वेद–उपनिषदों के आलोक में प्रदीप्त होता वैश्विक आकाश,अयोध्या से विश्वशांति का नवोदय
वेद, उपनिषद और पुराणों का ज्ञान भारतीय चेतना का वह दिव्य आलोक है जिसने सहस्राब्दियों से संपूर्ण मानवता को दिशा दी है। इन प्राचीन ग्रंथों में निहित ऊर्जा, तत्वज्ञान और आध्यात्मिक शक्ति केवल धर्मग्रंथ नहीं, बल्कि मानव सभ्यता के प्रकाशस्तंभ हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के मंत्र केवल ध्वनियाँ नहीं, बल्कि जीवन का अनंत संगीत हैं जो मनुष्य को बाह्य नहीं, अंतरंग रूप से परिष्कृत करते हैं और यह बताते हैं कि मानव जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक उपलब्धियाँ नहीं बल्कि आत्मा का विस्तार है। आज जब संपूर्ण विश्व विभाजन, युद्ध की राजनीति, शक्ति सन्तुलन और स्वार्थ की अंधी दौड़ में घिरा हुआ है, तब वेदों का यह प्रकाश पुनः वैश्विक आकाश को प्रदीप्त कर सकता है। बीते दो दशकों में मानव सभ्यता ने विज्ञान और तकनीकी विकास की अद्भुत प्रगति देखी है, परंतु इसके साथ युद्ध की भयावहता भी बढ़ी है।
योग, ध्यान, आयुर्वेद और अध्यात्म की भारतीय परंपरा ने यूरोप, अमेरिका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया तक जीवन की नई ऊर्जा भर दी है। संयुक्त राष्ट्र के मंच पर जब भारत ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा की और 177 देशों ने उसे समर्थन दिया, तब यह स्पष्ट हो गया कि विश्व भारत से केवल आर्थिक शक्ति नहीं, बल्कि आध्यात्मिक नेतृत्व की अपेक्षा करता है। मानव विकास की दिशा केवल प्रौद्योगिकी में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और संतुलन में निहित है। यह विचार आज विश्व के मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक विमर्शों का आधार बन रहा है। परंतु दुर्भाग्य यह है कि वैश्विक नेतृत्व का बड़ा भाग अब भी सैन्य सामर्थ्य और शक्ति प्रदर्शन की मानसिकता से बाहर नहीं आ पाया है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आज भी संघर्ष और विस्तारवाद की गूँज सुनी जाती है। ऐसे समय में भारत ने अयोध्या से शांति का ध्वज उठाकर समूचे विश्व को यह संदेश दिया कि युद्ध से कभी शांति उत्पन्न नहीं होती शांति केवल संवाद, सहयोग और संवेदना से संभव है।
अयोध्या में हुआ ध्वजारोहण केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है। उस क्षण जब करोड़ों लोगों ने एक साथ शांति मंत्रों का उच्चारण किया “ॐ द्यौः शान्तिः, अन्तरिक्षं शान्तिः, पृथिवी शान्तिः” और “संगच्छध्वं संवदध्वं” तो यह केवल भारत की आस्था की ध्वनि नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता की पुकार थी कि युद्ध की विभीषिका पर विजय प्राप्त कर शांति को सार्वभौमिक धर्म बनाया जाए। यह उद्घोष आज वैश्विक कूटनीति में उस नए अध्याय की शुरुआत है जहां भारत हथियारों की बाजी नहीं, संवाद का नेतृत्व कर रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक शांति दृष्टि उसी सनातन विचारधारा का आधुनिक रूप है, जिसका मूल है।मानवता का भविष्य हथियारों की चमक में नहीं, बल्कि नैतिक प्रकाश में है। आज भारत केवल आर्थिक प्रगति, अंतरिक्ष विज्ञान या तकनीकी क्षमता के बल पर ही नहीं, बल्कि नैतिक नेतृत्व के आधार पर विश्व का मार्गदर्शक बन रहा है। G20 शिखर सम्मेलन में भारत द्वारा रखा गया "वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर"का संकल्प उसी वसुधैव कुटुम्बकम् की नए युग की भाषा है।
यदि जीवन को केवल रोजगार, विवाह, संतान और सेवानिवृत्ति तक सीमित कर दिया जाए, तो वह एक अधूरा वृत्त रह जाता है। जीवन का वास्तविक अर्थ तब पूर्ण होता है जब उसमें सामुदायिक श्रम, सामाजिक उपयोगिता और आत्मिक संतोष का सम्मिलन हो। यही वह सिद्धांत है जिसने राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, सर सैयद अहमद खान, महर्षि दयानंद और स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों को समाज की कुरीतियों और जड़ता के विरुद्ध संघर्ष करने की शक्ति दी।
यही वह ऊर्जा है जिसने सुंदरलाल बहुगुणा को चिपको आंदोलन खड़ा करने की प्रेरणा दी, कैलाश सत्यार्थी को बाल अधिकारों के लिए विश्व–अभियान चलाने का साहस दिया, और बिल गेट्स तथा वॉरेन बफेट को अपनी अकूत संपत्ति का विशाल भाग मानव सेवा में लगाने का संकल्प दिया। एडिसन, आइंस्टीन, मैडम क्यूरी और राइट बंधु सफलता के पीछे नहीं भागे, उन्होंने सार्थकता को उद्देश्य बनाया। यदि वे केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों तक सीमित रहते, तो उनके आविष्कार मानवता की धरोहर न बन पाते।सफलता क्षणिक सुख दे सकती है, पर सार्थक श्रम ही वह दीप है जो जीवन को स्थायी उजाला देता है और समाज को पथप्रदर्शक।
जब श्रम, परिश्रम और प्रयत्न एक साथ मिलते हैं, तभी चिरस्थायी आनंद, आत्मिक संतोष और मानवता की उन्नति संभव होती है। यही वेदों की परंपरा का सार है और यही अयोध्या के ध्वजारोहण का संदेश पहले अशांति को परास्त करो, तभी शांति का ध्वज फहरेगा। आज भारत विश्व को बता रहा है कि युद्ध का अंत हथियारों से नहीं, बल्कि विचारों और संस्कृति की शक्ति से होता है। अयोध्या का शांतिमय ध्वज अब केवल भारत का प्रतीक नहीं, बल्कि विश्व मानवता की दिशा है। भारत निरंतर वैश्विक शिखर की ओर बढ़ रहा है और यह प्रस्थान मार्ग शस्त्रों से नहीं, शास्त्रों की रोशनी से आलोकित है। यही है नया युग विश्वशांति का, वैश्विक एकता का और भारतीय नेतृत्व का।

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