साहित्य अध्ययन और मनन जीवन की श्रेष्ठता का उचित माध्यम।
साहित्य अध्ययन, उन्नयन मनुष्य के जीवन में उत्कृष्टता का आधार होता है।साहित्य सदैव मनुष्य के जीवन में संवेदना, संवेदनशीलता एवं मानवता लाने का सकारात्मक कार्य करता है। हमारा साहित्य, भाषा, हमें आत्मिक गौरव का सदैव अभिभाष कराती है। इसीलिए जीवन में साहित्यिक पुस्तकों का विशेष महत्व है। सतसाहित्य और भाषा से जीवन गरिमा और गहरी संवेदना लिए हुए होता है। वस्तुत अच्छा साहित्य का वाचक, एक प्रशासक, एक अच्छा अभिनेता और एक अच्छा राजनेता बन सकता है। पर दूसरी तरफ एक अच्छा राजनेता, अच्छा प्रशासक, अच्छा अभिनेता बिना भाषा ज्ञान और साहित्यिक मनन के अच्छा साहित्यकार या उत्कृष्ट मानव नहीं हो सकता है। इसके लिए मनुष्य के जीवन में साहित्य के अध्ययन, मनन और चिंतन की आवश्यकता होती है।
क्योंकि साहित्य में मानवीय समाज के सुख-दुख, आशा निराशा,उत्थान और पतन का स्पष्ट परिवेश स्वमेव उपस्थित रहता है। साहित्य की इन्हीं सब खूबियों के कारण उसे समाज का प्रतिबिंब कहा जाता है। साहित्य सर्वमान रूप से एक स्वायत्त आत्मा ही है, और साहित्य का रचयिता खुद स्वयं यह नहीं बता सकता कि साहित्य किसके जीवन में कब और क्या क्या परिवर्तन ला सकता है। मूलतःसाहित्य सत्य के अन्वेषण की साधना और सौंदर्य की अभिव्यंजना भी है। विशुद्ध जीवन एवं उच्च सत साहित्य मानव और समाज की संवेदना और उसकी सहज व्यक्तियों को युगों तक आने वाली पीढ़ियों में संचारित करता रहता है।और यही वजह है कि शेक्सपियर, तुलसीदास की कृतियां आज भी लोगों के हृदय में राज करती है। वैश्विक स्तर पर मनुष्य कितने ही जाति, राजनीति और भौगोलिक तौर पर अनेक गुटों में बट जाए, पर साहित्यिक धरातल एवं परिसीमा में सब एक हैं,सभी का बराबरी का दर्जा है।
साहित्य मनुष्य को मानव और एक सहृदय व्यक्ति बनाना सिखाता है। दुनिया के सभी इंसान एक है,उनकी प्रवृतियां भी एक जैसी ही है। साहित्य सभी मानव में संवेदना भरकर करुणा, दया तथा परस्पर स्नेह के भाव पैदा करता है। साहित्य समय की धारा से अछूता नहीं रह सकता है। साहित्यकार उस समय काल की धारा में बैठकर उस समय की पीड़ा, संत्रास और उत्पीड़न को लेकर अपनी रचनाएं करता है, और समाज को एक परिष्कृत वातावरण बनाने के लिए प्रेरित करता है। जिस समाज में साहित्यिक परंपरा विशाल एवं समृद्ध है,वह समाज हमेशा से जीवंत और प्रगतिशील माना गया है। सत साहित्य सदैव मानवी सहज प्रवृत्तियों के साथ समय की धारा के साथ परिवर्तित एवं परिमार्जित होता रहा है। और यही कारण है कि एक अच्छा साहित्यकार एक अच्छा मनुष्य माना जाता है। और उसकी कृति युगों युगों तक जनमानस को प्रेरित, उत्प्रेरित तथा उत्साहित करती रहती है। साहित्य भविष्य की रूपरेखा वर्तमान को सामने रखकर सुनिश्चित करते हुए मानव के सोए हुए विवेक शक्ति को जागृत करने का प्रयास करता है।
और श्रेष्ठतम साहित्य में मनुष्य के भीतर तथा बाहर के सार्वभौमिक मूल्यों,संदेशों और उद्देश्य को अंतर्निहित किए रहता है। यही कारण है की कबीरदास, रविंद्र नाथ टैगोर, जयशंकर प्रसाद, प्रेमचंद, शेक्सपियर, होमर,मिल्टन मानवीय चेतना के चितेरे साहित्यकार माने गए और उन्हें युगों युगों तक याद किया जाता रहेगा। वास्तव में जीवन साहित्य का आधार है, चाहे वह व्यक्ति विशेष का हो, परिवार का हो, समाज का हो, राज्य का हो या राष्ट्र का हो या संपूर्ण विश्व का जीवन के बिना साहित्य की कल्पना ही असंभव और साहित्य की समृद्धि बिना जीवंत समाज का सम्यक विकास असंभव है। साहित्य, भाषा, संवेदना जीवन का मेरुदंड है। जिंदगी में यथार्थवाद समाविष्ट रहता है और साहित्य आशावादी दृष्टिकोण से परिपूर्ण रहता है, इस तरह जीवन में यथार्थवाद और आशावाद एक दूसरे के पर्याय तथा पूरक हैं।
साहित्य वैसे तो मानवीय जीवन में, जो है और जो होना चाहिए उसके बीच का एक जरिया ही है। साहित्य अपनी परिकल्पना उसे मानवीय समाज में मानवीय संबंधों के सुधार की जो आवश्यकता है, उस को रेखांकित करता है। और साहित्य समाज में व्यक्ति की जिंदगी में अपनी परिकल्पना से आल्हाद,उमंग और आनंद भी देता है, जिसकी मानव अपनी जिंदगी सर्वश्रेष्ठ पलों की कामना करता है। मूल रूप से अच्छा रचनाकार, बड़ा साहित्यकार, समय काल में समाज की ही देन होता है। और उसी समाज विशेष की भाषा, संस्कृति, परंपराओं और इतिहास के दायरे में उसकी रचनात्मकता परवान चढ़ती है। अतः जीवन में और साहित्य के मध्य जितना आदान-प्रदान होगा, वहां साहित्य एवं जीवन जीवंत, संवेदनशील और प्रभाव शाली होगा।
मनुष्य के जीवन में निराशा, आशंका का प्रादुर्भाव हमेशा से बना रहता है, और साहित्य जीवन में आशा, विश्वास एवं भविष्य की परिकल्पना उसे सुसज्जित रहता है। जीवन को एक नया दृष्टिकोण, एक नई दृष्टि और नया उजाला प्रदान करता है।
संजीव ठाकुर, स्तंभकार, चिंतक, लेखक,
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