नियम कानून ताक पर रखकर हो रहा मीट फैक्ट्रियों में गर्भवती भैंसों का कत्ल

नियम कानून ताक पर रखकर हो रहा मीट फैक्ट्रियों में गर्भवती भैंसों का कत्ल

स्वतंत्र प्रभात 

धर्मेन्द्र राघव
अलीगढ़,। बूचड़खानों को लेकर भले ही सरकार की कार्रवाई वैध और अवैध पर आधारित हो, मगर हालात सब जगह एक जैसे है। अलीगढ़ में तो मीट शॉप ही बूचड़खाने बन गई है। यहां नियम कायदों को ताक पर रखकर गर्भवती भैंसों के अलावा उनके छोटे-छोटे बच्च्चों का कत्लेआम किया जा रहा है।
केंद्र सरकार के खाद्य सुरक्षा एवं मानक विनिमय 2011 आने के बाद देश में कहीं भी पशु वध स्लॉटर हाउस में ही संभव है। बूचड़खाना उस जगह को माना जाता है जहा प्रतिदिन 10 से ज्यादा जानवर काटे जाते है।

बूचड़खाने ऐसी जगह होने चाहिए जहा पानी, बिजली और प्रकाश की समुचित व्यवस्था हो। पानी के लिए एक भिश्ती और एक सफाई कर्मचारी होना चाहिए। खून और बाकी गंदगी किसी नाली में न बहे। यह किसी सोखते में दबानी चाहिए। कोई भी गर्भवती, दूध देने वाला या तीन महीने से कम उम्र का जानवर नहीं काटा जा सकता। कटने वाले हर जानवर की एक पशु चिकित्सक द्वारा जाच की जाएगी और मुहर लगाकर सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा। इसके बाद ही जानवर को काटा जा सकता है।

मेडिकल जांच वेटरनरी डॉक्टर से कराना जरूरी
स्लॉटर हाउस में जानवरों को काटने से पहले और बाद में मेडिकल जांच वेटरनरी डॉक्टर से कराना अनिवार्य है लेकिन मीट एक्सपोर्ट कम्पनी में ऐसा ना के बराबर ही होता है।
अवैध तो छोड़िए, देश में जो वैध स्लॉटर हाउस हैं उनमें से चुनिंदा ही हैं जो इन पैमानों पर खरा उतर सकते हैं। जानवरों के सामने ही दूसरे जानवर को काटा जाता है, इससे केमिकल इम्बैलेंस होता है। यही नहीं स्लॉटर हाउस के लिए एक से दो हजार जानवर रोज मारने का लाइसेंस ले लिया जाता है, लेकिन ये हो नहीं पाता। ऐसे में दूरदराज के गांव में स्थित अवैध स्लॉटर हाउस से कटे जानवर आ जाते हैं और फिर उनका मांस पैक कर बाजार में भेज दिया जाता है।“


कानून ही नहीं लोगों की सेहत के लिए भी घातक हैं कट्टी घर
अवैध बूचड़खानों पर चली कटार को लेकर काफी हल्ला हुआ परंतु सेहत के लिए घातक इन बूचड़खानों की हकीकत सदमे में डाल सकती है। बीमार पशुओं के 60 प्रतिशत रोग उसका मांस खाने वालों में फैलने की आशंका रहती है और विशेषज्ञों का मानना है कि, मनुष्यों में टीबी व रेबीज समेत कई गंभीर बीमारियों का स्रोत ऐसे मांस ही हैं। ऐसे में अवैध बूचड़खानों के बाद लाइसेंसशुदा बूचड़खाने भी संदेह के घेरे में हैं। उनके यहां पशुओं को काटने की पूरी प्रक्रिया की निगरानी करने वाली सरकारी प्रणाली भी ध्वस्त है।

जानकारों के अनुसार पशुओं को काटने से पहले स्थानीय निकायों में तैनात पशु चिकित्साधिकारी की जिम्मेदारी पशुओं की पूरी जांच करनी होती है। कटाई के बाद उसके मांस को खाने योग्य घोषित करना होता है। परंतु ढांचागत खामियों के चलते व्यावहारिक रूप में ऐसा होता नहीं है। रोग ग्रसित पशुओं का मांस खाने वालों को टीबी, गर्भपात वाले बैक्टीरिया, फंगस वाले रोग, सॉलमोनेला व लैप्टोसपिरा जैसे बैक्टीरिया रोगी बना सकते हैं । रेबीज से प्रभावित पशुओं का मांस खाने वालों में रेबीज पहुंचने की आशंका रहती है।

राज्य सरकार ने जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वाले बिना अनुज्ञप्तिपत्र के अवैध बूचड़खाने बंद कराने के सख्त निर्देश दे रखे है। शहरी क्षेत्रों में बूचड़खानों की निगरानी स्थानीय निकायों की होती है, जहां तैनात पशु चिकित्साधिकारी इसके लिए जिम्मेदार होते हैं। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतों को यह दायित्व दिया गया है, जहां पशु चिकित्सालय तक में पशु डॉक्टर नहीं हैं। अवैध बूचड़खाने तो किसी भी जांच की परिधि में होते ही नहीं हैं। लिहाजा उनके मांस को खाना जोखिम को मोल लेने के बराबर है।

राज्य की पिछली सरकारों में इन पर पाबंदी नहीं होने अथवा सख्ती के अभाव में ‘सब चलता है’ की तर्ज होता रहा है। इसी पर पाबंदी लगाने की अपनी चुनावी घोषणा को लागू करने उतरी राज्य की योगी सरकार को बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। वहीं, खून के लिए ट्रीटमेंट प्लांट का नियम है लेकिन पानी के साथ खुली नाली में ही उसे बहा देते हैं। इससे पानी पॉल्यूटेड हो रहा है।

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