गीतांजलि श्री को बधाई की क्या जरूरत ?

गीतांजलि श्री को बधाई की क्या जरूरत ?

गीतांजलि श्री को बधाई की क्या जरूरत ?



देश के साहित्यकार नाराज हैं कि लेखिका गीतांजलि श्री को उनके उपन्यास ' रेत की समाधि ' के लिए बुकर पुरस्कार मिल गया है लेकिन देश के प्रधानमंत्री जी उन्हें बधाई ही नहीं दे रहे .दक्षिण अफ्रिका में रहने वाले हमारे मित्र डॉ अमिताभ मित्रा को भी ये शिकायत है .उनका कहना है की हम भारतीय गीतांजलि श्री की इस उपलब्धि से एक भारतीय होने के नाते अपने आपको गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं ,किन्तु हमारे ही  देश के प्रधानमंत्री हिंदी के लिए पहला प्रतिष्ठित ' बुकर सम्मान ' हासिल करने वाली लेखिका को बधाई नहीं दे रहे .

गीतांजलि श्री को मैंने भी बहुत कम पढ़ा है ,मुझे उनका लेखन नहीं लुभाता लेकिन मैंने उन्हें बुकर सम्मान मिलने पर बधाई दे दी है. बधाई देना या न देना व्यक्ति का विशेषाधिकार है .अब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने गीतांजलि श्री को बधाई नहीं दी ,तो नहीं दी. ये उनका विशेषाधिकार है .और फिर गीतांजलिश्री कोई भाजपा की कार्यकर्ता तो हैं नहीं ,जो प्रधानमंत्री उन्हें बधाई दें .गीतांजलि श्री हिंदी की एक प्रतिष्ठित लेखिका हैं. उनकी तरह देश में और भी प्रतिष्ठित लेखक हैं.क्या जरूरी है कि प्रधानमंत्री जी सबको जानते हों ? मुमकिन है कि प्रधानमंत्री जी को इसके  बारे में कोई खबर ही न हो.मुमकिन है कि प्रधानमंत्री जी को उनके सहायकों ने इस बात की इत्तला ही न दी हो ?

पूरा देश खुश है कि गीतांजलि श्री के उपन्यास ' रेत की समाधि ' को बुकर सम्मान मिला ,लेकिन लोग कहते हैं कि ये बात सही नहीं है. सही बात तो ये है कि ये सम्मान उनके उपन्यास के अंग्रेजी अनुवाद को मिला है .अरे भाई तो इसमें नयी बात कौन सी है. अंग्रेजों को या बुकर सम्मान देने वालों को हिंदी आती ही न हो . फिर बाहर की दुनिया तो भारत के साहित्य को अनुवाद के जरिये ही जानेगी.नोबल पुरस्का पाने वाले गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर की गीतांजलि को कौन सा बांग्ला में लिखी गीतांजलि के लिए पुरस्कार मिला था .

गीतकली श्री को सम्मान मिलने से हम खुश हैं,आप खुश हैं ,हिंदी का बहु संख्यक समाज खुश है.एक अकेले प्रधानमंत्री जी या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जी यदि खुश नहीं हैं तो उनसे जबरन बधाई की अपेक्षा क्यों. हमारे मित्र आईएएस रहे हैं ,उन्हें भी नहीं लगता की गीतांजलि श्री ने बुकर जीतकर कोई बड़ा तीर मारा है. तीर तो केवल वे ही लोग मारते हैं जो गांधी-नेहरू से प्रभावित न हों या उन्हें गरियाना जानते हों .अब प्रधानमंत्री जी ने वीर दामोदर सावरकर का गुणगान किया की नहीं ? यानी पसंद अपनी-अपनी ,ख्याल अपना-अपना वाला मामला है .इसलिए प्रधानमंत्री जी को बधाई न देने के लिए नहीं कोसना चाहिए .

पिछले दिनों प्रधानमंत्री जी की आलोचना की गयी कि उन्होंने प्रतिष्ठित विश्व महिला मुक्केबाजी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने पर निकहत जरीन को बधाई नहीं दी .तेलंगाना के निजामाबाद जिले की रहने वाली निकहत ने  इस्तांबुल में विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीत कर  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का ध्वज ऊंचा किया था .जब निकहत को बधाई नहीं मिली तो गीतांजलि श्री को बधाई न मिलने पर हाय-तौबा करने का क्या मतलब ? किसे बधाई मिलना चाहिए और किसे नहीं ,ये तो पीएमओ तय करता है .आप और हम नहीं .

