स्वतंत्र प्रभात-
मध्यप्रदेश के राममगढ़ जिलान्तर्गत सारंगपुर गांव के निकट एक अत्यन्त प्राचीन सप्ततीर्थी सपरिकर जैन तीर्थंकर प्रतिमा प्राप्त हुई है। लाल पाषाण में निर्मित यह प्रतिमा खंडित है किन्तु अत्यन्त पुरातात्त्विक महत्व की है। कई लोग इसे अपनी अपनी होने का दावा कर रहे हैं। कुछ लोगों ने इसे बौद्ध प्रतिमा घोषित कर दिया है तो किन्हीं ने अन्य देव की।
लगभग पौने चार फीट की इस तीर्थकंर प्रतिमा के पादपीठ के मध्य में शंख या मत्स्य जैसा चिह्न बना है।
उसके दोनों ओर दो गज शिल्पित हैं और उनके बाहरी ओर सिंहासन के प्रतीक दो सिंह निर्मित हैं। उंसके ऊपर चरण चौकी, तदोपरि पद्मासन ध्यान मुद्रा में मुख्य तीर्थकर आसीन हैं। इस मूलनायक मूर्ति के दोनों पार्श्वों में ऊपर की ओर बढ़ते क्रम में तीन-तीन पद्मासनस्थ तीर्थंकर प्रतिमाएं हैं। दोनों ओर के तीन-तीन और एक मूलनायक इस तरह एक ही शिलाखण्ड पर सात प्रतिमा होने से उसे सप्ततीर्थी कहा जाता है।
इसके परिकर में जो प्रतिमाएं हैं उनमें से नीचे के दोनों ओर की प्रतिमाओं के स्वतंत्र स्वतंत्र देवकुलिका है। इनके पार्श्वों में एक एक चामरधारी देव बने हैं, इस छोटी सी प्रतिमा में दोनों ओ एक एक गगनचारी माल्यधारी देव दर्शाया गया है। परिकर की इन प्रतिमाओं से ऊपर की प्रतमाओं के उपरिम पार्श्वों में गगनचारी माल्यधारी देव निर्मित हैं।
मूलनायक प्रतिमा का सुन्दर प्रभावल और उसके ऊपर छत्रत्रय है। प्रभावल के दोनों ओर गगनचारी विद्याधर सपत्नीक माला लिये उड्डीयमान शिल्पित हैं। छत्रत्रय के दोनेां ओर कलश लिये एक एक अभिषेककर्ता शिल्पित है। यह प्रतिमा लगभग सातवीं आठवीं शताब्दी की प्रतीत होती है। इस प्रतिमा की सूचना हमें गौरव जैन ने फेसबुक के माध्यम से प्रेषित की है।