श्री 'राम' बन जाएंगे
हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व स्तंभकार
17 अप्रैल, रामनवमी विशेषालेख:
श्री राम विष्णु के अवतार हैं, वे आदिपुरुष हैं, जो मानव मात्र की भलाई के लिए मानवीय रूप में इस धरा पर अवतरित हुए। मानव अस्तित्व की कठिनाइयों तथा कष्टों का उन्होंने स्वयं वरण किया ताकि सामाजिक व नैतिक मूल्यों का संरक्षण किया जा सके तथा दुष्टों को दंड दिया जा सके। भगवान राम ने विषम परिस्थितियों में भी स्थिति पर नियंत्रण रख सफलता प्राप्त की। उन्होंने हमेशा वेदों और मर्यादा का पालन किया। स्वयं के सुखों से समझौता कर उन्होंने न्याय और सत्य का साथ दिया। भगवान राम के गुणों की वजह से उनका जीवन सफल हुआ और वो राम से मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम कहलाएं।
भगवान श्री राम एक कुशल प्रबंधक थे। वो सभी को साथ लेकर चलने वाले थे। भगवान श्री राम के बेहतर नेतृत्व क्षमता की वजह से ही लंका जाने के लिए पत्थरों का सेतु बन पाया। भगवान श्री राम ने अपने सभी भाइयों के प्रति सगे भाई से बढ़कर त्याग और समर्पण का भाव रखा और स्नेह दिया। इसी कारण से भगवान श्री राम के वनवास जाते समय लक्ष्मण जी भी उनके साथ वन गए। यही नहीं भरत ने श्री राम की अनुपस्थिति में राजपाट मिलने के बावजूद भगवान राम के मूल्यों को ध्यान में रखकर सिंहासन पर रामजी की चरण पादुका रख जनता की सेवा की।
वनवास में सुन्दर स्त्री बाद में शूर्पणखा निकली। सोने का हिरन बाद में मारीच निकला। भिक्षा माँगने वाला साधू बाद में रावण निकला। लंका में तो निशाचार लगातार रूप ही बदलते दिखते थे। हर जगह भ्रम, हर जगह अविश्वास, हर जगह शंका लेकिन बावजूद इसके जब लंका में अशोक वाटिका के नीचे सीता माँ को रामनाम की मुद्रिका मिलती है तो वो उस पर 'विश्वास' कर लेती हैं। वो मानती हैं और स्वीकार करती हैं कि इसे प्रभु श्री राम ने ही भेजा है।
जीवन में कई लोग आपको ठगेंगे, कई आपको निराश करेंगे, कई बार आप भी सम्पूर्ण परिस्थितियों पर संदेह करेंगे लेकिन इस पूरे माहौल में जब आप रुक कर पुनः किसी व्यक्ति, प्रकृति या अपने ऊपर 'विश्वास' करेंगे तो श्री रामायण के पात्र बन जाएंगे। राम और माँ सीता केवल आपको 'विश्वास करना' ही तो सिखाते हैं। माँ कठोर हुईं लेकिन माँ से विश्वास नहीं छूटा, परिस्थितियाँ विषम हुई लेकिन उसके बेहतर होने का विश्वास नहीं छूटा, भाई-भाई का युद्ध देखा लेकिन अपने भाइयों से विश्वास नहीं छूटा, लक्ष्मण को मरणासन्न देखा लेकिन जीवन से विश्वास नहीं छूटा, सागर को विस्तृत देखा लेकिन अपने पुरुषार्थ से विश्वास नहीं छूटा, वानर और रीछ की सेना थी लेकिन विजय पर विश्वास नहीं छूटा और प्रेम को परीक्षा और वियोग में देखा लेकिन प्रेम से विश्वास नहीं छूटा।
भरत का विश्वास, विभीषण का विश्वास, शबरी का विश्वास, निषादराज का विश्वास, जामवंत का विश्वास, अहिल्या का विश्वास, कोशलपुर का विश्वास और इस 'विश्वास' पर हमारा-आपका अगाध विश्वास। सच बात यही है कि जिस दिन आपने ये 'विश्वास' कर लिया कि ये विश्व आपके पुरुषार्थ से ही खूबसूरत बनेगा। उसी दिन ही आप श्री 'राम' बन जाएंगे और फिर लगभग सारी परिस्थितियाँ हनुमान बनकर आपको आगे बढ़ाने में लग जाएंगी। यहाँ हर किसी की रामायण है, आपकी भी होगी। जिसमें आपके सामने सब है - रावण, शंका, भ्रम, असफलता, दुःख। बस आपको अपनी तरफ 'विश्वास' रखना है.. आपका राम तत्व खुद उभर कर आता जायेगा। सभी को अपने जीवन का संघर्ष स्वयं करना पड़ता है। जय श्री राम!
हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व स्तंभकार

Comment List