आपको शायद पता न हो तो मै बता दूँ कि  गीतांजलि श्री के पति सुधीरचंद्र जाने-माने इतिहासकार हैं. गांधी दृष्टि पर किया गया उनका काम उल्लेखनीय है. इन दिनों लेखक और इतिहासकार की यह जोड़ी गुड़गांव में रहती है. वैसे उनका घर दिल्ली में भी है.वे हमारे उत्तरप्रदेश के मैनपुरी में जन्मी हैं .इसलिए हमें तो उनकी उपलब्धि पर गर्व हो सकता है.है भी किन्तु प्रधानमंत्री जी गीताजीश्री की उपलब्धि पर गर्व क्यों करें ? वे गुजरात की होतीं तो भी कोई बात थी.उनके पति ने गांधी के बजाय गौड़से पर काम किया होता तो भी उनको बधाई देने के बारे में सोचा जा सकता था .

मुझे नहीं लगता कि चौबीस में से अठारह घंटे काम काम करने वाले हमरे प्रधानमंत्री  जी को हिंदी का साहित्य पढ़ने का अवसर मिलता होगा .मिलता होता  तो अबतक वे भी नेहरू की तरह दस-पांच किताबें लिख न चुके होते ? कई लोग होते हैं जिनका पढ़ाई-लिखाई या डिग्रियों के प्रति कोई मोह नहीं होता. वे केवल देश की सेवा करना जानते हैं.सबको साथ लेकर सबका विकास करना क्या किसी साहित्य सेवा से कम है ? प्रधानमंत्री जी बीते आठ साल से देश की सेवा कर रहें ,आप इसी को साहित्य की सेवा समझ लीजिये .और मान लीजिये कि प्रधानमंत्री जी गीतांजलिश्री को बुकर पुरस्कार के लिए बधाई दे भी दीं तो पुरस्कार की राशि 50  हजार पोंड से बढ़कर एक लाख पोंड तो हो नहीं जाएगी ? फिर इतनी रकम के तो हमारे प्रधानमंत्री जी हर दिन परिधान पहन लेते हैं .

किसी को बधाई देने से पहले प्रधानमंत्री जी और उनके कार्यालय को हजार बातें ध्यान में रखना पड़तीं हैं.क्या पता किyगीतांजलिश्री किसी टुकड़ा-टुकड़ा गैंग या पुरस्कार वापसी गैंग की सदस्य हों ? क्या पता कि उन्हें बधाई kसे देश की छवि बिगड़ जाए ? गीतांजलिश्री को प्रधानमंत्री जी की बधाई मिलने से हिंदी साहित्य का कुछ भला हो रहा होता तो कोई और बात थी .हिंदी साहित्य का भला हिंदी के साहित्यकारों के लेखन से होगा न कि प्रधानमंत्री जी के आशीर्वाद से .अब आप मुझे ही देख लीजिये,मैंने भी इस साल एक उपन्यास लिखा ' गद्दार ' ,किसी ने मुझे बधाई दी ? क्यों दे भाई ? क्या मैंने किसी से पूछकर लिखा था ? नहीं न ? गीतांजलिश्री ने भी कोई पीएमओ से पूछकर देश की सेवा की गरज से ये उपन्यास लिखा होता तो भी बात थी .

आपको स्वीकार कर लेना चाहिए कि दुनिया में देश का डंका साहित्य से नहीं सियासत से बजता है .साहित्य से बताये कोई आजतक विश्वगुरु बना है ? भारत को विश्व गुरु बनाने   के लिए गीतांजलि के उपन्यासों की जरूरत कम से कम आज तो नहीं है. मोदी जी के बाद हो तो मै कह नहीं सकता .मोदी जी के बाद देश में यदि कोई साहित्य अनुरागी पंत प्रधान बना तो आपको पीएमओ से न सिर्फ बधाई बल्कि पद्मश्री भी दिलाने के बारे में सोचा जा सकता है .गीतांजलिश्री को मेरी और से पुन : बधाई .
 
 राकेश अचल 
 

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