संजीव-नी।

परछाइयों में तेरी रंग मिलाता हूं,

संजीव-नी।


परछाइयों में तेरी रंग मिलाता हूं,
तेरे एहसासों के संग बहा जाता हूं।
 
तेरा एहसास बडा इंद्रधनुषी जानम,,
तेरे ख्यालो में भिखर बिखर जाता हूँ।।

तेरे सांसों की खुशबू से इतर,
कोई और महक नहीं सह पाता हूं ।.

न जाने कितने गुलशनों में भटका हूँ,
हसीन तुझसा फूल नहीं चुन पाता हूं।

महकती आ जाओ कभी हमारे पहलू में,
सारी सारी रतिया आंखों में ही गुजार जाता हूं।

तेरी तस्सवुर से भीगा भीगा हूँ अभी तक,
तेरे ख्यालों से ही शर्मा शर्मा जाता हूं।।

बंदीशें तो तुझ पर भी है बहुत, संजीव,
हवाओं में ही तेरे नाम पैगाम लिख जाता हूं।

संजीव ठाकुर, 

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