ऊँगली  काटकर शहीद तो नहीं हो रहे राजीव

ऊँगली  काटकर शहीद तो नहीं हो रहे राजीव

 

राजीव शर्मा मप्र केडर के 2003  बैच के आईएएस अधिकारी हैं ,राजीव शर्मा ने शासन से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति मांगी है ।  अभी उनकी सेवानिवृत्ति में दो साल का समय शेष है। शर्मा जी भिंड के रहने वाले है।  भिंड शहीदों का शहर है। लेकिन शर्मा ने जिस तरह से शासकीय सेवा छोड़कर समाजिक कार्य करने की मंशा जताई है उसे भिंड के लोग ऊँगली काटकर शहीद होना भी कहते हैं। 35  साल लम्बी सरकारी नौकरी को दो साल पहले छोड़ने के पीछे शर्मा का क्या इरादा है ,यही अब प्रशासनसिक हलकों की जिज्ञासा का विषय है।

राजीव शर्मा प्रदेश के शहडोल संभाग के आयुक्त है।  उन्हें अभी एक पदोन्नति शायद और मिल सकती है लेकिन वे नौकरी नहीं करना चाहते। दो साल पहले नौकरी से अलविदा कहने से उनका कोई ख़ास नुक्सान होने वाला नहीं है। पेंशन पर भी कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ना। लेकिन फर्क पड़ने वाला है भिंड के उनके दोस्तों पर। वे खुद नहीं समझ पा रहे की राजीव को अचानक हुआ क्या है ,जो वो अपनी नौकरी छोड़ने पर आमादा है ?

राजीव शर्मा को मैं बहुत देर में मिला,उस समय वे लोनिवि जैसे बदनाम विभाग में उप सचिव थे । राजीव को मैं एक लेखक के रूप में ज्यादा पसंद करता हूँ ,प्रशासनिक अधिकारी के रूप में । मेरी नजर में प्रशासनिक अधिकारी कितना भी साफ़-सुथरा हो वो अपने मन की नहीं कर सकता। उसकी सीमाएं होती हैं जो उसे अपने मन की करने से रोकती हैं। शायद राजीव के साथ भी ऐसा ही कुछ-कुछ है। उन्होंने  अपने गृह नगर में एक वाचनालय की स्थापना की। शहडोल के संभाग आयुक्त के रूप में कुछ नए प्रयोग किये। इनमें  कुछ भी नया नहीं है ।  उनसे पहले इस प्रदेश में एक से बढ़कर एक संवेदनशील और प्रयोगवादी आईएएस अफसर हुए हैं। राजीव शर्मा से ज्यादा संवेदनशील ,लेकिन वे भी शासकीय सेवा से या तो अतृप्त रहे या फिर उन्होंने मन मारकर अपनी सेवा अवधि पूरी की। जो मन को नहीं मार पाए वे या तो सेवानिवृत्ति के बाद अपनी पसंद के काम में जुटे अन्यथा उन्होंने बीच में ही नौकरी छोड़ दी।

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राजीव शर्मा ने नौकरी का भरपूर आनंद लेने के बाद नौकरी छोड़ने का मन बनाया है। उनके विरोदी कहेंगे कि वे नौ सौ चूहे कहकर हज करने जा रहे हैं ,लेकिन उन्हें  निराश नहीं होना चाहिए। अपना भावी एजेंडा निर्भीकता से अपने दोस्तों के बीच रखना चाहिए। राजीव एक संभावनाशील  लेखक भी हो  सकते हैं और समाजसेवी भी ।  वे एक राजनेता भी हो सकते हैं और नहीं भी। ये उनके ऊपर निर्भर करता है कि वे क्या करना चाहते है।  भिंड जिले के ही एक आईएएस अफसर डॉ भगीरथ प्रसाद तो नौकरी के बाद लोकसभा तक पहुंचे और आज उनका कहीं कोई आता-पता नहीं है। हर तरिके से पिछड़े भिंड ने डॉ भगीरथ प्रसाद में भी अपना भाग्यविधाता देखा था किन्तु डॉ भगीरथ प्रसाद भिंड का भाग्य नहीं बदल पाए।

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नौकरी को त्यागने का मन बना चुके राजीव शर्मा यदि समाज सेवा करना चाहते हैं तो भिंड में अनंत आकाश है किन्तु यदि वे राजनीति के जरिये अपने गृह नगर का भाग्य बदलना चाहते हैं तो वे गलत हैं। राजनीति उन्हें वो राजीव शर्मा भी नहीं रहने देगी जो वे आज हैं। राजीव चाहे भाजपा में जाएँ या कांग्रेस मे।  सपाक्स में जाएँ या बसपा या सपा में इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। राजनीति राजीव शर्मा जैसे लोगों का इस्तेमाल  कर सकती है लेकिन उनके लिए खुद उस्तेमाल नहीं हो सकती। राजनीति बड़ी बेरहम चीज है। भिंड की राजनीति जातिवाद की राजनीति है। भिंड में पहले से राजीव शर्मा की बिरादरी के लोग राजनीति में हैं। वे आसानी से राजीव शर्मा के लिए क्यों मैदान छोड़ना चाहेंगे ?

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राजीव शर्मा के प्रति मेरी सहानुभूति है इसलिए मै उनके बारे में इतना लिख रहा हूँ ।  मुमकिन है कि राजीव इस आलेख के बाद मुझसे भी खफा हो जाएँ ,लेकिन इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला ,मै चिंतित हूँ राजीव को लेकर ,रहूंगा उनके अपनों से ज्यादा। मै और राजीव के तमाम दोस्त चाहें कि वे समाजसेवा का क्षेत्र चुनें। सियासत की तरफ भूलकर भी न देखें। किन्तु इसके बाद भी राजीव को ये हक प्राप्त है कि वे अपना भविष्य का रास्ता खुद तय करे ।  

मुझे लगता है कि वे ऐसा कर चुके होंगे,लेकिन उन्होंने अपनी भावी योजना से अपनों को भी अवगत करने में संकोच कर रह हैं। राज्य सरकार   आसानी से राजीव का इस्तीफा स्वीकार  कर लेगी ऐसा मुझे नहीं लगता ।  लेकिन सरकार कुछ भी कर सकती है ।  राजीव का स्वैच्छिक इस्तीफा  मंजूर भी हो सकता है।  भगवान राजीव को शक्ति दे कि वे अपने मन की कर पाएं। मन मारना आज के समय में बहुत बुरी बात मना जाता है।  भिंड के लोग जोखिम लेते रहते हैं ,नए प्रयोग करते रहते हैं। वे निर्भीक होते हैं।  वे परलोक कि नहीं इसी लोक के बारे में सोचते हैं।

राकेश अचल

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