अरबों डॉलर का है कुत्तों के बाजार का अर्थशास्त्र

अरबों डॉलर का है कुत्तों के बाजार का अर्थशास्त्र

भारतीय समाज और मीडिया में पिछले तीन महीनों से कुत्ते चर्चा में छाए हुए हैं। यह पहली बार है कि समाचार-पत्रों के मुखपृष्ठों और टीवी के प्राइम टाइम में नेताओं के बराबर ही कुत्तों को जगह मिली है। कृपया मुझे गलत न समझें, मेरा इरादा इनका तुलनात्मक अध्ययन नहीं है। दरअसल इंसानों की तरह ही कुत्तों की भी नस्लें होती हैं, इनमें भी वर्ग-भेद होता है। कुछ खुशनसीब एलीट होते हैं तो अधिकांश वंचित वर्ग यानी गली-कूचों में पलने वाले, जिन्हें ‘गली का आवारा कुत्ता’ यानी ‘स्ट्रे डॉग’ कहा जाता है।

पिछले लंबे समय से आवारा कुत्तों की बढ़ती हिंसक घटनाओं के कारण सात नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने ‘इंसानी जानें पशुओं से ऊपर हैं’ बताते हुए उन्हें सार्वजनिक स्थानों, स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों, बस-रेलवे स्टेशनों, स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, हाईवे और एक्सप्रेस वे से हटा कर इन्हें शेल्टर होम्स में भेजने के निर्देश हैं। आवारा कुत्तों से अलग हटकर बात की जाए तो

वैश्विक स्तर पर ‘कुत्तों का अर्थशास्त्र’ या ‘डॉग इकोनॉमी’ पेट केयर इंडस्ट्री का एक प्रमुख हिस्सा है, जो कुत्तों से जुड़े उत्पादों, सेवाओं और बाजार से जुड़ी है। जिसमें भोजन, ग्रूमिंग, स्वास्थ्य सेवा और सामान शामिल हैं। 2024 में वैश्विक ‘पेट बिजनेस इंडस्ट्री’ का आकार 360 बिलियन डॉलर से अधिक हो चुका है। यह इंडस्ट्री तेजी से बढ़ रही है। 2025 में ही लगभग 273.42 अरब डॉलर का बिजनेस अनुमानित है, जिसमें कुत्तों से जुड़े उत्पाद और सेवाएं 40-50 फ़ीसदी हिस्सा रखती हैं, ये आंकड़े वैश्विक बाजार के हैं जिनमें कुत्ते पेट सबसे बड़े सेगमेंट (लगभग 50 प्रतिशत) हैं।

कुत्तों से जुड़े कारोबार के अनेक आयाम हैं। अमेरिकन पेट प्रोडक्ट्स एसोसिएशन के अनुसार खाना और ट्रीट्स सबसे बड़ा सेगमेंट है। प्रीमियम, ऑर्गेनिक और स्पेशल डाइट वाले उत्पाद लोकप्रिय हैं। इसका अनुमानित कारोबार 42.59 अरब डॉलर है। सामान्य खाने जिसमें चिकन, मीट, ब्रेडसब्ज़ियाँ और अनाज आदि होते हैं, उनका कुल बाजार 158.42 अरब डॉलर का है। सप्लाईज, खिलौने और एक्सेसरीज को ही लें, इसमें कॉलर, लीड, बेड, खिलौने, कपड़े और ट्रेनिंग प्रोडक्ट्स शामिल हैं। पेट केयर और  वैक्सीन, दवाएं और हेल्थ प्रोडक्ट्स का कारोबार 39.8 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है। 

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कुत्तों के साज-शृंगार के लिए विशेष आउटलेट्स भी बहुत आम  हो चुके हैं। इन्हें ‘डॉग ग्रूमिंग सैलून’, ‘पेट स्पा’ या ‘मोबाइल ग्रूमिंग सर्विस’ कहा जाता है। इस फ़ील्ड में अब उच्च शिक्षित युवा गंभीरता से आगे आ रहे हैं। क्रिकेट लीजेंड सचिन तेंदुलकर की होने वाली बहू सानिया चंडोक ने मुंबई में प्रीमियम पेट स्पा सेंटर खोला है। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के बाद अर्जुन तेंदुलकर की मंगेतर सानिया ‘मिस्टर पॉज़’ की फाउंडर बन चुकी हैं जो एक प्रीमियम पेट सैलून एंड स्पा सेंटर है। जहां फर वाले पालूत जानवरों यानी कुत्ते और बिल्ली को लक्जरी सुविधाएं मिलती हैं। यहां इन जानवरों की हेयर कटिंग और स्पा के अलावा शैम्पू, दवाइयां, विटामिन सप्लिमेंट्स, खाने-पीने के सामान के साथ-साथ खिलौने और यहां तक कि कपड़े भी मिलते हैं।

