वंदे मातरम्: अतीत की शक्ति, वर्तमान का आधार, भविष्य की प्रेरणा
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भारत के इतिहास, संस्कृति और राष्ट्रीय चेतना में यदि किसी एक उद्घोष ने सर्वाधिक ऊर्जा, एकता और आत्मगौरव का संचार किया है, तो वह है “वंदे मातरम्”। यह केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारतीय आत्मा की वह धड़कन है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम के कठिनतम क्षणों में लाखों देशभक्तों को शक्ति, साहस और नैतिक दृढ़ता प्रदान की। फांसी के तख़्ते पर चढ़ते हुए वीरों के होंठों पर यही मंत्र था, जेल की यातनाओं को सहते स्वतंत्रता सेनानियों का संबल भी यही रहा। आज यह राष्ट्र की सांस्कृतिक अस्मिता और राष्ट्रीय एकता का अमर प्रतीक है- ऐसा प्रतीक जिस पर न विवाद होना चाहिए, न विभाजन, बल्कि केवल आदर और समर्पण।
वंदे मातरम् का इतिहास केवल साहित्यिक नहीं, बल्कि क्रांतिकारी है। उन्नीसवीं शताब्दी में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित यह गीत 1905 के बंग-भंग आंदोलन के समय जन-क्रांति की धमनी बन गया। इसने बिखरी हुई राष्ट्रीय चेतना को एक सूत्र में बांधा और भारतीयों में स्वाधीनता का विश्वास जगाया।1905 से 1947 तक का पूरा स्वाधीनता संघर्ष इस उद्घोष से ऊर्जा पाता रहा।सत्याग्रहियों के लिए यह सत्य और निर्भीकता का प्रतीक बना;युवाओं के लिए यह समर्पण और नेतृत्व का मार्गदर्शक;और आम भारतीयों के लिए यह देशभक्ति का भावनात्मक स्रोत।कई सेनानी जेल जाते समय, लाठियाँ खाते समय और फांसी चढ़ते समय भी यही उद्घोष बोलते रहे-“वंदे मातरम्।” यह अतीत की वह शक्ति थी, जिसने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने का संकल्प जन-जन में जगाया।
आज का भारत तकनीक, रक्षा, विज्ञान, अर्थव्यवस्था और कूटनीति आदि विविध क्षेत्रों में विश्व पटल पर तेज़ी से उभर रहा है। लेकिन आधुनिक विकास के इस दौर में सामाजिक जिम्मेदारी, सांस्कृतिक आत्मविश्वास और राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता पहले से अधिक बढ़ गई है।यह विभिन्न भाषाओं, धर्मों और परम्पराओं को एक साझा भारतीय पहचान में पिरोता है। यह भारत की प्रकृति— नदियों, वनों, खेतों, धरती और मातृभूमि के सौंदर्य का काव्यमय उत्सव है, जो भौतिकतावादी युग में भी संवेदनाओं को जीवित रखता है।
भ्रष्टाचार, पर्यावरण संकट, सामाजिक असमानता और नैतिक विचलन के दौर में यह उद्घोष नागरिक कर्तव्य, अनुशासन और राष्ट्रधर्म की याद दिलाता है।विशेषतः युवाओं के लिए वंदे मातरम् जड़ों से जुड़ने का मार्ग है। यह बताता है कि आधुनिकता का अर्थ अपनी पहचान खो देना नहीं, बल्कि उसे और मजबूत बनाना है।
भविष्य का भारत तकनीकी रूप से अत्याधुनिक होगा, लेकिन उसकी आत्मा भारतीयता में ही रची-बसी रहेगी। वंदे मातरम् उसी भारतीयता का शाश्वत प्रतीक है। एक ऐसी प्रेरणादायक ध्वनि, जो समय, परिस्थितियों और पीढ़ियों की सीमाओं से परे है।आने वाले समय में जब भारत वैश्विक मंच पर संस्कृति, ज्ञान, शांति और मानवता के आधार पर नेतृत्व करेगा, तब यह उद्घोष और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगा क्योंकि उस समय यह याद दिलाएगा कि राष्ट्रभक्ति किसी धर्म या जाति की नहीं, बल्कि भारत की साझा विरासत है।यह संकेत देगा कि पर्यावरण संरक्षण केवल वैज्ञानिक आवश्यकता नहीं, बल्कि भारतीय आध्यात्मिक दायित्व है।और यह भाव जगाएगा कि देशभक्ति केवल राजनीतिक विचार नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक आदर्श है।इस प्रकार वंदे मातरम् भविष्य का वह प्रेरणास्रोत बनेगा, जो प्रगति और परंपरा को संतुलन में रखते हुए भारत को विश्वगुरु बनने की दिशा में मार्गदर्शन देगा।
अतः यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि
वंदे मातरम् केवल स्वतंत्रता आंदोलन का गीत नहीं, बल्कि भारत के राष्ट्रीय चरित्र, सांस्कृतिक चेतना और आध्यात्मिक गौरव का शाश्वत घोष है।अतीत में इसने शक्ति और त्याग का संचार किया,वर्तमान में यह एकता और आत्मविश्वास का आधार है,और भविष्य में यह राष्ट्र की प्रेरणा और चेतना की अमर ध्वनि बना रहेगा।
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