सुप्रीम कोर्ट के कटघरे में चुनाव आयोग 

सुप्रीम कोर्ट के कटघरे में चुनाव आयोग 

आज-कल पूरे भारत पर चुनावी रंग चढा हुआ है। लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व को लोग भरपूर हर्षोल्लास से मना रहे हैं। 543 संसदीय सीटों के लिए हो रहे लोकसभा चुनाव सात चरणों में पूर्णता की ओर बढ रहे है। इन चुनावों में 96 करोड़ से ज्यादा मतदाता अपनी पसंद की सरकार चुनेंगे। अब तक पांच चरणों के चुनाव पूरे हो चुके हैं परन्तु पहले चरण के मतदान होते ही चुनाव आयोग आरोपों और विवादों के घेरे में आ गया हैं। इन आरोपों में से एक आरोप की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। चुनाव आयोग पर मतदान संबंधी आंकड़ों को देरी से जारी करने का आरोप लग रहा है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा सुप्रीम कोर्ट में बूथों पर मतों की संख्या संबंधित फॉर्म 17-सी की स्कैनड कॉपी अपलोड करने संबंधी याचिका दाख़िल की थी। इस याचिका में मांग की गई है कि चुनाव आयोग मतदान में मतों की कुल गिनती की संख्या मतदान खत्म होने के तुरंत बाद अपनी वेबसाइट पर जारी करे।
 
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बीते शुक्रवार को भारतीय चुनाव आयोग को एक सप्ताह के अंदर मतदान संबंधी आंकड़ों को जारी करने से संबंधित याचिका पर अपना पक्ष रखने को कहा है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पार्दीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। तीन जजों की बेंच का नेतृत्व कर रहे भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ ने चुनाव आयोग के वकील से पूछा कि प्रत्येक मतदान अधिकारी शाम 6 या 7 बजे के बाद मतदान रिकॉर्ड जमा करता है, तब तक मतदान पूरा हो जाता है। इसके बाद रिटर्निंग ऑफिसर के पास पूरे निर्वाचन क्षेत्र का डेटा होगा। आप इसे अपलोड क्यों नहीं करते? बेंच का सवाल एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स द्वारा दायर एक आवेदन पर आधारित था। जिसका प्रतिनिधित्व वकील प्रशांत भूषण, नेहा राठी और चेरिल डिसूजा ने किया था।
 
जिसमें मतदान के पहले दो चरणों के मतदाता आंकड़ों के प्रकाशन में अत्यधिक देरी का आरोप लगाया गया है।  निर्वाचन संचालन नियम, 1961 के नियम 49एस और नियम 56सी (2) के अनुसार पीठासीन अधिकारी को फॉर्म 17सी (भाग 1) प्रारूप में दर्ज मतों का लेखा-जोखा तैयार करना आवश्यक है। एनजीओ का कहना है कि मतदान विवरण प्रकाशित करने में देरी के अलावा, चुनाव आयोग द्वारा जारी प्रारंभिक मतदान प्रतिशत के आंकड़ों में भी असामान्य रूप से तेज वृद्धि हुई थी। इस घटनाक्रम ने सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध मतदान डेटा की प्रामाणिकता और यहां तक ​​कि क्या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) को स्विच किया गया है के बारे में जनता के मन में खतरे की घंटी बजा दी है। 
 
याचिका में कहा गया है कि लोकसभा चुनाव के पहले दो चरणों के लिए मतदान प्रतिशत डेटा चुनाव आयोग द्वारा 30 अप्रैल को प्रकाशित किया गया था, 19 अप्रैल को हुए पहले चरण के मतदान के 11 दिन बाद और दूसरे चरण के मतदान के चार दिन बाद चुनाव आयोग द्वारा 30 अप्रैल की प्रेस विज्ञप्ति में प्रकाशित आंकड़ों में मतदान के दिन घोषित प्रारंभिक प्रतिशत से तेज वृद्धि (लगभग 5-6 प्रतिशत) दिखाई गई थी। 19 अप्रैल को पहले चरण के मतदान के बाद चुनाव आयोग ने एक प्रेस नोट जारी किया था जिसमें कहा गया था कि शाम 7 बजे तक 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदान का अनुमानित आंकड़ा 60 प्रतिशत से अधिक था।
 
