राष्ट्रपति के अपमान का मामला

ये कैसा नारी शक्ति वंदन है बाबा ?

राष्ट्रपति के अपमान का मामला

स्वतंत्र प्रभात 

मुझे गोस्वामी तुलसीदास  जी की इस उक्ति में कोई संदेह नहीं है कि -' नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं, प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं । लेकिन मुझे इस बात से हैरानी है कि प्रभुता की पराकाष्ठा इतनी  भी हो सकती है जितनी कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी में आ गयी है।  मै प्राय : मोदी जी ही क्या किसी भी नेता के व्यक्तिगत आचरण पर टीका-टिप्पणी नहीं करता ,लेकिन बात जब सार्वजनिक जीवन की हो तो  मुझसे रहा भी नहीं जाता।

बीते रोज पूर्व उप प्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को ' भारतरत्न ' अलंकरण देने के लिए आयोजित समारोह में हमारे माननीय प्रधानमंत्री  जी ने जिस तरह से माननीय राष्ट्रपति जी की लोक अवमानना की है उसे देखकर मेरा मन विदीर्ण हो गया।  महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू जी आडवाणी जी को भारतरत्न अलंकरण देने के लिए खड़ी हुईं किन्तु माननीय प्रधानमंत्री जी अपने आसन पर बैठे रहे। कहने को ये रेखांकित करने लायक बात नहीं है और कहने को ये एक गंभीर मामला है।

मुझे याद नहीं आता कि माननीय प्रधानमंत्री जी ने महामहिम राष्ट्रपति जी को सम्मान देने का कोई अवसर दिया हो। हाँ महामहिम के अपमान के अनेक अवसर देश ने जरूर देखे हैं ।  नए संसद भवन के भूमिपूजन और लोकार्पण से लेकर राम मंदिर के उद्घाटन तक में माननीय का ही एकाधिकार रहा। उन्होंने किसी भी महत्वपूर्ण कार्य के लिए महामहिम राष्ट्रपति को महत्व नहीं दिया। वे संप्रभु हैं,स्वम्भू हैं। कुछ भी कर सकते हैं। वे जो चाहते हैं सो कर भी रहे हैं ,लेकिन उन्हें रोका जाना चाहिए।

मुझे अपने पत्रकारिता के आधा दशक के जीवन में ऐसा देखने में कभी नहीं आया कि कोई प्रधानमंत्री जब भी कभी विदेश यात्रा पर गया हो तब जाने से पहले और आने के बाद महामहिम राष्ट्रपति से शिष्टाचार भेंट करने नहीं गया हो ! तानाशाह मानी जा चुकी देश कोई प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी तक ने ये परिपाटी नहीं तोड़ी। शायद किसी प्रधानमंत्री ने इस परिपाटी को ठुकराया नहीं , किन्तु माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी ने इस परिपाटी को समाप्त कर दिया। शयद वे इसे ही नारीशक्ति वंदना मानते हैं। वे अपने दस साल के कार्यकाल में कितनी बार राष्ट्रपति जी से सौजन्य भेंट करने राष्ट्रपति भवन गए ये पता किया जाना चाहिए।

राष्ट्रपति को ' रबर स्टाम्प ' कहा जाता था,लेकिन मै पहली बार ऐसा होते देख भी रहा हूँ।  राष्ट्रपति तब भी प्रधानमंत्री के आगे हाथ जोड़कर खड़ी होती हैं जब उन्हें खड़े नहीं होना चाहिए और तब भी खड़ी होतीं हैं जब कि ऐसा सामान्य   शिष्टाचार में आता हो। राष्ट्रपति के मान-अपमान को पूरी दुनिया देखती है। देश की जनता तो देखती ही है। भाजपा अक्सर आरोप लगाती थी कि कांग्रेस ने तो इंदिरा गाँधी के लिए रसोई पकाने वाली एक महिला को राष्ट्रपति बना दिया था ,लेकिन भाजपाजन खुद भूल जाते हैं कि उनके प्रधानमंत्री जी ने तो एक आदिवासी समाज की महिला को राष्ट्रपति बनाकर उसका जितना सर्वजनिक अपमान किया है उतना तो एक रसोई बनाने वाले से राष्ट्र्पति बनी महिला का भी नहीं किया गया।

ये अच्छी बात है कि हमारी राष्ट्रपति महामहिम श्रीमती द्रोपदी मुर्मू एक सुलक्षणा महिला हैं। वे अपने आपको मान-अपमान से परे रखतीं हैं और सरकार   जहाँ चाहती है वहां जातीं हैं और जहां नहीं चाहती वहां नहीं जातीं। उन्हें लालजी के घर भी ले जाना जरूरी नहीं था। लालजी की दशा स्वर्गीय हो चुके अटल बिहारी बाजपेयी जैसी अशक्त न थी।  लालजी को राष्ट्रपति भवन ले जाया जा सकता था ,लेकिन नहीं ले जाया गया। राष्ट्रपति जी को आडवाणी के भवन तक ले जाया गया।

चलिए मान लेते हैं कि लाल जी शलाका पुरुष होने को हैं इसलिए उन्हें ये सम्मान दिया गय। किन्तु राष्ट्रपति ने क्या बिगाड़ा था जो उनके सम्मान में माननीय प्रधानमंत्री जी ने एक पल के लिए भी खड़े होना गवारा नहीं किया ? उस खास पल में भी जबकि लालजी को भारतरत्न अलंकरण सौंपा जा रहा था।  ये लाल जी का भी अपमान हुआ और राष्ट्रपति जी का।
गनीमत है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस और राजद ने अपनी चुप्पी तोड़ी है।  

भाजपा में तो अब कोई ऐसा बचा नहीं है जो माननीय प्रधानमंत्री जी को उनकी गलती बता सके। कांग्रेस ने इस घटना की निंदा की है। कांग्रेस के जयराम रमेश ने तस्वीरों के साथ अपने पोस्ट में कहा कि हमारे राष्ट्रपति का अपमान किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निश्चित रूप से खड़ा होना चाहिए था। वहीं रामलीला मैदान में इंडिया गठबंधन की रैली में बोलते हुए राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि पीएम मोदी राष्ट्रपति के सम्मान में भी खड़े नहीं हुए और आरोप लगाया कि भाजपा को संविधान में कोई विश्वास नहीं है।

राष्ट्रपति के मान-सम्मान को लेकर राजनीति  नहीं की जा सकती ,किन्तु जब असम्मान और अवमानना कि बात हो तो किसी को भी मौन नहीं रहना चाहिए। ये विषय वैसे भी राजनीति का नहीं है। ये विषय समूची नारी जाती और देश के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति का है।  और उस राष्ट्रपति का है जिसका कि सरकार से कभी कोई टकराव हुआ ही नहीं। राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने कार्यकाल में पूर्व राष्ट्रपति डॉ ज्ञानी जेल सिंह  की तरह कभी सरकार के कान नहीं खींचे। मौजूदा राष्ट्रपति तो गाय हैं  गाय। इस मामले में मै भी सिर्फ इतना कहूंगा कि माननीय प्रधानमंत्री जब तक देश की राजनीति में हैं तब तक एक नेता बने रहें ,भगवान बनने की कुचेष्टा न करें तो ये देश पर और लोकतंत्र पर भी उपकार होगा।

@ राकेश अचल  

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