दोनों की भलाई सुनिश्चित होती है।

सच्ची प्रभावशीलता इस तथ्य में निहित है कि यह राहत किसी विशेष लाभ की मांग नहीं थी—यह केवल सम्मान की मांग थी। जब न्यायपालिका ने स्वयं अपने पूर्व सदस्यों का सम्मान सुनिश्चित कियातो इसने यह साबित कर दिया कि संस्था न केवल जीवित हैबल्कि संवेदनशील और न्यायप्रिय भी है। छोटे प्रशासनिक निर्णय भी बड़े संदेश दे सकते हैंऔर यह फैसला यह संदेश देता है कि समाज और राज्य के लिए न्याय के कार्यकर्ताओं का ऋण चुकाना एक अनिवार्य कर्तव्य है। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने यह ऋण पूरी गरिमा के साथ चुका दिया। अब समय आ गया है कि पूरे देश में रिटायर्ड न्यायाधीशों और सभी न्याय कर्मियों की गरिमा की रक्षा सुनिश्चित की जाए। न्यायाधीश भले ही रिटायर हो जाएँलेकिन न्याय और उसके सम्मान का गौरव कभी रिटायर नहीं होता।

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