फिरोजाबाद दिहुली हत्याकांड में 44 साल बाद तीन को फांसी की सजा
23 लोगों पर बरसाई गई थी अंधाधुंध गोलियां।
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प्रयागराज। फिरोजाबाद जिले के दिहुली गांव में 44 वर्ष पहले हुए सामूहिक हत्याकांड के तीनों दोषियों को अदालत ने सजा सुनाई है। वर्ष 1981 में हुए इस जघन्य अपराध में कुल 23 लोगों की हत्या कर दी गई थी, जिससे पूरे क्षेत्र में भय और आक्रोश का माहौल बन गया था।इस ऐतिहासिक फैसले में दोषियों को फांसी और 50-50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। दिहुली हत्याकांड उत्तर प्रदेश के सबसे जघन्य अपराधों में से एक था जिसने पूरे राज्य को हिला कर रख दिया था। इस मामले में 44 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार पीड़ित परिवारों को न्याय मिला।
18 नवंबर 1981 की शाम करीब पांच बजे, फिरोजाबाद जिले के जसराना थाना क्षेत्र के अंतर्गत स्थित दिहुली गांव में हथियारबंद बदमाशों ने दलित बस्ती पर हमला कर दिया। इस हमले में शामिल अपराधियों ने महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को निशाना बनाकर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं। तीन घंटे तक चली इस बर्बर फायरिंग में लोगों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि एक अन्य घायल ने फिरोजाबाद अस्पताल में दम तोड़ दिया।
घटना के बाद, 19 नवंबर 1981 को दिहुली गांव निवासी लायक सिंह ने जसराना थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई। प्राथमिकी में मुख्य रूप से राधेश्याम उर्फ राधे और संतोष चौहान उर्फ संतोषा को आरोपी बनाया गया था। पुलिस ने गहन जांच-पड़ताल के बाद अन्य आरोपियों को भी इस मामले में शामिल किया और उनके खिलाफ चार्जशीट दायर की।
इस नरसंहार में शामिल अन्य अभियुक्तों में रामसेवक, रविंद्र सिंह, रामपाल सिंह, वेदराम सिंह, मिट्ठू, भूपराम, मानिक चंद्र, लटूरी, रामसिंह, चुन्नीलाल, होरीलाल, सोनपाल, लायक सिंह, बनवारी, जगदीश, रेवती देवी, फूल देवी, कप्तान सिंह, कमरुद्दीन, श्यामवीर, कुंवरपाल और लक्ष्मी के नाम शामिल किए गए थे।
घटना के बाद पुलिस द्वारा की गई जांच और अदालत में प्रस्तुत किए गए आरोप पत्रों के आधार पर इस मामले की सुनवाई जिला न्यायालय में शुरू हुई। हालांकि, डकैती न्यायालय न होने के कारण मामला प्रयागराज स्थानांतरित कर दिया गया। वहां कई वर्षों तक चली सुनवाई के बाद इसे फिर से मैनपुरी के स्पेशल जज डकैती न्यायालय भेज दिया गया। करीब 15 सालों तक चली इस सुनवाई के बाद, आखिरकार अदालत ने इस बहुचर्चित हत्याकांड में तीन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई।
डकैती न्यायालय की न्यायाधीश इंदिरा सिंह ने इस मामले में तीनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाते हुए 50-50 हजार रुपये का आर्थिक दंड भी लगाया। इस फैसले के बाद, तीनों दोषियों को पुलिस अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया है।
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