इसी तरह दूसरे चरण के मतदान के बाद 26 अप्रैल को चुनाव आयोग ने कहा था कि मतदान 60.96% था। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पार्दीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच इस मामले की अगली सुनवाई 24 मई को करेगी। इस आरोप के अलावा चुनाव आयोग पर कई दूसरे आरोप भी लग रहे हैं। विपक्ष सरकारी एजेंसियों का विपक्षी नेताओं के खिलाफ दुरुपयोग का आरोप पहले से लगाता आया है। एडीआर ने अपने याचिका में मांग की है कि चुनाव आयोग वोटिंग के 48 घंटे बाद वोटिंग प्रतिशत का फाइनल डेटा जारी करे। सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने भी यह सवाल चुनाव आयोग के वकील से किया। चुनाव आयोग ने अपनी मजबूरी बताते हुए कहा कि डेटा इतना ज्यादा है कि इसे 48 घंटे के अंदर फाइनल कर लेना संभव नहीं है।
 
एडीआर ने चुनाव आयोग को वोटिंग खत्म होने के 48 घंटे के भीतर मतदान के आंकड़े जारी करने के निर्देश देने की मांग की थी। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पूछा कि "मतदान के आंकड़े को वेबसाइट पर डालने में क्या कठिनाई है"। इस पर चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि इसमें समय लगता है,  क्योंकि हमें बहुत सारा डेटा इकट्ठा करना होता है। वहीं 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने मतपत्रों की वापसी और ईवीएम पर संदेह की एडीआर की याचिका को खारिज कर दिया था। ईवीएम के खिलाफ संदेश को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था, कि यह विश्वसनीय हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने वोट प्रतिशत बढ़ने का हवाला देते हुए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को बदलने की आशंका जताई थी। बता दें कि चुनाव आयोग के सीनियर वकील मनिंदर सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि आयोग के सीनियर अधिकारियों ने एनजीओ के वकील प्रशांत भषण के सभी संदेशों का जवाब दिया है।
 
हालांकि जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस दीपांकर दत्ता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने चुनाव आयोग के अधिकारियों से बात करने के बाद 26 अप्रैल को याचिका को खारिज कर दिया था। चुनाव आयोग के वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि क्यों कि एनजीओ के वकील प्रशांत भूषण को 2019 से लंबित याचिका में आवेदन के जरिए कुछ भी लाने का मन है, कोर्ट को इस पर विचार नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि ये चुनाव प्रक्रिया को बाधित करने की कोशिश है। चुनाव के चार चरण सही ढंग से संपन्न हो चुके हैं। चुनाव आयोग के वकील द्वारा भूषण के साथ तरजीही व्यवहार किए जाने वाली दलील पर सीजेआई की अगुवाई वाली बेंच ने आपत्ति जताते हुए इसे गलत आरोप बताया। उन्होंने कहा कि अदालत को अगर लगता है कि किसी मुद्दे पर कोर्ट के हस्तक्षेप की जरूरत है तो वह ऐसा ही करेंगे।
 
चाहे उनके सामने कोई भी हो। जरूरत पड़ने पर सुनवाई के लिए बेंच पूरी रात बैठेगी। चुनाव आयोग के 4 चरणों के अपडेटेड टर्नआउट में 1.07 करोड़ की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। प्रत्येक चरण में मतदान वाले दिन देर रात चुनाव आयोग की तरफ से जारी मतदान के आंकड़ों और अंत में अपडेटेड आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि लोकसभा चुनावों के पहले चार चरणों की तुलना में अंतर करीब 1.07 करोड़ वोटों का हो सकता है। यह  379 निर्वाचन क्षेत्रों, जहां वोटिंग खत्म हो चुकी है, वहां पर हर निर्वाचन क्षेत्र में औसतन 28,000 से अधिक वोट हैं। निस्संदेह इतनी वोटें किसी भी सीट पर हार को जीत और जीत को हार में बदलने के लिए पर्याप्त से कहीं जयादा बड़ा आंकड़ा है। इन्हीं सब आशंकाओं के समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चुनाव आयोग को अपने कटघरे में खड़ा किया है।
 
(नीरज शर्मा'भरथल)
 
 
 
 
 

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