भारत में कुत्तों से जुड़े उत्पादों का वैश्विक सालाना कारोबार 2025 में 100 अरब डॉलर से अधिक होने का अनुमान है, जो 2030 तक 150 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। वैश्विक स्तर पर ये बाजार 2025 में 7.26 अरब डॉलर का है और अमेरिका, यूके, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में हजारों ऐसे सैलून हैं। भारत में भी दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में पेट स्पा बढ़ रहे हैं। अब तो पेट्स का बीमा भी होने लगा है। पेट इंश्योरेंस इंडस्ट्रीज के मुताबिक इस बाजार के 2025 तक 80 लाख  डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। प्रौद्योगिकी के तहत स्मार्ट कॉलर, जीपीएस ट्रैकर और पालतू जानवरों के लिए ऐप जैसी तकनीकें भी इस उद्योग में शामिल हो चुकी हैं। इसके साथ ही देश में पालतू जानवरों के प्रशिक्षण और बोर्डिंग सर्विस भी बड़ा बिजनेस बनती जा रही है।

यह तो हुई एलीट क्लास कुत्तों से जुड़े कारोबार की बात। अब महत्वपूर्ण है, कुत्तों से जुड़ी प्रमुख बीमारियां और उनसे जुड़े फार्मास्यूटिकल बिजनेस की चर्चा, जो कंपनियों को सालाना अरबों डॉलर का राजस्व देती हैं। वैश्विक पशु चिकित्सा (वेटरनरी) फार्मा इंडस्ट्री का एक बड़ा हिस्सा है, जो 2025 में कुल 47.25 अरब डॉलर का बाजार है। इसमें कुत्तों से जुड़ी बीमारियां जैसे वैक्सीन, पैरासाइट कंट्रोल और कैंसर ट्रीटमेंट प्रमुख हैं। कुत्तों की कुछ बीमारियों की दवा और इलाज से कंपनियों को बड़ा बिजनेस मिलता है। इनमें मुख्य हैं रैबीज। वैश्विक पशु रैबीज वैक्सीन बाजार 2025 में लगभग 500 मिलियन डॉलर  का है, जो 2030 तक 1.1 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।

पश्चिमी और यूरोप की अनेक नामी कंपनियां रैबीज वैक्सीन से ही सालाना अरबों रुपए कमाती हैं।  वैश्विक हार्टवर्म ट्रीटमेंट बाजार भी 2025 में 1.55 अरब डॉलर पहुंच चुका है, जो पेट डीज़ीज़ बिजनेस एक्सपर्ट्स के अनुसार 2034 तक 2.85 अरब डॉलर हो जाएगा। इनके अलावा कुत्तों में फ्ली और टिक इन्फेस्टेशन, पैरावायरस,लिम्फोमा, मेलानोमा जैसी कैंसर आम बीमारियां हैं। कंपैनियन एनिमल फार्मा में कैंसर ट्रीटमेंट हाई-ग्रोथ सेगमेंट, कुल वेटरनरी मार्केट 49.96 अरब डॉलर का है। दुनिया के कई देशों में स्ट्रे डॉग्स की आबादी नियंत्रित करने, रोगों से बचाव और पशु कल्याण के लिए सरकारी स्तर पर नसबंदी कार्यक्रम भी लागू किया जाता है। पूरी दुनिया मे इसके लिए करोड़ों डॉलर का बजट होता है। भारत में स्ट्रे डॉग्स की नसबंदी के लिए 2025-26 में करीब 150 करोड़ का बजट है। 

हरीश शिवनानी

(स्वतंत्र पत्रकारिता-लेखन)

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