संजीव-नी।
।प्राकृतिक विभीषिका ।
On
।प्राकृतिक विभीषिका ।
हवा में जहर
मन में विषैला पन
आखिर क्या है इसकी परिणति
और भविष्य,
प्राकृतिक विभीषिका,
लाखों बच्चों बुजुर्गों की
कर दी खत्म इह लीला,
प्रकृति की अनुपम देन
जल,वायु और हरियाली
हमने मलिन इरादों से
कर दी मटिया मेट ,
मन में संताप,बैर, ईर्ष्या
लोभ, कामना, वासना,
भविष्य में आने वाले
नन्हों, नौनिहालों को
सौगात में देते दिल में
छेद,
मन में मानसिक विकृति,
उन्हें वंचित करते
खुली हवा में जीने की
उन्मुक्तता,
कभी स्वच्छ हवा में
कभी मन में,
भरते विषैला पन,
करोना, विषैला धुआं,
पुनश्च कमी पूरी करता
बारूदो और गोलियों का
रक्तिम अभिशाप।
हमें बुजुर्गों को,नौनिहालों को
दर्दनाक जीवन और
मृत्यु देने का हक
भला किसने दिया,
जहरीली मानवीय प्रवृत्तियां,
पशु पक्षी और हरियाली का
करती जहरीला अंत,
अब तो सुधर जाओ
ईश्वर की माफी के लायक भी नहीं
शेष कैसे बच पाओगे,
कैसे और कब
दिखा पाओगे कुरूप,
चेहरे की कालिमा।
संजीव ठाकुर
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